वो तुम्हारे अपने तो हैं
मगर वो उन अपनों के घरों में और दिमागों में
कुछ ऐसे घुसे हुए हैं
की काम उन्हें ,
तुम्हें और खुद को ही गिराने का दिया हुआ है।
वो जो खुद के ही ना हुए,
वो तुम्हारे कैसे होंगे?
क्यूँकि, आगे बढ़ने वाले
दूसरों को भी साथ लेकर आगे बढ़ते हैं।
मगर, जो कहें, खुद तो आगे बढ़ेंगे
वो भी तुम्हे दल कर?
और तुम्हें ही प्रयोग कर?
वो भी तुम्हारे अपने और तुम्हारे अपनों के खिलाफ?
वो अकसर खुद भी,
कहीं ना कहीं शायद, अटक और भटक जाते हैं?
केस स्टीडीज़, जो अचंभित-सा करती हैं, फैली पड़ी हैं, चारों तरफ।
दुबई बाढ़ से ही शुरू करते हैं।
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