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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, April 14, 2024

Social Media Culture, Booster Doses (Social Tales of Social Engineering)

Culture?

जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने?

पैदाईश ही जीरो होगी, तो क्या होगा तेरा?

पैदाईश जीरो? सच में?

Eurovision Song Contest, पहली बार देखा 2005? 

और favourite song? 

My Number One? 2005 


ले तू जीरो पे एक रख
पापा? राजी? या? Paparizou? या?  

"Music is my life?

My life is music?"

Music madness continues और 

ये क्या है?


My Number One? 2016  


आपने कुछ सोचा, उस 2005 वाले गाने के बारे में? 

शब्द वही हैं, मगर बाकी सब बदला-बदला सा है?  

Booster Doses?

Sleep? Psycho?

Music?

Ram Rahim? 

उन्होंने कहा, Immersive Media Technology 

अब ये क्या बला है?

Laser Show?     

Lake Tiliyar, Special Shows 

धन्यवाद, छोटे हुडा को?

दिप्तम-दीप्तम सा है? और आगे आप कहीं, दिप्ती मैडम से भी मिलोगे। 

कहीं किसी केस में जज, तो कहीं?

ये कौन सी दुनियाँ है? और चल क्या रहा है?

"कुछ ना, तू मैन्टल है और मैन्टल सर्टिफ़िकेट पकड़। अब तेरे को चुप करवाने का यही एक रस्ता है। "         

यही नहीं, अब आप गानों को शायद, किसी और नज़र से भी देखने लगे? पहले फ़ोकस शायद सिर्फ लिरिक्स होते थे? अब क्या बदल गया? अरे! ऐसे तो मैंने गानों को कभी देखा ही नहीं? Evolution हो गया? जुर्म और अनुभव की खिचड़ी पकने लगी, धीरे-धीरे दिमाग में? टेक्नोलॉजी के बारे में जानने की उत्सुकता भी बढ़ गई? पहले तो कभी सोचा ही नहीं, की कैसे होता है या करते होंगे ये कलाकार, इतना कुछ? कैसे-कैसे, अलग-अलग विषयों के ज्ञाता होंगे, इस सबके पीछे?

कभी सुना है की मोदी, हाँ वही, आज तक भारत का प्रधानमंत्री, भाषण कैसे देता होगा? किसी hologram से उसका कोई लेना-देना हो सकता है क्या? ये teleprompter क्या होता है? ये सब सिर्फ टेक्नोलॉजी है? राजनीती? Music Industry? या इन सबका, किसी कोढ़ से भी कोई लेना-देना हो सकता है?      

वैसे, music industry का किसी बच्चे के कानों में silver ear rings डलेंगे या gold? या माँ के जाते ही, उसके कान पक जाएँगे? और so-called कमीनों की सलाह पे, सींख डल जाएँगी? बच्चे पे उसका क्या असर होगा? नई आने वाली सोने से लद जाएगी? बीमारी (कानों का पकना?), माँ के जाने के बाद, अपने आप आ जाएगी? या? Invisible Enforcements? अद्रश्य तरीक़े बिमारियों के? अद्रश्य तरीके, लोगों के भेष और हुलिया बदलने के? आप किस वक़्त कहाँ होंगे और कैसे दिखाई देंगे? जैसे बच्चों के बालों के हेरफेर वाला केस? 

कितना कुछ आ गया ना, इस कल्चर में? यहाँ Microlab Culture की समझ बहुत जरुरी है। राजनीती, टेक्नोलॉजी, ज्ञान-विज्ञान के दुरुप्योग को "सोशल मीडिया कल्चर लैब" में पकाई गई, खिचडियों (तरह-तरह की बिमारियों), को समझने के लिए। इसलिए कहा, मीडिया हर विषय के लिए अहम है। कम से कम, यूनिवर्सिटी के स्तर पे तो हर डिपार्टमेंट में इसका अपना, अलग expertise होना चाहिए। जो ये बता सकें, की उनके विषय के ज्ञान या विज्ञान को कैसे भुनाया जाता है? किसी भी समाज के स्वास्थ्य या बिमारियों के स्तर पर? किसी भी समाज की बदहाली या खुशहाली के लिए? ये मीडिया महज़ वो जर्नलिज्म नहीं है, जो भड़ाम-भड़ाम करता रहता है, दिन-रात। ज्यादातर, इस या उस पार्टी के राजनीतिक एजेंडों को। ये मीडिया वो मिर्च-मसाला भी नहीं है, जो मनोरंजन के नाम पे कुछ भी परोसता है और उसे भी भुनाता है। समाज को बीमार करने के लिए। ये मीडिया वो है, जो बता सके, की भगवानों को कौन बनाते हैं? इंसानों को कौन? और शैतानो को कौन? और उससे भी अहम, क्यों और कैसे? रीती-रिवाज़ों में बदलाव कैसे और कहाँ से आते हैं? साइकोलॉजी या फिजियोलॉजी, और भी ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे विषयों का, इन बदलावों और वहाँ की राजनीतिक पार्टियों के अद्रश्य एजेंडों से क्या लेना-देना है? क्या ये भी किन्हीं बिमारियों की वजह या लक्षण हो सकते हैं? और ईलाज भी वहीँ छिपा हो सकता है?    

ये मीडिया वो है, जो एनवायरनमेंट जैसे विषय की तरह अहम है और इकोलॉजी के स्तर पे हर विषय को अपने में समाए हुए है। 

और ये Social Tales of Social Engineering क्या है? ये वो कहानियाँ हैं, जो आपकी, मेरी और हर किसी की ज़िंदगी से जुड़ी हैं। ज़िंदगी के बनने में या बिगड़ने में। ये भी, हर किसी के लिए और हर विषय के लिए अहम हैं। क्यूँकि, ज़िंदगियों को अलग-अलग दिशा या दशा देने के लिए, अलग-अलग जगह, अलग-अलग तरह के विषयों की खिचड़ी पकी होती है। जैसे, 

कुछ इंसान के खोल में छुपे जानवरों ने, होली के दिन इस बेजुबां के कान में चीरा लगा दिया 


या एक ख़ास तारीख को हमारी गली में रहने वाली कुत्ती के ज़ख्मों पे, एक पियकड़ से पेट्रोल डलवा दिया। और भी कितने ही ऐसे किस्से हैं। जिन्हें, सुनकर या जानकार यही कहा जा सकता है, ये कौन-सा समाज है? और कैसी राजनीती? जिसका आम इंसान भी जाने-अंजाने हिस्सा बना दिया गया है?  

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