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Tuesday, April 9, 2024

राजनीती को मतलब होना चाहिए की (Social Tales of Social Engineering 38)

अगर आप कहें की मेरी ज़िंदगी में सब सही है या मेरे घर में सब सही है और मेरा आसपास कैसा है या किस हाल में है, इससे मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। तो आप भुलावे में हैं। ये कुछ-कुछ ऐसा है, जैसे आपके पड़ोस में आग लगी हो, और आप कहें, की फ़र्क नहीं पड़ता। 

इंसान एक सामाजिक प्राणी है। जिसे ज़िंदगी को सही से चलाने के लिए, किसी न किसी रुप में, अपने आसपास पर आश्रित होना पड़ता है। इसीलिए, उस आसपास को सही रखने के लिए, शायद वो कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रुप में, समाज के ताने-बाने का हिस्सा बनता है। और अपने आसपास को भी सही रखने की कोशिश करता है। वो चाहे फिर हवा, पानी या साफ़-सफाई ही क्यों ना हो। ज्यादातर समाज इसीलिए, अपने आसपास के जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, हवा और पानी तक को शुद्ध रखने का ख्याल रखते हैं। क्यूँकि, किसी ना किसी रुप में, वो भी आपके सिस्टम, पर्यावरण का अहम हिस्सा हैं। और आपकी ज़िंदगी और स्वास्थ्य तक को प्रभावित करते हैं। जहाँ हवा और पानी शुद्ध है। खाने पीने के स्त्रोत शुद्ध हैं। लोग पढ़े-लिखे हैं। गरीब और अमीर में ज्यादा विभिन्नता नहीं है। वहाँ लोगों की ज़िंदगियाँ आरामदेह हैं। वहाँ ज्यादा खुँखार और भद्दे झगड़े नहीं होते। कम से कम ऐसे नहीं होते, की ज़िंदगीयां ही खा जाएँ। इसलिए, वहाँ लोग भी ज्यादातर खुशहाल मिलेंगे और उम्र ज्यादातर लम्बी। राजनीती का मतलब, सिस्टम को इस संतुलन की तरफ लेकर जाने का होना चाहिए। ना की खामखाँ के, उकसावों और बढावों को हवा देने की तरफ।      

राजनीती को मतलब होना चाहिए, की आपके घरों, गली, मौहल्लों में :

पीने के पानी और रोजमर्रा के प्रयोग के लिए साफ़ और मीठा पानी रोज आता है की नहीं?

पानी निकासी और गंदे पानी या कूड़े-कचरे का सही बंदोबस्त है की नहीं?

हर बच्चा जो आपके मौहल्ले में है, उसे अच्छी शिक्षा उपलब्ध है की नहीं? 

सरकारी स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी, वक़्त के साथ कदम-ताल मिला पाने में सक्षम हैं की नहीं?  

आपका खाना-पीना या वायु शुद्ध है की नहीं? कहीं वो जहरों के सब सेफ मापदंड पार तो नहीं कर चुका? और आप अपने थोड़े-थोड़े फायदे या स्वार्थ के लिए, उसका हिस्सा हो चुके? उसी को खा, पी रहे हैं? और उसी हवा में साँस ले रहे हैं? उसके लिए वहाँ की राजनीतीक पार्टियाँ क्या कर रही हैं? 

आपके यहाँ पर्यावरण असंतुलित है। उसे संतुलित रखने के लिए पर्यावरण से कदम-ताल मिलाने की बजाय, उसको और ज्यादा एक्सट्रीम की तरफ धकेल रहे हैं? उसके लिए वहाँ की राजनीतीक पार्टियाँ क्या कर रही हैं? 

आपके यहाँ हरियाली ख़त्म हो रही है? जोहड़, तालाब ख़त्म हो रहे हैं? कहीं पानी का भराव होता है, तो कहीं जहर पानी में बढ़ गया है। मतलब, कहीं पे ज़मीन से हद ये ज़्यादा पानी का दोहन और कहीं हद से ज्यादा ठहराव पानी का? जहाँ हद से ज़्यादा दोहन हो रहा है, उसे वापस कुछ नहीं दिया जा रहा, जहर के सिवा? और कहीं इतना ज्यादा इक्क्ट्ठा हो जाता है, की निकासी का ही बन्दोबस्त नहीं है? जहाँ मीठा पानी है, वहाँ की ज़मीन को जैसे-तैसे so-called बड़े लोग हड़पने में लगे हैं? ख़ासकर, गरीबों की ज़मीन? इस सबके लिए, वहाँ की राजनीतीक पार्टियाँ क्या कर रही हैं?    

वो राजनीतिक पार्टियाँ आपके मानस-पटल के शांत, स्वच्छ, सभ्य, मेलमिलाप वाले, करुणामयी या तर्कशील जैसे तारों को तहस-नहष कर, बेवज़ह के भडकावों और उकसावों को, अपनी-अपनी तरह के ठप्पों का दुष्पयोग कर ख़त्म कर रही हैं। इसमें आज की टेक्नोलॉजी का और बड़ी-बड़ी कंपनियों का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए, राजनीती और ज्ञान-विज्ञान को अलग-अलग समझना बहुत जरुरी है। 

इसलिए, अपनी राजनीतिक पार्टियों से प्रश्न करो, मुद्दों पर। ना की अंधभक्त बन उनके साथ हो लो, उकसावों और भड़कावों पर।      

और भी ऐसे-ऐसे कितने ही मुद्दे हो सकते हैं या हैं।       

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