राजनीती या ज्ञान-विज्ञान? इनको अलग-अलग समझना क्यों जरुरी है? राजनीती इनकी खिचड़ी पकाकर आम-आदमी को कैसे पेश करती है? क्या उन कोढों को समझना सच में इतना मुश्किल है? या, वो ये सब आम-आदमी को पता ही नहीं लगने देना चाहते? क्यूँकि, जितना आम-आदमी को पता चलेगा, उतना ही वो अपने अधिकारों के प्रति सचेत होगा। और ऐसे-ऐसे प्रश्न करने करने लगेगा, की हम यहाँ आपकी सेवा करने के लिए नहीं बैठे। बल्की, आपको इसलिए चुना जाता है, की आप अपने-अपने क्षेत्र का विकास कर सकें। उसे आगे बढ़ा सकें। ना की उस क्षेत्र के लोगों और साधनों को, निचोड़ कर या दोहन कर, अपना घर भर सकें। आपको इसलिए नहीं चुना जाता, की आप हर वक़्त, हर जगह तमाशगीर बन कर रह जाएँ। और अपने उस तमाशे को बिन रुके, बिन थके, एक सर्कस के रुप में अपनी जनता पे थोंप दें। और उन्हें उस सर्कस से बाहर ही ना निकलने दें। उन्हें ज़िंदगी के अहम मुद्दों से दूर भटका कर, अपने भंडोला-शो का हिस्सा मात्र बना कर छोड़ दें। जन्म क्या, बीमारी क्या और मौत क्या, हर ज़गह अपने भद्दे ठप्पों का चस्का, मखौलियों या भंडोलों की तरह लगाने लगें। समाज के हर हिस्से पे, अपनी खुँदकों की छाप छोड़ने लगें।
कैसे? कैसे कर रहे हैं, राजनीती के ये भंडोले ये सब? सिर्फ़ राजनीती के? या समाज का कोई भी हिस्सा नहीं बक्शा हुआ? अपने महान प्रधानमंत्री से ही शुरु करें?
DD O' DD?
या ? दीदी? ओ दीदी?
या 2 D? 3 D?
या फिर, विमान और बादलों या राडारों के शगूफ़े भी सुने होंगे?
कौन से बादल?
पंजाब वाले?
या इंटरनेट वाले Cloud और Radar?
ऐसे ही G Creations?
वो जो घर वाली को कुछ पुराने लोग बोलते हैं, जैसे, ओ श्रीमती जी, तुम्हारी मती कहाँ मारी गई जी? बुरा ना माने, क्या पता कहने वाले की खुद की ही कहीं गुम हो?
या फिर वो श्रीमती जैसे बोलें? जी? ओ जी?
मगर कौन-सा जी?
2G? 3G? 4G? या 5G? कैसे-कैसे स्पेक्ट्रम (Spectrum) घौटाले हैं ये?
अब आम आदमी इस सबको कैसे समझेगा? कुछ तो ऐसे भी पढ़े-लिखे होने चाहिएँ ना, जो आम-आदमी को ये सब ऐसे अलग-अलग समझा सकें, जैसे दूध से पानी अलग, खिचड़ी से चावल और दाल अलग? या फिर दूध का दही या लस्सी कैसे बनाते हैं? या दूध से पनीर कैसे बनाते हैं? अलग-अलग कंपनियों के दूध, दही या लस्सी या किसी भी, एक ही नाम वाले उत्पाद का स्वाद अलग क्यों होता है? ये कम्पनियाँ, कौन-से अलग-अलग बैक्टीरिया के तड़के लगाते हैं? और राजनीती में उसे कैसे-कैसे पकाते हैं? ठीक ऐसे, जैसे नेता से अभिनेता अलग या एक?
पर शायद आप कहें, की आम-आदमी के लिए ये सब जानना क्यों जरुरी है? यही अहम है। अगर आपको इस सब की समझ होगी, तो ये धूर्त ,शातीर लोग आपका दोहन कम कर पायेँगे। क्यूँकि, आपकी ज़िंदगी की खुशहाली या बर्बादी इसी समझ पे टिकी है।
उदहारण के लिए, कोरोना काल को ही लेते हैं। अगर आपको ये राजनीती और ज्ञान-विज्ञान की अलग-अलग समझ होती और ये पता होता की राजनीती के तड़के इनकी खिचड़ी पकाने में कैसे होते हैं? तो दुनियाँ भर में, ये आदमियों की मौतों का ताँडव और उसपे तमासे इतने वक़्त नहीं चलते। और ना ही उस ताँडव को देख, मेरे जैसों का विरोध और फिर देशद्रोह के नाम पर जेल की सैर करना। क्यूँकि, बिमारियों में भी ऐसे ही शब्दों का और तमाशों का हेरफेर है, जैसे किसी भी राजनीती वाले दीदी ओ दीदी या 2D, 3D टेक्नोलॉजी का। या वैसे ही जैसे, एक तरफ मोदी का विमान और बादलों का ज्ञान पेलना। और दूसरी तरफ, इंटरनेट वाला Clouds या Radar शो। या जैसे पार्टियों का एक-दूसरे पर स्पेक्ट्रम घोटालोँ वाला प्रहार और संचार के माध्यंमों (Communication Technology) वाले स्पेक्ट्रम को समझना। अब सब तो हमारे जैसों को भी नहीं पता होता। वो भी ज्यादातर अपने ही विषय तक सिमित होते हैं। वो भी कहीं ना कहीं से पढ़ते हैं, या अलग-अलग विषयों के एक्सपर्ट उसके बारे में बताते हैं।
मगर इस सबसे ये भी समझ आता है, की मीडिया का रोल किसी भी समाज की प्रगति या विध्वंश में कैसे भुमिका निभाता है? खासकर, जब अलग-अलग पार्टियाँ, पुरे संसार में युद्ध स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही हों। और जनता से कोढों वाली छुपम-छुपाई चल रही हो। पढ़े-लिखे वर्ग की भूमिका उसमें और भी ज्यादा अहम हो जाती है।क्यूँकि, ये शायद समाज का वो वर्ग है, जो सबसे ज्यादा स्थिर और सुरक्षित जीवन जीता है, खासकर Higher Level पर। और वापस समाज को क्या देता है? कोढ़?
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