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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, April 11, 2024

इकोलॉजी (Ecology) और बिमारियों की जानकारी?

इकोलॉजी (Ecology), आपका अपने आसपास से रिस्ता या यूँ कहो, की जिस किसी जीव या निर्जीव के संपर्क में आप आते हैं, या जो कुछ भी आपके आसपास है, उसका आप पर या उस पर आपका प्रभाव। इसमें आपके आसपास जो कुछ भी है, वो सब आ जाता है। हवा, पानी, खाना-पीना, इंसान, जीव-जंतु, कीट-पतंग, पेड़-पौधे, घर या बाहर का सामान, अड़ोस-पड़ोस, मोहल्ले, समाज में कैसे भी बदलाव। जीव या निर्जीवों का आना या जाना। और भी कितना कुछ। यही सब सोशल मीडिया कल्चर है। किसी भी जगह के जीव-जंतुओं का आगे बढ़ने का या रुकावट का माध्यम। बड़ी-सी माइक्रोबायोलॉजी लैब। या कहीं का भी सिस्टम।      

मैंने अपने घर और आसपास के बच्चों की कुछ बिमारियों (या लक्षणों?) को जानने की कोशिश की थी, कुछ साल पहले। ये सब शुरू हुआ था, की पैदाइशी अगर किसी बच्चे के बाल सीधे, सिल्की और भूरे हैं, तो कुछ साल बाद ही, वो घुँघराले, खुरदरे (Rough) जैसे, और काले हो सकते हैं? और ऐसा होते ही, बच्चे का हुलिया ही कुछ और ही नज़र आने लगेगा? ऐसे ही जैसे, अगर किसी बच्चे के बाल पैदायशी घुँघराले और काले हैं, तो कुछ साल बाद ही वो सीधे, कम काले और सिल्की हो सकते हैं? यहाँ फिर से हुलिया अलग ही नज़र आने लगेगा। अब जितना जैनेटिक्स पढ़ी हुई थी, उसके हिसाब से तो ऐसा नहीं हो सकता। हाँ। वातावरण में बदलाव, खाने-पीने में बदलाव या आर्टिफिसियल तरीके से ऐसा संभव है। अर्टिफिशियल तरीके से कैसे? इनके माँ-बाप ही पार्लर नाम मात्र जाते हैं, वो भी किसी ख़ास प्रोग्राम पे ही। तो बच्चोँ का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ये मेरी अपनी भतीजी और भांजी का केस था, तो तहक़ीकात थोड़ी और शुरू कर दी। 

भाभी ज़िंदा थे उन दिनों। माँ और भाभी से बात हुई, तो माँ ने बोला, ऐसे ही थे बचपन से। भाभी ने बोला, नहीं थोड़े बदल गए लगता है। उसपे माँ ने थोड़ा और जोड़ दिया, की भाई के भी शायद ऐसे ही हैं। जब मैंने कहा, की घर में तो ऐसे किसी के नहीं है, तो कैसे हो सकता है? जितना मुझे मालूम है, तो रिश्तेदारों में भी नहीं है। यहाँ सीधे से, घुँघराले होने लगे थे। भाभी ने इसपे कहा, शायद मेरी माँ पे हैं। उनके जड़ों से तो सीधे हैं, मगर थोड़े बड़े होने पे घुँघराले होने लगते हैं। मुझे भाभी और माँ, दोनों के ही तर्क, बेतुके लग रहे थे। माँ को बोला, आपको इतना तक पता नहीं, की आपके लाडले के बाल कैसे हैं? और उन्होंने डाँट दिया मुझे, जैसे हैं, ठीक हैं। दिमाग़ मत खाया कर, हर बात पे, खामखाँ में। भाभी हंसने लगे। और कर लो बहस। मैंने भाभी को कहा, की एक बार एल्बम लाना। माँ ने मेरी तरफ घूर कर देखा। और भाभी ने कहा, पता नहीं दीदी कहाँ पड़ी है एलबम,  ढूँढ़नी पड़ेगी। 

मैं घर आ गई, भाई के घर से। अपनी एल्बम निकाली, जिसमें भाई और गुड़िया की अलग-अलग वक़्त की फोटो थी। अब शक और बढ़ गया, की कुछ तो गड़बड़ घोटाला है। क्यूँकि, दोनों में से किसी के बाल घुँघराले नहीं थे।      


अब पहुँची मैं ऑन्टी के पास। जिनका घर भाई के साथ ही लगता है। उनसे भांजी के बारे में बात हुई तो बोले, हाँ बचपन में तो ऐसे नहीं थे, अब बदलने लगे। यहाँ घुंघराले से, सीधे होने लगे थे। जाने क्यों, अब मुझे छोटी बहन (चाचा की लड़की) के बालों पे भी शक होने लगा। जिसके बाल घुँघराले जैसे-से हैं। मगर मेरे पास उसकी बचपन की कुछ फोटो हैं, जिनमें सीधे हैं। ये भी कुछ-कुछ ऐसा था शायद, जैसे भाभी ने अपनी माँ के बालों के बारे में बोला? इसी दौरान ऑनलाइन कुछ सर्च कर रही थी और किसी फ़ोटो को देखकर फिर से थोड़ा शंशय। ये अंकल की फोटो थी, जिसमें उनके बाल घुँघराले लग रहे थे। मुझे ऐसा कुछ ध्यान नहीं। शायद कभी ध्यान ही नहीं दिया। 

फिर से एक दिन अंकल के घर थी और वही फोटो सामने देख रुक गई। पर ये तो यहाँ बहुत सालों से थी। मतलब, हम बहुत-सी बातों पर सामने होते हुए भी, ध्यान नहीं देते। क्यूँकि, जरुरत ही नहीं होती। ये तो जब जरुरत महसूस हो, तभी ध्यान जाता है। मैंने फिर से ऑन्टी से पूछा, की अंकल की ये फोटो कब की है? क्या अंकल के बाल घुँघराले थे? वो फोटो शायद, उनके आखिरी दिनों के आसपास की होगी। और उन्होंने बताया की घुँघराले तो नहीं थे। 

टेक्नोलॉजी का गलत प्रयोग?  

क्यूँकि, खुद की मेरी कितनी ही फोटो, पता ही नहीं कैसे-कैसे ख़राब की हुई थी और ऐसा ही बहुत-सी गुड़िया के केस में था। चलो फोटो में बदलाव तो समझ आते हैं, वो भी आज के युग में। मगर, जो वो सामने गुड़िया और भांजी के बालों के साथ हो रहा था, वो क्या था? ये उस दुनियाँ की सैर करवाने वाला था, जो कितने ही चाहे-अनचाहे बदलावों के और बिमारियों के राज खोलने वाला था।  

जानकारी या ज्ञान-विज्ञान का गलत प्रयोग? और राजनीती के तड़के। 

मतलब, छोटी से छोटी चीज़, जो आपके आसपास बदल रही है, वो कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रुप में आपको और आसपास के जीवों को प्रभावित कर रही है। वो फिर चाहे खाना-पीना है या ऐसा कोई भी उत्पाद, जो आप नहाने-धोने में या अपनी या अपने आसपास की किसी भी प्रकार की सफ़ाई में प्रयोग कर रहे हैं। और भी अहम, उसे आप किससे या कहाँ से ले रहे हैं? वो चाहे आपके कपड़ो का या बालों का स्टाइल का तरीका है या उनमें प्रयोग होने वाले उत्पादों के किस्म और प्रकार। वो चाहे आपकी हवा का रुखा-सूखा, धूल-भरा या साफ़ होना है या उसमें पानी की अलग-अलग मात्रा। वो आपके आसपास के तापमान का तीख़ापन है या सुहावना होना। वो आपके घर की शाँति है या लड़ाई-झगड़ों का बढ़ना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का बदलना है या अच्छे से फलना-फूलना। वो आपके घर के पेड़-पौधों का इस जगह से, उस जगह खिसकना है या बाहर कहीं जाना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का मरना है और सिर्फ गमलों वाले पौधों का ही जीवित रह जाना। वो आपके छोटे से छोटे गमलों में भी एक पौधे का होना है या उसमें भी दो, तीन या ज्यादा पेड़-पौधों का होना। वो एक ही, वो भी छोटे से गमले में भी, एक ही तरह के पेड़-पौधे का होना है या उसमें भी कई तरह के पेड़-पौधों का एक साथ लगा देना। वो आपके आसपास के कीट-पतंगों का बदलना है? या कुत्ते, बिल्लियों का सिर्फ एक, दो ना होकर कई सारे, पता ही नहीं कहाँ-कहाँ से अचानक आना शुरू हो जाना। और फिर अचानक से ग़ायब हो जाना। इनमें से बहुत कुछ अपने आप नहीं होता। बल्की, धकाया हुआ या जबरदस्ती लाया हुआ होता है। वो फिर बंदरों के झुंड हों या गाय-भैंसों के। वो फिर टिड़ियों के दल हों या अलग-अलग तरह की चिड़ियों के। अपने आसपास में हो रहे या किए जा रहे बुरे या भले बदलावों को समझना शुरू करो। बहुत कुछ समझ आएगा। बिमारियों को होने से रोकने के या होने पर ईलाज के समाधान डॉक्टरों के पास नहीं, आपके अपने पास या आसपास हैं। डॉक्टर तो तब के लिए होते हैं, जब बीमारी लाईलाज हो जाए। और वहाँ भी ज़्यादातर केसों में, जाने या अंजाने बढ़ती हैं, कम नहीं होती। 

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