Location Or Geolocation?
आप फिलहाल कहाँ हैं? जहाँ हैं, उसके आसपास कौन हैं? वो स्थान काफी हद तक आपकी ज़िंदगी निर्धारित कर रहा है। आपकी ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव, बिमारियों या ज़िंदगी कितनी होगी, इसका भी निर्धारण कर रहा है। एक गंदे पानी का तालाब या छोटी सी लेट (lake type) है। उसके चारों तरफ या तो खाली प्लॉट पड़े हैं या गीतवाड़े। बिटोड़े या गीतवाड़े, हरियान्वी में उस जगह को बोलते हैं, जहाँ गाय-भैंसों के गोबर के उपले बनाए जाते हैं। ज्यादातर औरतों द्वारा। ऐसे-ऐसे काम पिछड़े वर्गों में खासकर, औरतों के होते हैं। ये 20-25 साल पहले की बात थी।
धीरे-धीरे यही गीतवाड़े, घेर और फिर घरों में तब्दील होते जाते हैं। पेड़-पौधे साफ़। खाली जगहें खत्म। और ईंट और सीमेंट के घर बनने लग जाते हैं। क्यूँकि, जो लोग गाँव छोड़कर कहीं बाहर नहीं जा रहे, वो गाँव के अंदर के पुराने मकानों को छोड़ कर, इन खाली प्लॉटों या गाँव के पास के खेतों का रुख कर रहे हैं। अब ये गाँव के गंदे पानी का तालाब भी, आसपास के लोगों की दिक्कत बनता जाता है। इसलिए और लालच में भी, आसपास के घरों के लोग इसे घेरने लग जाते हैं। धीरे-धीरे तक़रीबन पूरा का पूरा तालाब खत्म। उसमें और उसके आसपास रहने वाले कितने ही जीव-जंतु खत्म।
खाली पड़ी जगहों की ऐसी-ऐसी कहानियाँ, हर गाँव या शहर के बाहरी इलाकों में खासकर आम हैं। इस गाँव के गंदे तालाब को घेरकर या आसपास बने घरों या घेरों की जगहों के कोई नंबर तो नहीं हैं। तो उसे सिस्टम या राजनीती, कैसे अपने कोढों के अनुसार ढाल सकती है? कैसे अपने स्टीकर इन जगहों पे चिपका सकती है? इस जीव-जंतुओं तक पे स्टीकर चिपकाने वाले सिस्टम की खासियत ही ये है, की ये ना खाली जगहों को बक्सता है और ना ही दूर-दराज़ के इलाकों को। वो फिर आपके गाँवों या शहरों की खाली पड़ी ज़मीने हों या आर्कटिक या अंटार्कटिक, वो चाहे सहारा मरुस्थल हो या भारत का रेगिस्तान। वो मध्य प्रदेश के दूर-दराज़ के इलाक़े हों या छत्तीसगढ़ के पहाड़ी या समतल खेतों के इलाक़े।
अगर हम बोलें मोदी, तो दिमाग में क्या आएगा? भारत का प्रधानमंत्री? या सुनारियाँ की जेल में कोई लड़की, मगर नाम मोदी? या हमारे आसपास का कोई मोदी, जो पीता भी है और अकसर झगड़ता भी है। मगर, उससे भी ज्यादा उसकी पहचान, किसी सिस्टम में शायद कुछ और है? बीवी का कोई गोत्र और 2005 में शादी? भाईयों में सबसे छोटा और नंबर चार? और भी छोटी-मोटी जैसे हर इंसान की ढेरों कहानियाँ होती हैं, यहाँ भी हो सकती हैं? किसको क्या फर्क पड़ता है? हर इंसान एक कहानी है। किसी ना किसी पार्टी की, चाहे कितनी ही छोटी-मोटी पहचान या इनके युद्धों या अखाड़े की कोई कील या सुराग या कड़ी या शायद गुम या अदृश्य कड़ी (missing link) ही। पार्टियों के दाँव-पेंच, हर कील को या कड़ी को या गुम या अदृश्य कड़ी (missing link) तक को प्रभावित करते हैं। कौन कहाँ रहेगा, कहाँ नहीं रहेगा, कौन किस जगह को हड़पेगा या किस जगह को घेरेगा, कौन कहाँ जाएगा या कहाँ नौकरी करेगा या नहीं करेगा, इन सबका निर्धारण काफी हद तक वहाँ की राजनीतिक पार्टियों की खिंचतान करती है। आप शादी करेंगे या कुँवारे रहेंगे? कितने बच्चे होंगे या नहीं होंगे? एक शादी होगी या ज्यादा होंगी?
अगर पार्टियों ने किसी जुए में कोई नंबर रख दिए, तो इसका काफी हद तक निर्धारण किसी के कितने बच्चे हैं, या वो कितने भाई-बहन हैं? या उनके माँ-बाप कितने भाई-बहन हैं? इस पर निर्भर करता है? मुझे ऐसा ही समझ आया। अगर उसमें कोई राजनीतिक पार्टी बदलाव करने या लाने की कोशिश करती है, तो वो उनके लिए सही नहीं है। कुछ-कुछ wrong identity या wrong identity crisis, wrong code, wrong number जैसे? गलत पहचान और उस गलत पहचान के अनुसार, उस घर या घरों के लोगों को चलाने की कोशिशें। गोटियाँ जैसे। ऐसी गलत पहचान पे लोगों (गोटियों) को चलाने का फायदा, उस नंबर की असली पहचान वाले लोगों को होगा। राजनीतिक पार्टियों को इससे फर्क नहीं पड़ता। क्यूँकि, उनका जुआ और जुए के दाँव आपके अनुसार नहीं, उनके अनुसार हैं। इसीलिए जुए में अकसर बड़े लोग हारकर भी नहीं हारते। और छोटी-मोटी गोटियाँ, यहाँ-वहाँ दाँव पर, पीटती, लूटती, गिरती, पड़ती या मरती रहती हैं। किसे फ़र्क पड़ता है?
फ़र्क इससे पड़ता है, की आपको आपकी असली पहचान मालूम भी है, की नहीं? आपका दिमाग उसे पहचानने में ही गड़बड़ तो नहीं करने लगा? आपको या आपके अपनों को उस पहचान में, उलटफेर की ट्रेनिंग तो नहीं दी जा रही? बड़े लोग (so-called) अपनी पहचान नहीं छोड़ते। उल्टा, अपने स्टीकर हर किसी पे चिपकाने की कोशिश में रहते हैं। छोटे लोगों (so-called) की कोई पहचान ही नहीं होती। जिस किसी का स्टीकर अपने पे चिपकवा लेते हैं। और अपना सब, उन स्टीकर वालों के हवाले कर देते हैं। इन स्टीकरों को पहचाने कैसे?
बहुत तरह के स्टीकर हैं। जैसे
सबसे बड़ा स्टीकर है, आपका पता। आप कहाँ रहते हैं। वो जगह आपके बारे में और आपके परिवार के बारे में या परिवेश के बारे में, अड़ोस-पड़ोस के बारे में, आपके गाँव, मोहल्ले, शहर, राज्य या देश के बारे में काफी कुछ बताती है। उस काफी कुछ में आपका पढ़ाई-लिखाई का स्तर, आपकी वित्तीय स्तिथि, आपका रहन-सहन, शांति या लड़ाई-झगडे, स्वास्थ्य या बीमारियाँ, और आपकी ज़िंदगी कितनी लम्बी या छोटी होगी। अच्छी या बुरी होगी? और भी कितना कुछ आ जाता है। तो क्या सब शहरों की तरफ या अच्छे पिन कोडों की तरफ भाग लें? या शायद चंडीगढ़ जैसे शहरों को भी, किन्हीं कोडों में गाँव का दर्जा मिला हुआ है। ऐसे से या इससे बेहतर गाँवोँ के पते घड़ डालें?
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