शिक्षा का भविष्य? Future Education?
या भविष्य की शिक्षा?
कोरोना काल में अगर कुछ अच्छा रहा तो वो था भविष्य की शिक्षा से भारत जैसे देशों का जुड़ना। ऑनलाइन पढ़ाई और उसके बाद मिश्रित (Blended Mode Education) । सबसे पहले शिक्षा के रुप को मैंने शायद MIT के ओपन लर्निंग प्रोग्राम्स से जाना था। तब तक ये नहीं पता था की ये ओपन लर्निंग बहुत कुछ ऐसा भी बता रहा है जो आमजन के सामने होकर भी छुपा हुआ है। इसके पीछे छिपी टेक्नोलॉजी। और उस टेक्नोलॉजी का छुपा हुआ संसार, शिक्षा के संसार से बाहर भी, आम आदमी की ज़िंदगी में। ऐसा कैसे? अभी तक ये सब ज्यादातर पढ़ने पढ़ाने वालों को ही मालुम नहीं था। तो आम आदमी को कैसे मालुम होगा? और इसका सीधा सीधा सम्बंध कैंपस क्राइम की किसी किताब से भी हो सकता है?
ये सब बताने के लिए बहुत सी फालतु या काम की इमेल्स में छुपे संदेश आते थे, जो उसकी तरफ इसरा करते थे। मगर उन संदेशों को समझने में काफी वक़्त लगा।
ठीक ऐसे ही जैसे कोई कहे कैम्ब्रिज अनालिटीका और आप कहीं UK की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कुछ समझने की कोशिश करें। मगर उसके असली राज शायद US के किसी कैम्ब्रिज में छुपे हों? इमेल्स से संबंधित कोई घपला था शायद US के किसी इलेक्शन में? मगर क्या?
ऐसे ही जैसे आप टेक्नोलॉजी और विडियो गेम्स को समझने की कोशिश करें और युरोप की कुछ यूनिवर्सिटी उसपे टेक्नोलॉजिकली बेहतर बता पाएँ। US में MIT तो शायद इस सब में महारत लिए हो। खेलों का भला शिक्षा से क्या सम्बन्ध? वो भी यूनिवर्सिटी के स्तर पे? ये खेल महज़ कोई रेस, क्रिकेट, हॉकी या कब्बड्डी जैसे खेल नहीं हैं। ये दिमागी खेल हैं। जो दुनियाँ भर के दिमागों को सिर्फ टैस्ट नहीं करते, बल्की ईधर और उधर की टीमें एक-दूसरे को ओवरपॉवर करने की कोशिश करते हैं। ये सब आप किसी भी यूनिवर्सिटी के एक या दो प्रॉजेक्ट से नहीं समझ सकते, बल्की उस यूनिवर्सिटी में कौन-कौन से विषयों पे ख़ास फ़ोकस है। कौन-कौन से विषयों को सबसे ज्यादा पैसा मिलता है या खर्च होता है। वो वहाँ के सिस्टम को बताता है। वहाँ के समाज की दिशा और दशा वही निर्धारित करते हैं। यही नहीं, बल्की छुपे हुए तरीके से ये विकसित देशों का जहाँ विकासशील और पिछड़े देशों की दशा और दिशा भी निर्धारित करता है। कुछ इन्हें बोर्ड गेम्स बोलते हैं तो कुछ राजे-महाराजों के नए दौर के शौक या जुआ।
इसे आप अपने स्तर पर भी समझ सकते हैं, फिर चाहे आप दुनियाँ के किसी भी हिस्से में क्यों ना हों। समाज के ऊप्पर वाले हिस्से या तबक्कों में जो हो रहा है, उसी की हूबहू कॉपियाँ वहाँ का लोकल सिस्टम बनाने की कोशिश करता है। चाहे फिर उससे समाज के उस हिस्से को कितना भी नुकसान क्यों ना हो। समाज में जितनी ज्यादा शिक्षा की दरारें हैं या गैप है, उतना ही ज्यादा दूसरी तरह की असमानताएँ भी। इन्हीं असमानताओं की वज़ह से समाज का जो हिस्सा जितना ज्यादा पिछड़ा है, उसके दुष्परिणाम भी वो सबसे ज़्यादा भुगतता है। अगर किसी समाज को आगे बढ़ाना है तो शिक्षा पे ध्यान देना होगा। उसका स्तर जितना ज्यादा बढ़ेगा, वहाँ का समाज भी उसी हिसाब से आगे बढ़ेगा। मगर ये शिक्षा महज डिग्रीयों तक या जैसे तैसे टॉप करने की रेस मात्र ना रह जाय।
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