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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, April 30, 2024

आपकी या आपकी जगह की पहचान क्या है?

शायद आप कहें की अलग-अलग जगह, अलग-अलग लोगों के लिए, अलग-अलग हो सकती है? निर्भर करता है की आप किससे पूछ रहे हैं? आपका कोई अपना या आपका कोई हितेषी? या आपका कोई दुश्मन या बुरा चाहने वाला? ऐसे ही जैसे अलग अलग तरह की प्रेजेंटेशन, एक ही विषय पर? 

क्या आपका पता या पिन कोड या एक ही गाँव या शहर का पता, आपकी अलग-अलग पहचान बताता है? जैसे 105? एक तरफ किसी ऑफिस में कोई रुम नंबर हो, और दूसरी तरफ किसी गाँव के पते में पिन कोड से अलग कोई नंबर? उसे कहीं और के पिन कोड से जानने की कोशिश करें तो क्या बताएगा? कुछ भी नहीं? या शायद बहुत कुछ, वहाँ के सिस्टम की आपसी पहचान या रंजिश के बारे में?

105 एक नंबर किसी गाँव के पिन कोड से अलग। जहाँ का पिन कोड 124111 

एक और पिन कोड नंबर 125 उसके पीछे कुछ और नंबर हो सकते हैं। या एक और पिन कोड नंबर 221 और उसके पीछे कुछ और नंबर? या 442 और उसके पीछे कुछ और नंबर? या 500 और उसके पीछे कुछ और नंबर? या 124 और उसके पीछे कुछ और नंबर? या 110 और उसके पीछे कुछ और नंबर? या 131 और उसके पीछे कुछ और नंबर? सुना है और थोड़ा बहुत समझ भी आया है की बहुत कुछ बताते हैं। फिर चाहे वो देशी नंबर हों या अंतर्देशीय। अब ऐसे कौन पढता है? गुप्त सिस्टम दुनियाँ भर का। फिर चाहे वो सेना हों या सिविल। दुनियाँ भर की सरकारें वैसे नहीं चलती, जैसे आम आदमी सोचता है। वैसे चलती हैं, जैसे किसी भी समाज का खास आदमी सोचता है। जैसे-जैसे आम आदमी को इस सिस्टम की खबर होती जाती है, वैसे-वैसे खास और आम आदमी का अंतर कम होता जाता है।      

कितनी सारी हमारी IDs (पहचान पत्र), ऐसे ही गुप्त सिस्टम द्वारा हमपर या किसी भी जगह पर चिपकाए गए सिस्टम के बारे में बताती हैं। वहाँ की नीतिओं (Policies) का हमें कितना फायदा या नुकसान होगा, उसकी तरफ इसारा करती हैं। 

आपकी पहचान और कितनी ही तरह के स्टीकर

Location Or Geolocation? 

आप फिलहाल कहाँ हैं? जहाँ हैं, उसके आसपास कौन हैं? वो स्थान काफी हद तक आपकी ज़िंदगी निर्धारित कर रहा है। आपकी ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव, बिमारियों या ज़िंदगी कितनी होगी, इसका भी निर्धारण कर रहा है। एक गंदे पानी का तालाब या छोटी सी लेट (lake type) है। उसके चारों तरफ या तो खाली प्लॉट पड़े हैं या गीतवाड़े। बिटोड़े या गीतवाड़े, हरियान्वी में उस जगह को बोलते हैं, जहाँ गाय-भैंसों के गोबर के उपले बनाए जाते हैं। ज्यादातर औरतों द्वारा। ऐसे-ऐसे काम पिछड़े वर्गों में खासकर, औरतों के होते हैं। ये 20-25 साल पहले की बात थी।  

धीरे-धीरे यही गीतवाड़े, घेर और फिर घरों में तब्दील होते जाते हैं। पेड़-पौधे साफ़। खाली जगहें खत्म। और ईंट और सीमेंट के घर बनने लग जाते हैं। क्यूँकि, जो लोग गाँव छोड़कर कहीं बाहर नहीं जा रहे, वो गाँव के अंदर के पुराने मकानों को छोड़ कर, इन खाली प्लॉटों या गाँव के पास के खेतों का रुख कर रहे हैं। अब ये गाँव के गंदे पानी का तालाब भी, आसपास के लोगों की दिक्कत बनता जाता है। इसलिए और लालच में भी, आसपास के घरों के लोग इसे घेरने लग जाते हैं। धीरे-धीरे तक़रीबन पूरा का पूरा तालाब खत्म। उसमें और उसके आसपास रहने वाले कितने ही जीव-जंतु खत्म। 

खाली पड़ी जगहों की ऐसी-ऐसी कहानियाँ, हर गाँव या शहर के बाहरी इलाकों में खासकर आम हैं। इस गाँव के गंदे तालाब को घेरकर या आसपास बने घरों या घेरों की जगहों के कोई नंबर तो नहीं हैं। तो उसे सिस्टम या राजनीती, कैसे अपने कोढों के अनुसार ढाल सकती है? कैसे अपने स्टीकर इन जगहों पे चिपका सकती है? इस जीव-जंतुओं तक पे स्टीकर चिपकाने वाले सिस्टम की खासियत ही ये है, की ये ना खाली जगहों को बक्सता है और ना ही दूर-दराज़ के इलाकों को। वो फिर आपके गाँवों या शहरों की खाली पड़ी ज़मीने हों या आर्कटिक या अंटार्कटिक, वो चाहे सहारा मरुस्थल हो या भारत का रेगिस्तान। वो मध्य प्रदेश के दूर-दराज़ के इलाक़े हों या छत्तीसगढ़ के पहाड़ी या समतल खेतों के इलाक़े। 

अगर हम बोलें मोदी, तो दिमाग में क्या आएगा? भारत का प्रधानमंत्री? या सुनारियाँ की जेल में कोई लड़की, मगर  नाम मोदी? या हमारे आसपास का कोई मोदी, जो पीता भी है और अकसर झगड़ता भी है। मगर, उससे भी ज्यादा उसकी पहचान, किसी सिस्टम में शायद कुछ और है? बीवी का कोई गोत्र और 2005 में शादी? भाईयों में सबसे छोटा और नंबर चार? और भी छोटी-मोटी जैसे हर इंसान की ढेरों कहानियाँ होती हैं, यहाँ भी हो सकती हैं? किसको क्या फर्क पड़ता है? हर इंसान एक कहानी है। किसी ना किसी पार्टी की, चाहे कितनी ही छोटी-मोटी पहचान या इनके युद्धों या अखाड़े की कोई कील या सुराग या कड़ी या शायद गुम या अदृश्य कड़ी (missing link) ही। पार्टियों के दाँव-पेंच, हर कील को या कड़ी को या गुम या अदृश्य कड़ी (missing link) तक को प्रभावित करते हैं। कौन कहाँ रहेगा, कहाँ नहीं रहेगा, कौन किस जगह को हड़पेगा या किस जगह को घेरेगा, कौन कहाँ जाएगा या कहाँ नौकरी करेगा या नहीं करेगा, इन सबका निर्धारण काफी हद तक वहाँ की राजनीतिक पार्टियों की खिंचतान करती है। आप शादी करेंगे या कुँवारे रहेंगे? कितने बच्चे होंगे या नहीं होंगे? एक शादी होगी या ज्यादा होंगी? 

अगर पार्टियों ने किसी जुए में कोई नंबर रख दिए, तो इसका काफी हद तक निर्धारण किसी के कितने बच्चे हैं, या वो कितने भाई-बहन हैं? या उनके माँ-बाप कितने भाई-बहन हैं? इस पर निर्भर करता है? मुझे ऐसा ही समझ आया। अगर उसमें कोई राजनीतिक पार्टी बदलाव करने या लाने की कोशिश करती है, तो वो उनके लिए सही नहीं है। कुछ-कुछ wrong identity या wrong identity crisis, wrong code, wrong number जैसे? गलत पहचान और उस गलत पहचान के अनुसार, उस घर या घरों के लोगों को चलाने की कोशिशें। गोटियाँ जैसे। ऐसी गलत पहचान पे लोगों (गोटियों) को चलाने का फायदा, उस नंबर की असली पहचान वाले लोगों को होगा। राजनीतिक पार्टियों को इससे फर्क नहीं पड़ता। क्यूँकि, उनका जुआ और जुए के दाँव आपके अनुसार नहीं, उनके अनुसार हैं। इसीलिए जुए में अकसर बड़े लोग हारकर भी नहीं हारते। और छोटी-मोटी गोटियाँ, यहाँ-वहाँ दाँव पर, पीटती, लूटती, गिरती, पड़ती या मरती  रहती हैं। किसे फ़र्क पड़ता है?

फ़र्क इससे पड़ता है, की आपको आपकी असली पहचान मालूम भी है, की नहीं? आपका दिमाग उसे पहचानने में ही गड़बड़ तो नहीं करने लगा? आपको या आपके अपनों को उस पहचान में, उलटफेर की ट्रेनिंग तो नहीं दी जा रही? बड़े लोग (so-called) अपनी पहचान नहीं छोड़ते। उल्टा, अपने स्टीकर हर किसी पे चिपकाने की कोशिश में रहते हैं।  छोटे लोगों (so-called) की कोई पहचान ही नहीं होती। जिस किसी का स्टीकर अपने पे चिपकवा लेते हैं। और अपना सब, उन स्टीकर वालों के हवाले कर देते हैं। इन स्टीकरों को पहचाने कैसे?

बहुत तरह के स्टीकर हैं। जैसे  

सबसे बड़ा स्टीकर है, आपका पता। आप कहाँ रहते हैं। वो जगह आपके बारे में और आपके परिवार के बारे में या परिवेश के बारे में, अड़ोस-पड़ोस के बारे में, आपके गाँव, मोहल्ले, शहर, राज्य या देश के बारे में काफी कुछ बताती है। उस काफी कुछ में आपका पढ़ाई-लिखाई का स्तर, आपकी वित्तीय स्तिथि, आपका रहन-सहन, शांति या लड़ाई-झगडे, स्वास्थ्य या बीमारियाँ, और आपकी ज़िंदगी कितनी लम्बी या छोटी होगी। अच्छी या बुरी होगी? और भी कितना कुछ आ जाता है। तो क्या सब शहरों की तरफ या अच्छे पिन कोडों की तरफ भाग लें? या शायद चंडीगढ़ जैसे शहरों को भी, किन्हीं कोडों में गाँव का दर्जा मिला हुआ है। ऐसे से या इससे बेहतर गाँवोँ के पते घड़ डालें?   

Monday, April 29, 2024

मुझे खबरें कहाँ से और कैसे मिलती हैं?

2005 

V अत्री: भाई का ब्याह होग्या? सबते छोटा बाज़ी मारग्या और बड़े? पार्टी तो बनती है। 

V दांगी: हाँ। बिलकुल बनती है। क्या खाना है?

और लो जी, पार्टी हो गई। क्या खाया? याद नहीं। उस पावर हाउस के पास, छोटे-से रेस्टोरेंट का नाम क्या था? याद नहीं। उस पार्टी में कौन-कौन थे? वो भी ढंग से याद नहीं। अब कम्प्युटर थोड़े ही हैं? इतने सालों बाद, इतना याद कहाँ रहता है? एक ज़माना बीत चुका जैसे। 

ये फ़तेह सिंह? ये कौन है भई? Friend List Suggestions में आ रहा है, बार-बार। फोटो की जगह खुद की फोटो नहीं और पोस्ट वगरैह सब ब्लॉक। ओह हो। तो ये कालिया है? Captain V Atri? अब कहाँ का कैप्टेन? अब तो पोस्ट भी कुछ और ही हो गई होगी।  

उसके सालों बाद, कोई दूर का रिलेटिव, दीदी कैप्टेन बोल रहा हूँ, कुछ-कुछ ऐसी-सी ही, मगर अजीबोगरीब नौटंकी खेलता है। और आपको ये अजीबोगरीब जाले से पुरते ड्रामेबाज़ समझ नहीं आते। हमने तो किसी को आप तक नहीं बोला, अगर सीनियर ना हो तो। फिर ये पोस्ट टाइटल क्या बला होता है? उसपे दीदी बोलके? फिर लगता है, कहीं ये भाई कैप्टेन वाला तो गैंग नहीं? ऐसे संबोधन शायद वहीँ होता है?     

वैसे Vi से Virus कैसे बनता है?

जब Vi  R और US या us अलग-अलग सा कुछ हो? Vijay Dangi female नहीं male हो? 

अरे Vijay Dangi नहीं, सिर्फ Vi? बस यही दो शब्द मिलते हैं, इन दो नामों में। बाकी कुछ नहीं।  

ये फ़तेह सिंह कब लगाया तुने? ये कैसे बना? और फिर वापस वही नाम आ गया? मतलब Virus वापिस? अब इसका फतेहाबाद से क्या लेना-देना? 

अबे कमीनों। इतने सालों से गोबर-गणेश खेल रहे हो। कभी लगा नहीं की बता देना चाहिए, ये कौन-सा और कैसा गोबर-गणेश है?

और ओह हो। पंडित जी, आप? बाहमण के? या कालिये? आपको तो कुछ "मालूम ही नहीं? चल क्या रहा है?" वैसे ये ट्विटर पे jack line Farnandis, नहीं Jacqueline Fernandez वाली पोस्ट कुछ समझ नहीं आई? H#16, टाइप-3, वाला JACK फल वाला पौधा है? या गाड़ी का jack, जो टायर बदलने में काम आता है? या hijack टाइप कुछ? मेरे स्टुडेंट्स ने मेरी i10 के बड़े टायर खराब किए। पंचर ऐसे की, टायर ही ख़त्म। और फिर कमेंट्री भी, मैडम गाड़ी hijack हो गई। कैसे बदतमीज़ स्टुडेंट्स हैं। और कैमरा रिकॉर्डिंग मांगो, तो वो उससे भी बदतमीज़। मैडम वहाँ तो कैमरा ही नहीं है। चाहे चारों तरफ कैमरे हों।  

कितने टायर तो पुलिस लाइन के सामने वाली टायर शॉप से लिए। जब कोर्ट में ऐसे सबुतों की बारी आई, तो दुकान ही वहाँ से गुल। और कमेंट्री, हम सबूत ही नहीं, सबुत देने वाले को ही गुम कर देते हैं। कितने ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे केस भुगते होंगे ना, की virus का उदय फिर से हुआ?

कमीनों वाली इस फोटो में कुछ और भी बच गया क्या?

भाई का ब्याह, दुबारा 2023 में?  ब्याह? या? Vi Raj Maan प्रस्तुत हों? महाराजा, दही-राज, ओह हो। Dhee-raj? पधार रहे हैं? और कैसे-कैसे लडुओं के साथ? बालकां नै टेक्नोलॉजी पढान की बजाय, हम उड़ना सिखाते हैं। या उड़ाना? दुनियाँ से ही ख़त्म कर देना? बच्चों तक को ख़त्म कर देते हैं लोग। कैसे इंसान होंगे जो ऐसा करते हैं? पर राजनीती में सब जायज़ है? वैसे कुछ लोगों की सोशल पेज पे बिमारियों से सम्बंधित कुछ नहीं मिला। कोई हिंट तक नहीं। समझ नहीं आया, की ऐसा क्यों?   

Fly भी, कैसी-स्टेज पे उतारने की? आप भी लाओ, अपनी बालाओं को?

अरे तुमने गुड़िया को डांस से मना कर दिया। करने देती, तो क्या हो जाता?     

बोले तो कुछ भी? आपको खुद को पवित्र साबित करने की जरुरत है? वो भी कैसे-कैसे अखाड़ों में? जो सबुतों को ही नहीं, सबुत वालों को या जगहों को ही खा जाते हैं? क्या सिद्ध करना चाहोगे वहाँ तुम? और बच्चों तक को, जो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाइयों का हिस्सा बनाना चाहें? बनाने देंगे आप उन्हें? जानते हुए भी, की परिणाम क्या हो सकते हैं? एलियन जहाँ जैसे?

कुछ-कुछ ऐसे?    


किसे के मायके या ऑफिस में, ऐसे-ऐसे घुसपैठिये घुसे हुए हों, तो क्या कर लोगे? 

मुझे खबरें कहाँ से और कैसे मिलती हैं? ये और ऐसी-ऐसी सोशल साइट्स भी जोड़ लो। मैं इन्हें जानती हूँ? मेरे को लगता तो नहीं ? चलो इसपे एक जोक सुनाती हूँ। जोक?

भाभी के जाने के बाद, माँ का घर आना कम हो गया था। क्यूँकि, अब वो ज्यादातर भाई के घर पे ही रहती हैं, गुड़िया की संभाल के लिए। एक दिन माँ अपने घर वाली एक अलमारी पे ताला लगा गई। और कहीं खबर मिलती है, भाभी ने ताला लगा दिया, पर रस्ते और भी हैं। और आप सोचें, ये क्या बकवास है? लोगों के इस खेल में, क्या का क्या बनता है? बोले तो कुछ भी?    

ऐसे ही जैसे, एक दिन मोदी के घर..... .... मोदी भी पता ही नहीं, कैसे कैसे हैं? कहीं मोदी लड़की मिलेगी और कहीं?   

ऐसे ही जैसे, एक दिन फलाना-धमकाना के घर और...... ..... 

पता ही नहीं कितने ही ऐसे हैं। ये इधर, ये उधर, ये किधर? कौन-कौन और किस, किसके घर घुसा हुआ है? या कहो घुसे हुए हैं और कैसे-कैसे? और महारे गाँवों के शयाने? या भोले? अनभिग, की कौन-कौन और कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे देख-सुन रहे हैं? घर वालों तक से या अड़ोस-पड़ोस तक से ऐसे छुपाते हैं, जैसे किसी सीक्रेट दुनियाँ में रहते हों। इसीलिए कान ज्यादा कटवाते हैं? और कानों के कच्चे भी ज्यादा हैं? दुनियाँ, आज कहाँ है, उन्हें पता ही नहीं। वैसे गाँव क्या, कुछ सालों पहले बहुत-से ऑफिस के लोगों तक को पता नहीं था, की ये सर्विलांस बला क्या है?    

एलियन मतलब छट (6?) 26? या शायद? जानते की कोशिश करते हैं, अगली किसी पोस्ट में।                

कैसे चुनाव? किसके चुनाव? किसके द्वारा हैं, ये चुनाव?

लुभावने गाने, 

लुभावने नारे, 

कितनी ही तरह के 

हैं सब कितने प्यारे-प्यारे?

खासकर, जब चुनाव हों?  

चुनाव? सच में?

कैसे चुनाव?

किसके चुनाव?

किसके द्वारा हैं, ये चुनाव?  

वो जनता जिन्हें सपने दिखाते हो, 

ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे? 

सच में उनके लिए काम करते हो?

या ये खेल, रेलम-रेल, पेलम-पेल, कुछ और ही है?    

Peppy songs, 

Catchy slogans 

Of different hues 

Of different parties 

But 

What's there for people in these elections? Especially when so many people or parties can do so much better than what they are doing.

कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, जैसी-सी कहानियाँ

अभी पिछले साल (?) दो भाई-बहन दुबई की सैर पे गए। हाँ, तो क्या खास है? दुनियाँ जाती है। बहन की फिर शादी हो गई, इंटरकास्ट और भाई ने ज़मीन हड़प ली, किसी अपने की ही। होता रहता है, इसमें भी क्या खास है? किसी पियक्कड़ की ज़मीन, कोई भी हड़प ले? फिर ये तो शायद किसी अपने ने ही ली है, protection के लिए। बिचौलिया अहम है।   

सोचो इन सबका दुबई-बाढ़ से क्या लेना-देना?    

रैली पीटें थोड़ी? भाई-बहन की? बिचौलिए की? ऐसी शादी की? और ऐसे protection की? ये रैली कौन और किसकी पीट रहा है? या पीट रहे हैं? कहाँ-कहाँ और किन-किन लोगों की? कौन-कौन पार्टियाँ या उनके कर्ता-धर्ता? इस सबका किसी को दुनियाँ से ही खिसकाने से भी कोई लेना-देना हो सकता है? खिसकाने वाले कौन और नाम किसका लगाने की कोशिश हुई? अजीबोगरीब जाले हैं, ना? वहाँ फिर क्या लाकर रख दिया? किसने और कैसे? ये कौन अपने हैं, जिन्होंने ये सब रचा? आम आदमी? उसकी समझ से बाहर है, ये कहानी। या ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी, कहानियाँ। ये वो बता सकते हैं, जो आदमी को रोबॉट बनाते हैं। वो फैक्टरियाँ, जो दुनियाँ भर में ये सब करती हैं। अहम? कैसे? और आम आदमी को ये सब कैसे समझ आएगा? उसके लिए उसे कैंपस क्राइम सीरीज़ को समझना होगा।        

अच्छा ये ED-ED क्या है? ये ED-ED? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे EC-EC?      

ED के आगे B लगे तो क्या बनता है? B. ed? या B. ED? या Bed? या खाटू? खाटू के कितने रंग हैं? झंडे के? इतने क्यों? ये हिन्दू है? मुस्लिम है? क्रिस्टियन? या सिख?

B. ED कितने में होती है?

जो B.ED करवाते हैं, वो खुद कितने पढ़े-लिखे हैं? 75000, एक साल के, एक B.ED करने वाला देता है? एक साल में, एक ही कॉलेज से कितने B.ED करते हैं? ये so-called कॉलेज वाले, एक साल में सिर्फ B.ED से ही कितना कमाते हैं? वो भी शायद, घर बैठे? टीचर्स क्या करते हैं? और उसके बावजूद कितना कमाते हैं? उनकी कमाई घर बैठे-बैठे ही कौन-कौन खा जाता है? क्यों? वो इतने नालायक क्यों हैं? कैसी डिग्री के लिए इतने पैसे देते हैं? ये शायद वो प्रश्न हैं, जो मुझे रितु (भाभी) ने या उस वक़्त मेरे कुछ अपनों के यहाँ विजिट्स ने समझाए। बहुत कुछ उसके काफी बाद में समझ आया। शायद ये भी, की रितु को और उसके घर को कौन खा गए? और नाम फिर किसका लगाने की कोशिशें हुई? 


ये भी की आज तक यूनिवर्सिटी, मेरा पैसा क्यों रोके हुए है?

ये भी की भाभी के जाते ही, ये किस खास अपने बिचौलिए ने, so-called अपनों को ही, दूसरे भाई की ज़मीन थमा दी? 

बहुत से so-called अपनों के शब्द भूलते नहीं हैं। जम गए हैं, जैसे कहीं। जैसे, "देख दम, मेरी आपणे घर मैं भी चालय, अर थारे भी। थाम भी चला लो न (माँ-बेटी)।" भाभी के जाने के बाद, जब बुआ-दादी को भी किनारे करने की कोशिशें हो रही थी। और गुड़िया को कहीं और पार्शल करने की। कहना तो चाह रही थी, की चाल्या तो तब करेय ना, जब कोई चलाना चाहे। पर ना वक़्त था इतना बोलने का और ना अकसर मन होता, ऐसे गँवारों से तू-तू, मैं-मैं करने का। यहाँ तो यही नहीं समझ आता, की लोग दूसरों के यहाँ अपनी चलाना क्यों चाहते हैं? अपनी ज़िंदगी अपने अनुसार चल जाय, वो बहुत नहीं होता? ज्यादातर, अपना शरीर ही नहीं चलता, अपने अनुसार तो। पता नहीं कब, कहाँ और क्या हो जाता है? और ठेकेदारी औरों के घर, अपने अनुसार चलाने की चाहतें? पता चल गया होगा अब तक तो, ऐसे लोगों को भी थोड़ा-बहुत शायद? ये वो दुनियाँ है, जहाँ बीमारियाँ और ऑपरेशन तक, राजनीती के कोढों के अनुसार होते हैं। इधर वालों को कोई पार्टी धकेल रही होती है और उधर वालों को कोई और। काटते रहो, एक दूसरे को ही।  

बहुत ज़बरदस्त खिचड़ी पकी होती है, ऐसे सामान्तर घड़ाईयोँ में। और भी अहम। ये घढ़ाईयाँ घड़ती राजनीतिक पार्टियाँ हैं। और आम-आदमी, एक-दूसरे को ही कौस रहा होता है। कैसे?

जैसे एक भाभी ने बताया की उसने B.ED करने के 60000 एक साल के दिए थे। तो दूसरी ने बताया, 75000 लेते हैं। नहीं। ये उन्होंने नहीं बताया। मैं जहाँ कहीं जाती, अकसर वहाँ उन लोगों के पास कहीं से भी फ़ोन आ जाते थे, उन्होंने बताया? उसपे कमेंट्री फिर कहीं, किसी आर्टिकल में, या सोशल मीडिया पे मिलती, की यहाँ घड़ाई क्या चल रही है। बहुत-सी पार्टियों की इधर या उधर पहुँच या घुसपैठ, कुछ हद तक ऐसे समझ आई।  

ऐसे ही जैसे, जब कुछ अपनों ने बोला, तुम अपना हिस्सा क्यों नहीं ले लेते। इस सोशल मीडिया या आर्टिकल्स ने ही बताया, की ये सब क्या था। Indirect ways to inform about indirect tunnels of different parties . अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग तरह के उकसावे, तरीके फूट डालो, राज़ करो के? 

आप जहाँ कहीं जाते हैं या देखते हैं या समझने की कोशिश करते हैं, यूँ लगता है, ये तो इन्हीं के खिलाफ रखा हुआ है। और ये, ये सब ऐसे कर रहे हैं, जैसे किसी और के खिलाफ। ऐसे ही शायद, जैसे कोई आपको चिढ़ाने या तंग करने की कोशिश में, खुद की ही रैली पीटने लगें?   

कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा? जैसी-सी कहानियाँ हैं ये। इधर भी और उधर भी।          

दुबई में बाढ़?

इससे पहले भी कभी सुना की दुबई में बाढ़ आई हो? मैंने तो नहीं। हो सकता है, मेरी जानकारी में ना हो। अभी जो दुबई बाढ़ का जिक्र हुआ, वो कौन-कौन से चैनल्स पे हुआ? अहम?

उन्हीं चैनल्स पे क्यों हुआ? बाकी पे क्यों नहीं?

जिन-जिन चैनल्स पे हुआ, वो किस-किस पार्टी के हैं? या किनके पक्ष में हैं? और भी ज्यादा अहम है, शायद?

चलो मान लिया की सच में बाढ़ आई। तो ऐसा कैसे संभव है? क्या बाढ़, आँधी, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायेँ, कृत्रिम रुप से लाई जा सकती हैं? अगर हाँ, तो कैसे? कहाँ-कहाँ, ऐसी विज्ञान और टेक्नोलॉजी का प्रयोग हो रहा है? और कहाँ-कहाँ दुरुपयोग?     

बच्चों की किताबों को थोड़ा अपडेट करने की जरुरत है। अगर वो अपडेट ना भी हों, तो भी कम से कम टीचर्स को तो ये काम अपनी जिम्मेदारी समझ करना चाहिए। 

साथ में ये भी बताएँ की प्रकृति से ऐसा खिलवाड़, इंसान के लिए कितना फायदे या नुकसान का सौदा है?

कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे इस या उस पार्टी के कोढ़ के अनुसार, बिमारियों की भरमार। जैसे ना हुई बीमारियाँ बनाई जा रही हैं या कहो की घड़ी जा रही हैं। वैसे ही रेगिस्तान जैसे इलाकों में बाढ़ है। 

टेक्नोलॉजी और पैसा इतना ही फालतु है, तो अमेरिका जैसे देश, एरिज़ोना जैसे राज्यों में कैक्टस की बजाय, कुछ अच्छा क्यों नहीं उगाते? भारत जैसा पिछड़ा देश, मुंबई जैसे शहरों में ऐसे एक्सपेरिमेंट की बजाय, राजस्थान जैसे इलाकों को क्यों नहीं हरा-भरा कर लेता? संभव तो शायद बहुत कुछ है मगर?

मानव रोबॉटों और मानव रोबॉट फैक्टरियों की "अजीबोगरीब-कहानियाँ"

वो तुम्हारे अपने तो हैं 

मगर वो उन अपनों के घरों में और दिमागों में 

कुछ ऐसे घुसे हुए हैं 

की काम उन्हें ,

तुम्हें और खुद को ही गिराने का दिया हुआ है।  


वो जो खुद के ही ना हुए, 

वो तुम्हारे कैसे होंगे?

क्यूँकि, आगे बढ़ने वाले 

दूसरों को भी साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। 


मगर, जो कहें, खुद तो आगे बढ़ेंगे 

वो भी तुम्हे दल कर? 

और तुम्हें ही प्रयोग कर? 

वो भी तुम्हारे अपने और तुम्हारे अपनों के खिलाफ? 

वो अकसर खुद भी, 

कहीं ना कहीं शायद, अटक और भटक जाते हैं?  


केस स्टीडीज़, जो अचंभित-सा करती हैं, फैली पड़ी हैं, चारों तरफ।   

दुबई बाढ़ से ही शुरू करते हैं। 

Thursday, April 25, 2024

दिमाग और तंत्रिका तंत्र?

16 मतलब?

शिव?
ये 16 + (plus) है 
या T? 
या जीसस का चिन्ह?

या?  
विज्ञान को पढ़ें?

आस्थाओं को?

राजनीती और टेक्नोलॉजी को?

या छल-कपट को?

या इन सबकी खिचड़ी को? 

इस 16 और 6 के बीच जैसे, सारा समाज आ जाता है। 
नहीं?

इतना भला गानों में कौन देखता-समझता है? लिरिक्स सुनते हैं और उन्हीं में रम जाते हैं?

ये नंबर कुछ और भी हो सकते हैं 
ऐसे ही गाना या विवरण या वर्तान्त (narrative) 
या धारणा या अवधारणा (perception) भी कुछ और हो सकता है 

 दिमाग और तंत्रिका तंत्र? 
या 
Brain and Neural Networks और AI?

के बीच जैसे, सारा समाज आ जाता है। 
नहीं?

तंत्रिका तंत्र, जो सन्देश को इधर से उधर पहुँचाने का काम करता है। और दिमाग, आपको समझ क्या आया? उसके अनुसार, और आपके परिवेश के अनुसार, किसी भी विषय-वस्तु को देखता है और समझता है।  

जैसे किसी ने कोई गाना देखा और भद्दी राजनीती के बिना सिर और पैर के भूतों में उलझ गया। ज्यादातर के साथ, आज यही हो रहा है। क्यूँकि, आपका सोशल कल्चर मीडिया, आपको यही परोस रहा है। 
किसी के लिए उसी गाने का मतलब, भूतों से पैसे कैसे कमाएँ या कुर्सियाँ कैसे पाएँ भी हो सकता है। उनका दिमाग, उसी सोशल कल्चर को अपने व्यवसाय के लिए भुना रहा है।   

वो सब अपना काम कर रहे हैं। वो चाहे राजनीती है या मीडिया या कोई व्यवसाय। इसमें आप क्या कर रहे हैं? एक तो भूत, वो भी किसी और के, किसी गए गुजरे ज़माने के। उसपे उनको आपकी ज़िंदगियों में घुसाना? क्यूँकि, जिनके भूत हैं, वो उन्हें कब के भूत बना चुके। भूत, जो आज या कल कभी नहीं हो सकता। हाँ। उनकी हूबहू जैसी सी कॉपी (alter ego) जरुर बनाई जा सकती है। ये कॉपी करना या बनाना ही बड़ा खेल है। 

आपके लिए क्या है ऐसी राजनीती या मीडिया? कुछ देर का सिर्फ मनोरंजन का साधन? जैसे कोई सास-बहु सीरीज टाइप? या भूतों की फिल्में या गाने? या ये महज़ मनोरंजन ना होकर, आप लोगों की ज़िंदगियों को कहीं गर्त में धकेल रहा है? आप पर कोई भद्दी सामान्तर घड़ाई तो नहीं चल रही? और आप जाने-अंजाने उसका हिस्सा बन रहे हैं? क्या आपको कोई बता रहा है, की उसका असर आपकी अपनी ज़िंदगी पर क्या होगा? या आपके बच्चों या आसपास पर क्या होगा? ये कैसी राजनीतिक पार्टियाँ हैं, जो आपको हर तरह से लूट रही हैं? ऐसे मुद्दाविहीन, भद्दे-भंडोलों वाले चुनावों की, या ऐसे चुनकर आए नेताओं की, किस और कैसे समाज को जरुरत है?   

दुबई डूब गया? सच में? कैसे? कब? क्यों? क्या चल रहा है, ये सब? Mind Control? दिमाग को कंट्रोल करना। अपनी ही तरह की ट्रेनिंग देना। इधर भी, उधर भी। देखो जिधर, सुनो जिधर, उधर? मानव रोबॉट बनाने के तरीके हैं ये। 
अगली पोस्ट, दुबई से ही शुरू करते हैं। जानने की कोशिश करते हैं की कैसे, बच्चों, युवाओं और बुजर्गों तक को, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे जालों का हिस्सा बना, उनमें उलझा दिया जाता है। और उन्हें खबर तक नहीं लगती, की उनके साथ ऐसा किया जा रहा है।                      

Wednesday, April 24, 2024

Story, Board and Games (GM)

GM अगर बोलें तो आपके दिमाग में क्या आएगा?

Grand Master? Chess?

Gmail?   

 Genetically Modified? BT Cotton? 

कोई GM सरकार जैसे?

या ?  

पता नहीं क्यों इस गाने को देखा तो लगा, ये तो किसी GM fight-सा है शायद?  

GM 
पेपर्स 
पंखा 
6:16? A? 

सीढ़ियाँ, टिफ़िन?
Car Start? (Look)   
ND 2 (Low Patrol Sign)?
कार से बाहर पीछे?   
बॉस से झगड़ा या डाँट?
बॉस बीच में (एक तरफ लाइट और दूसरी तरफ?)?
ऑफिस से बाहर?
और फिर से कार मगर? कुछ बदला बदला सा है?     

जो बदला हुआ था वो अब कुछ साफ़ दिख रहा है?
Alter Ego Fight? एक में कोट है, दूसरे में नहीं? अब कार कोट वाले के पास है? और? पीछे उल्टा U जैसा कुछ? पहले सफ़ेद बाहर था, रस्ट या लाल सा रंग अंदर। अब सारा का सारा सफ़ेद?
लाइट अहम?
ऑफिस के 2 गॉर्डस और ऑफिस से बाहर?           


6 : 15 ?
Dusted?
Blooded gambling?  


टिफ़िन फिर से है उन्हीं सीढ़ियों में मगर?
दिवार पे जीसस टंगा है? और खिड़की पीली?
सोने की चेन उड़ गई?
साइको एंट्री?     


वही फिर से बिखरे-बिखरे से पेपर?
मगर?
दरवाज़ा बंद?

ये 16 + (plus) है या T? या जीसस का चिन्ह?
या 16 मतलब?
शिव?
या?  
विज्ञान को पढ़ें?
आस्थाओं को?
राजनीती और टेक्नोलॉजी को?
या छल-कपट को?
इस 16 और 6 के बीच जैसे, सारा समाज आ जाता है। 
नहीं?
इतना भला गानों में कौन देखता-समझता है? लिरिक्स सुनते हैं और उन्हीं में रम जाते हैं?

Story-Board-Games

Story-Board-Games

इसमें सारी दुनियाँ आ गई। आपकी, मेरी, इसकी, उसकी और भी ना जाने किस, किसकी। फिर फर्क नहीं पड़ता की आप पढ़े लिखे हैं या अनपढ़। कम पढ़े लिखे हैं या ज्यादा? नौकरी करते हैं, इसकी, उसकी या किसकी? कोई अपना व्यवसाय है या बेरोजगार हैं? गरीब हैं? अमीर हैं? या मध्यम वर्ग? महल में रहते हैं या झोपड़ी में? भगवान में विश्वास करते हैं या नहीं। यहाँ आपको सब देखने को मिलता है। किस्से-कहानीयों में। इनके किस्से कहानी या उनके किस्से कहानी या जिस किसी के भी किस्से कहानी। जिनमें बहुत बार ऐसा लगता हैं ना की ये तो इसके या उसके या शायद आपके खुद के साथ ही जैसे हो रखा हो? क्यूँकि, किस्से कहानियाँ समाज से ही आते हैं। बस उनमें थोड़े कम या ज्यादा सुनाने या दिखाने वालों के भी तड़के लग जाते हैं। 

तो किस्से-कहानी मतलब Story 

कहानी के अलग-अलग हिस्से या क्रोनोलॉजी मतलब Story Board 

इसी Board को अगर Classes से थोड़ा आगे कुर्सियों का हिस्सा बना दें, तो हो गया Board Games. मतलब दिमागी खेल, जो मीटिंग्स या फाइल्स के द्वारा चलते हैं। ये किसी भी सिस्टम का दिमाग हैं। दिमाग जैसे शरीर को चलाने के लिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों का प्रयोग करता है। ये भी समाज का प्रयोग या दुरुपयोग ऐसे ही करते हैं। अब वो प्रयोग हो रहा है या दुरुपयोग, इसका अंदाजा वहाँ के समाज के हालातों से लगाया जा सकता है। 

दिमाग के संदेशों को आगे बढ़ाने के लिए जैसे तंत्रिका-तंत्र काम करता है, ऐसे ही इन Board Games को आगे बढ़ाने के लिए या इनके किर्यान्वन के लिए इनकी फैलाई गई शाखाएँ और उनके समाज पर प्रभाव। Networking . कुछ-कुछ जैसे Neural Networks. ये नेटवर्क्स अहम हैं। ये आपका भला चाहने वाले हैं तो ज़िंदगी सही जाएगी। लेकिन इन्हीं में अगर गड़बड़ है, तो वो ज़िंदगियाँ या समाज का वो हिस्सा ज्यादातर झेलता मिलेगा। इसपर फिर कभी आसपास के ही केसों के माध्यम से। 

अभी अगली पोस्ट में Story Board Games को थोड़ा और जानने की कोशिश करते हैं। 

धर्म? विश्वास? आस्था? रीती-रिवाज़? या?

धर्म? विश्वास? आस्था? रीती-रिवाज़?    

या? 

पढ़े-लिखों का राजनितिक अखाड़ा?  

Story 

Board 

Games 

Story Board?

कहानी, जैसे किस्से-कहानियाँ? इनके (आम आदमी) किस्से-कहानियाँ? या उनके किस्से-कहानियाँ? या उनके या किनके किस्से-कहानियाँ?   

धर्म? विश्वास? आस्था? रीती-रिवाज़? या ऐसा कुछ भी, जो आप सोचते हैं या सोच सकते हैं? या करते हैं? या कर सकते हैं?     

Board Games?  

शिक्षा? शिक्षा का अखाड़ा? पढ़े-लिखों के किस्से-कहानियाँ? या ऐसा कुछ भी, जो ये पढ़े-लिखे सोचते हैं या सोच सकते हैं? या करते हैं? या कर सकते हैं? 

इन पढ़े-लिखों में ज्यादातर वो पढ़े-लिखे नहीं आते, जो सिर्फ और सिर्फ नौकरी के लिए डिग्रीयाँ लेते हैं। या सिर्फ और सिर्फ, पैसे के लिए नौकरी करते हैं।         

और बन गया एक ऐसा सिस्टम या जहाँ, जो ये बनाते हैं या बनाना चाहते हैं। 

Games? दिमागी खेल? = पढ़े लिखे 

               बातों ही बातों में या मिल-बैठकर काम करने वाले या निकालने वाले। 

              या निरे लठ मार = ? ज्यादातर को पता ही नहीं होता, ये मिलबैठकर बात करना क्या होता है? यहाँ   

               जिसकी लाठी, उसी की भैंस होती है।   

शिक्षा हमारा मनोरंजन करती है, और मनोरंजन? वाली पोस्ट से इस पोस्ट का क्या लेना-देना?

शिक्षा हमारा मनोरंजन करती है, और मनोरंजन ?

 शिक्षा हमारा मनोरंजन करती है? 

और मनोरंजन हमें शिक्षा देता है?

एक गाने से ही जानने की कोशिश करें?  


क्या होता है, जब आप कुछ भी सिर्फ देखते हैं?
सुन नहीं पाते, या जो सुनते हैं, वो समझ नहीं पाते?
जैसे ये गाना रशियन में है। 

अगर हम रशियन नहीं भी समझते, तो भी बहुत कुछ देख पा रहे हैं। 
वो जो आप देख पा रहे हैं, वो कोई तस्वीर बना रहा है आपके दिमाग में। 
कोई धारणा या अवधारणा (perception), बिठा रहा है, आपके दिमाग में। 
   
क्या धारणा है वो?

आपको जो समझ आया, उसे आप अपने दिमाग में रखिये। 
अगली पोस्ट में उसमें कुछ और जोड़ते हैं। 

Monday, April 22, 2024

Earth Day?

धरती का भी दिन होता है? सुना है, है, 22 अप्रैल। 

किसने शुरू किया होगा? क्यों शुरू किया होगा? और क्या सोचकर? इतने सालों पहले भी लोगों को धरती की चिंता होती थी। और आज भी होती है? अच्छा है। 

जैसे आज के हमारे नेता लोग, शायद कुछ-कुछ ऐसे बोलते हैं --

Save Earth   


और मेरे जैसे को किसी को लग रहा हो। अरे। ये तुमने H#30, Type-4 में क्या मचा रखा है? पीछे के लॉन की घास फाड़कर, आगे के लॉन में और आगे के लॉन की घास फाड़कर, पीछे के लॉन में? ये MDU वाले कैसी पढ़ाई करवा रहे हैं, तुमसे? ये बागवानी वगैरह का शौक तो सही है, मगर ये इधर-उधर, कैसे-कैसे एक्सपेरिमेंट्स में लगी रहती हो तुम? कुछ शौक, कुछ एक्सपेरिमेंट्स और कुछ मजबूरी शायद? जब आपसे सब हॉउस हेल्प्स छीन लिए जाएँ? तो आप खुद ही एक मजदूर भी हो जाते हैं। नहीं? जब उसी दिन ये विडियो ऑनलाइन देखी तो एक बार तो लगा, कुछ भी? कैसे-कैसे फेक वीडियो और फोटो बनाके पेलते रहते हैं, लोग? अब इतने महान नेता लोग, ऐसी उबड़-खाबड़ घास बीच में रख कर, कोई मीटिंग करेंगे या ऑनलाइन कांफ्रेंस?  
 
अब अमेरिकन हैं तो ऐसा कुछ संभव है शायद, जैसे गोल्फ़ पे BIDEN और TRUMP तू-तू, मैं-मैं? अब वो चारा घोटाला या चाय, कॉफी या पकौड़े बेच लो, थोड़े ही करेंगे? खैर। आपके यहाँ धरती दिवस पे क्या करते हैं? 

Crazy, Crazy World!

 वो गाने ऐसे देखती है, जैसे नंगी-पुंगी गुड़ियाँ । ऐसे लोगों के लिए --

वो experiment ऐसे करते हैं, जैसे सालों पहले किसी ने बोला था, एक ऐसा Forensic चल रहा है, जहाँ सब नंगा-पुंगा है। लोग इंसानों पे जानवरों से भी बदत्तर experiments कर रहे हैं। और जिसमें पुलिस, डिफ़ेंस, सिविल, इंटेलिजेंस सब शामिल हैं। ईधर भी और उधर भी।  


यहाँ तक तो लैब के नंगे-पुंगे से experiments ही थे?
अरे नहीं, यहाँ Adam ruins everything भी आ गया लगता है। बच्चों के IPAD छोड़े, ना फोन।  

फिर पता चले की, एक ऐसा जहाँ भी है। जहाँ उधेड़ डालते हैं। खाल ही नहीं, शरीर के अंदरुनी भाग भी। अब ये कौन-सा जहाँ है? ये राजनीतिक युद्ध हैं, जो दुनियाँ भर में चलते ही रहते हैं। 24 घंटे, 365 दिन, बिन रुके। जहाँ सब कुछ धकाया जाता है, पार्टियों के जुए के अनुसार। इधर से उधर, उधर से इधर। और लोगों को पता तक नहीं होता, की वो सब अपने आप नहीं होता। लोगों की बिमारियाँ और मौतें, उस अल्टीमेट खेल (जुए) का सबसे घिनौना खेल हैं। जिसमें किसी को नहीं बक्सा जाता। बच्चे क्या, बुजुर्ग क्या, औरत क्या, पुरुष क्या। इंसान क्या, जानवर क्या, पेड़-पौधे क्या, किट-पतंग क्या। जब आप इस जहाँ को देखने और समझने लगते हैं, तो राजनीती क्या, जैसे दुनियाँ से ही मोह भंग होने लगता है। फिर क्या बॉर्डर के इस पार और क्या बॉर्डर के उस पार?

अब अगर शशि थरुर और इमरान खान को ही लें, तो शायद कुछ कहें womanizers? जिसपे यहाँ-वहाँ कितने ही मीम और चुटकुले भी मिल जाएँगे। और कुछ कहें, अपने-अपने विषयों के अनोखे एक्सपर्ट्स? उसपे भी कितना कुछ मिल जाएगा। और भी बहुत कुछ हो सकता है। 

कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, निकोल किडमैन ब्रैस्ट सर्जरी? ये सब कैसे मिलते-जुलते हैं? वैसे ही जैसे शायद, एक आम आदमी इनके बारे में बताएगा या कोई बायोलॉजी लेक्चर अपनी किसी क्लास में? किसी को उनके निजी ज़िंदगी में मिर्च-मसालों के तड़कों के बारे में बात करना पसंद आएगा। तो शायद कोई स्वास्थ्य पर बाजार के बढ़ते दुष्प्रभावों के प्रति बताता नज़र आएगा? कितने प्रतिशत चांस फलाना-धमकाना कैंसर होने के हैं और कितने सालों या डिकेड के बाद, यही जानकर आप अपनी ब्रैस्ट ही उड़वा दो? आपके पास पैसा फालतू है शायद? और जिन्होंने ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे टेस्ट इज़ाद कर दिए, उन्हें लूटने के तरीके मालूम हैं? अब वो निकोल किडमैन या ऐसी ही कोई हस्ती है, तो शायद फर्क नहीं पड़ता?

लेकिन आम इंसान हो तो? उसे भी कहाँ फर्क पड़ता है? ये धंधा आम है और उसे खबर तक नहीं होती। अब किसको कौन-सी बीमारी होगी, ये भी कोड बताएगा? और वहाँ का कोड वाला सिस्टम उसमें सहायता करेगा? ये तो हॉस्पिटल्स और डॉक्टर्स को बदनाम करने जैसा हो गया ना? नहीं। जब सिस्टम की बात होती है तो उसमें बहुत कुछ आता है। और अहम, ज्यादातर डॉक्टर्स को भी बहुत बार पता नहीं होता और डायग्नोस्टिक के सहारे ही चलते हैं? अब इसमें कितना सच है, ये तो डॉक्टर ही बता सकते हैं। या शायद कोरोना काल, कुछ-कुछ ऐसा ही गा रहा था?    
यहाँ कौन सा गाना सही रहेगा? Save Earth by Micheal Jackson? या? ये थोड़ा ज्यादा हो गया, कोई और? 

India's Shashi Tharoor and Pakistan's?

इसे-इसे, माणसां पै कुछ जमता-सा नहीं है ना, भारत का शशि थरुर और पाकिस्तान का इमरान खान?

ये तो  India's Shashi Tharoor and Pakistan's Imran Khan ही कहने में थोड़े जमते-से हैं? 

हिंदी में यूँ कह सकते हैं, 

वो किसना है? 

या 1, 2 का 4?


और हरियान्वी में ? 

जो अपने आपको ठेठ हरियान्वी समझते हैं, वो बताएँ?

वैसे गानों से परे, वापस शशि थरुर और इमरान खान पे आएँ? आप क्या सोचते हैं, इन दो महानों के बारे में? एक बॉर्डर के इस पार और दूसरा? बॉर्डर के उस पार?

Depends की सन्दर्भ क्या है? अगली पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं। 

चित भी मेरा, पट भी मेरा? पल्टुराम छल-कपट (Maneuvers)? Social Tales of Social Engineering

राजनीतिक पार्टियाँ कितनी पलटी मारती हैं? कितनी भी मार सकती हैं? शायद इतनी की आम आदमी उनका ABC तक ना समझ पाए? चलो छोटे से उदहारण से ही जानने की कोशिश करते हैं।  

आप कौन हैं?  

आपके माँ-बाप, भाई-बहन, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, मामा-मामी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, दादा-दादी, उनके बच्चे और भी कितने ही रिश्ते? जो हैं, वही हैं? या वक़्त के साथ बदल जाते हैं? या फिर क्या वक़्त के साथ बदल जाता है? और क्या ना बदलता और ना ही आप बदल सकते?  

आप कहाँ पढ़े हैं? कहाँ रहते हैं? या रहे हैं?

कहाँ तक पढ़े हैं? 

क्या करते हैं? या पहले कर चुके? 

जो है, वही है? या बदल जाता है?

आपके नाम बदलने से? 

नाम का कोई एक अक्सर या शब्द बदलने से? 

जगह का पता बदलने से? 

घर का नंबर बदलने से? 

या स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी या कोई नौकरी बदलने से? या शायद एक तरह की नौकरी की बजाय, कोई और नौकरी करने से? आपकी पोस्ट या कुर्सी बदलने से? आपके रिश्ते-नाते बदल जाते हैं क्या? जो खून के हैं या स्थाई हैं, वो तो नहीं बदलते शायद? तो क्या बदल जाता है?

परिवेश? आसपास? आसपड़ोस? लोगबाग? जीव-जंतु? पशु-पक्षी? पेड़-पौधे? हवा-पानी? खाना-पीना? बोलचाल, बोलचाल की भाषा? पहनावा? और भी शायद बहुत कुछ?

क्या है जो कहीं भी जाएँ, तो नहीं बदलता? 

राजनीती में स्थाई क्या है? है, कुछ? कौन किसका है? कब तक है? है, तो क्यों है? या नहीं है, तो क्यों नहीं है? राजनीती में नीतियाँ ही स्थाई नहीं होती। वो कैसे और क्यों बदलती हैं? और किसके लिए बदलती हैं? ये तक अकसर राज रहता है। क्यूँकि, जैसा यहाँ दिखता है, वैसा होता नहीं। और जो होता है, वो अकसर दिखता नहीं।      

चलो अगली पोस्ट में, एक किसी आम इंसान की ज़िंदगी से समझने की कोशिश करते हैं।     

Sunday, April 21, 2024

कैसी ये स्याही (Ink) होगी? कैसा चुनाव और कैसा तंत्र? (Social Tales of Social Engineering)

 पीछे पोस्ट में मेरी तरफ से भारत में चल रहे चुनाव का बहिष्कार था। 

अब ऊँगली पे लगने वाली स्याही का बहिष्कार है। 

कैसा चुनाव और कैसा तंत्र?     


 कैसी ये स्याही (Ink) होगी? 

लोगों को सतर्क करने की ज़रुरत है, शायद?




कैसे-कैसे उजाले?
और कैसे-कैसे अँधेरे?  
2017 Chemicals Abuse? 


2018 या 2019?
Pink Bouganvillea  

और इन chemicals (abuse) के नाम कहाँ से पता चलेंगे? 
In case, anyone can?
Simple high dose pesticides or diluted form of acids?

वैसे तो कितनी ही बीमारियाँ हैं, जिनपे लिखा जा सकता है। ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता, की या तो उन्हें वो बीमारी है ही नहीं, जो diagnose कर दी गई है। या वो लक्षण हैं, आसपास के ज़हरीले वातावरण के। वो ज़हर पानी में हो सकता है। हवा में हो सकता है। और खाने-पीने में भी हो सकता है। या ऐसी किसी भी वस्तु में हो सकता है, जिसके आप जाने या अंजाने सम्पर्क में आते हैं। कॉस्मेटिक्स में हो सकता है, जैसे कोई भी लगाने की क्रीम वगैरह या नहाने-धोने का साबुन, शैम्पू। दवाई में हो सकता है। घर के साफ़-सफाई के सामान में हो सकता है। 

या शायद वो नीली-सी या बैंगनी-सी या थोड़ी काली-सी स्याही में भी हो सकता है, जो आपकी ऊँगली पे वोट डालने के बाद लगती है। थोड़ा बहुत शायद भारत के CJI बता सकें? वैसे ये वाली स्याही ऊँगली पे ही लगती है ना, कहीं कलाई पे तो नहीं?

जैसे सालों-साल फाइल्स में चल रहे ऊटपटाँग रिश्तों को टाटा, बाय-बाय किया था। वैसे ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा, लोगों पर अपनी-अपनी तरह के भद्दे-धब्बों, ठपों और मोहरों को टाटा, बाय-बाय। एक शुरुवात, इस गुप्त कोढ़ सिस्टम को उखाड़ फ़ेंकने की, ताकी कम से कम आगे की पीढ़ियों को ये ना झेलना पड़ें। थोड़ा मुश्किल है, पर असंभव तो नहीं। कम से कम, एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं। 

तो क्यों बात हो इशारों में? क्यों "दिखाना है, बताना नहीं" बनते रहें, लोगों की ज़िंदगियों की बीमारियाँ या मौतों तक की कहानियाँ? क्यों ना खुल कर बात हो, राजनीती या सिस्टम की थोंपी गई बिमारियों की और मौतों की, उनके कोढों के साथ?    

कैसी ये स्याही (Ink) होगी? कैसा चुनाव और कैसा तंत्र?

पीछे पोस्ट में मेरी तरफ से भारत में चल रहे चुनाव का बहिष्कार था। 

अब ऊँगली पे लगने वाली स्याही का बहिष्कार है। 

कैसा चुनाव और कैसा तंत्र?     


 कैसी ये स्याही (Ink) होगी? 

लोगों को सतर्क करने की ज़रुरत है, शायद?




कैसे-कैसे उजाले?
और कैसे-कैसे अँधेरे?  
2017 Chemicals Abuse? 


2018 या 2019?
Pink Bouganvillea  

और इन chemicals (abuse) के नाम कहाँ से पता चलेंगे? 
In case, anyone can?
Simple high dose pesticides or diluted form of acids?

वैसे तो कितनी ही बीमारियाँ हैं, जिनपे लिखा जा सकता है। ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता, की या तो उन्हें वो बीमारी है ही नहीं, जो diagnose कर दी गई है। या वो लक्षण हैं, आसपास के ज़हरीले वातावरण के। वो ज़हर पानी में हो सकता है। हवा में हो सकता है। और खाने-पीने में भी हो सकता है। या ऐसी किसी भी वस्तु में हो सकता है, जिसके आप जाने या अंजाने सम्पर्क में आते हैं। कॉस्मेटिक्स में हो सकता है, जैसे कोई भी लगाने की क्रीम वगैरह या नहाने-धोने का साबुन, शैम्पू। दवाई में हो सकता है। घर के साफ़-सफाई के सामान में हो सकता है। 

या शायद वो नीली-सी या बैंगनी-सी या थोड़ी काली-सी स्याही में भी हो सकता है, जो आपकी ऊँगली पे वोट डालने के बाद लगती है। थोड़ा बहुत शायद भारत के CJI बता सकें? वैसे ये वाली स्याही ऊँगली पे ही लगती है ना, कहीं कलाई पे तो नहीं?

जैसे सालों-साल फाइल्स में चल रहे ऊटपटाँग रिश्तों को टाटा, बाय-बाय किया था। वैसे ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा, लोगों पर अपनी-अपनी तरह के भद्दे-धब्बों, ठपों और मोहरों को टाटा, बाय-बाय। एक शुरुवात, इस गुप्त कोढ़ सिस्टम को उखाड़ फ़ेंकने की, ताकी कम से कम आगे की पीढ़ियों को ये ना झेलना पड़ें। थोड़ा मुश्किल है, पर असंभव तो नहीं। कम से कम, एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं। 

तो क्यों बात हो इशारों में? क्यों "दिखाना है, बताना नहीं" बनते रहें, लोगों की ज़िंदगियों की बीमारियाँ या मौतों तक की कहानियाँ? क्यों ना खुल कर बात हो, राजनीती या सिस्टम की थोंपी गई बिमारियों की और मौतों की, उनके कोढों के साथ?    

कैसे युद्धों की दास्ताँ हैं ये?

कितने ही निशान कहाँ जाते हैं? 

वो तो रह जाते हैं अक्सर,

वो सुन्दर-सी मैम, 

जिन्हें देखा एक दिन कहीं 

और जाने क्यों,

देखती ही रह गई 

कुछ और कैंसर याद आ गए थे 

शायद ईधर-उधर। 


ऐसे ही जैसे, 

वो जबरदस्ती जैसे, 

बालों को उड़ाने का प्रोग्राम चला था 

"आप पे छोटे बाल सुन्दर लगेंगे" 

मगर कितना कुछ जानकर भी 

मैंने वहाँ जाना कहाँ छोड़ा था?

जिज्ञाषा थी शायद, कुछ और जानने की 

की ये चल क्या रहा है?

ये जानते हुए भी, 

की यहाँ कुछ भी हो सकता है। 


बीजेपी का आना, और किसी का, 

PGI जाना। 

जैसे समझाया हो किसी ने, बातों ही बातों में 

दिल नहीं कर रहा था, यकीं करने पर, 

मगर,

उसी PGI के दाँत के ईलाज (?) ने 

2018 में कितना कुछ गाया था ?   


बीमारी और राजनीती की खिचड़ी?

या मौतों पे, मसखरों या मख़ौलियों के झुँड?

शायद किसी भी इंसान के दिमाग से परे,  

किन्हीं अजीबोग़रीब भेड़ियों की कहानियाँ जैसे। 

बुद्धिजीवी? पढ़े-लिखे लोगों के कारनामे? 

या ज्ञान-विज्ञान के दुरुपयोग के भद्दे ठप्पे?

कुढ़े हुए लोगों द्वारा जैसे?  


कैसे युद्धों की दास्ताँ हैं, ये? 

और कैसी राजनीती का ये ताँडव?

कैसी ये स्याही (Ink) होगी? 

लोगों को सतर्क करने की ज़रुरत है, शायद? 

Monday, April 15, 2024

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ?

What Media I Consume?

मीडिया में मेरे हिसाब से तो बहुत कुछ आता है। मीडिया, मेरे लिए शायद वो इकोलॉजी है, जो हमारे जीवन को किसी भी प्रकार के जीव-निर्जीव के सम्पर्क में, जाने या अंजाने आने पर, या आसपास के समाज के बदलावों से भी प्रभावित करता है। जैसे माइक्रोलैब मीडिया, सूक्ष्म जीवों को। मगर यहाँ मैंने उसे नाम दे दिया है, सोशल माइक्रोलैब मीडिया कल्चर। लैब मैक्रो (बहुत बड़ी) है, मगर उसे समझने के लिए सुक्ष्म स्तर अहम है।      

जो कुछ भी मैं लिखती हूँ, वो इसी मीडिया से आता है। सामाजिक किस्से-कहानियाँ खासकर, राजनितिक पार्टियों द्वारा, ज़िंदगियों या समाज के साथ हकीकत में धकेले गए तमाशों से।  

पढ़ती क्या हूँ?  

कुछ एक अपने-अपने विषयों के एक्सपर्ट्स के पर्सनल ब्लोग्स (blogs)। कई के बारे में आप पहले भी किन्हीं पोस्ट में पढ़ चुके होंगे। जैसे, 

Schneier on Security  https://www.schneier.com/

Security Affairs https://securityaffairs.com/ 

कुछ यूनिवर्सिटी के Blogs, Nordic Region, Europe से खासकर।  जिन्हें पढ़कर ऐसा लगे, की ये आपसे कुछ कहना चाह रहे हैं शायद, या कुछ खास शेयर कर रहे हैं। 

कुछ एक न्यूज़ चैनल्स, ज्यादातर इंडियन। कुछ एक वही जो अहम है, जिन्हें ज्यादातर भारतीय पढ़ते हैं। ईधर के, उधर के, किधर के भी पढ़ लेती हूँ या देख लेती हूँ। पसंद कौन-कौन से हैं? कोई भी नहीं? थोड़ा-सा ज्यादा हो गया शायद? मोदी भक्ती वाले बिलकुल पसंद नहीं। हाँ। वहाँ भी बहुत कुछ पढ़ने लायक और समझने लायक जरुर होता है। जैसे एक तरफ, कोई भी पार्टी, मीडिया के द्वारा अपना एजेंडा सैट कैसे करते हैं? और जनमानष के दिमाग में कैसे घुसते हैं? तो कुछ में खास आर्टिकल्स या आज का विचार जैसा कुछ होता है। जो भड़ाम-भड़ाम या ख़ालिश एजेंडे से परे या एजेंडा होते हुए भी, मानसिक शांति देने वाला होता है या सोचने पर मजबूर करने वाला। कुछ एक के आर्टिकल्स, आपके आसपास के वातावरण के बारे में या चल रहे घटनाक्रमों के बारे में काफी कुछ बता या दिखा रहे होते हैं। कुछ एक फ़ौज, पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां, सिविल एरिया में रहकर या बहुत दूर होते हुए भी, काम कैसे करती हैं, के बारे में काफी कुछ बताते हैं। कुछ एक, राजनीती पार्टियों की शाखाओं जैसी पहुँच, आम आदमी तक और उनके द्वारा अपने प्रभाव या घुसपैठ के बारे में भी लिखते हैं।            

दुनियाँ जहाँ की यूनिवर्सिटी के वैब पेज, मीडिया, मीडिया टेक्नोलॉजी खासकर, या बायो से सम्बंधित डिपार्टमेंट्स के बारे में। जो थोड़ा बहुत जाना-पहचाना सा और अपना-सा एरिया लगता है। 

ये जानने की कोशिश की, क्या दुनियाँ की किसी भी यूनिवर्सिटी के वेब पेज या प्रोजेक्ट में ऐसा कुछ भी मिलेगा, की कोरोना-कोविड-पंडामिक एक राजनितिक बीमारी थी? और कोई भी बीमारी, राजनितिक थोंपी हुई या धकाई हुई हो सकती है? सीधा-सीधा तो ऐसा कुछ नहीं मिला। मगर, ज्यादातर बीमारियाँ हैं ही राजनीती या इकोसिस्टम की धकाई हुई, ये जरुर समझ आया। और वो इकोसिस्टम, वहाँ का राजनितिक सिस्टम बनाता है। कुछ बिमारियों पर, किसी खास वक़्त, राजनीती के खास तड़के और  कुर्सियों की मारा-मारी है। उसे तुम कैसे देख या पढ़ पाओगे, सीधे-सीधे ऑनलाइन? ऑनलाइन जहाँ तो है ही, किसी भी देश के गवर्न्मेंट के कंट्रोल में। वो फिर अपने ही कांड़ों पर मोहर क्यों लगाएंगे? वो आपको सिर्फ वो दिखाएँगे या सुनाएँगे, जो कुछ भी वो दिखाना या सुनाना चाहते हैं। न उससे कम और न उससे ज्यादा।  

मोदी या बीजेपी से नफ़रत क्यों?

वैसे तो मुझे राजनीती ही पसंद नहीं। फिर कोई भी पार्टी हो, फर्क क्या पड़ता है? या बहुत वक़्त बाद समझ आया, की बहुत पड़ता है। 

कोई पार्टी या नेता काँड करे और आपको इसलिए जेल भेझ दे, की आप ऐसा सच बोल रहे हैं, जो उसके काँडो को उधेड़ रहा है? तो क्या भक्ति करेंगे, ऐसे नेता या पार्टी की? 

उसपे अगर मोदी को फॉलो करोगे तो पता चलेगा, इसका बॉलीवुड से और फिल्मों से कुछ ज्यादा ही गहरा नाता है? क्या इसे कुछ और ना आता है? अब बॉलीवुड वालों का तो काम है, फिल्में बनाना। एक PM का उससे क्या काम है? अपनी समझ से बाहर है।  

मुझे पढ़े-लिखे और समाज का भला करने वाले नेता पसंद हैं। नेता-अभिनेता नहीं। तो कुछ पढ़े-लिखे या लिखाई-पढ़ाई से जुड़े नेताओं के सोशल पेज भी फॉलो कर लेती हूँ। वो सोशल पेज, फिर से किसी सोशल मीडिया कल्चर से अवगत कराते मिलते हैं। जैसे हुडा और यूनिवर्सिटी या शिक्षा के बड़े-बड़े संस्थान। गड़बड़ घौटाले समझने हैं, तो उनके ख़ास प्रोजेक्ट्स और टेक्नोलॉजी। जैसे रोहतक की SUPVA से लख्मीचंद (LAKHMICHAND) बनी यूनिवर्सिटी। हर शब्द एक कोड होता है। वो किस नंबर पर है या उसके साथ वाले शब्द कौन-कौन से हैं या दूर वाले कौन से, और कितनी दूर? किस राजनीतिक पार्टी के दौर में कोई भी प्रोजेक्ट आया या इंस्टिट्यूट बना? और वो इंस्टिट्यूट किस विषय से जुड़ा है? उस वक्त की राजनीती के बारे में बताता है। उसका बदला नाम या रुप-स्वरुप या उसमें आए बदलाव, उस बदलाव के वक़्त की राजनीती या पार्टी के बारे में काफी कुछ बताते हैं। 

अब lakhmi कोड का patrol crime से क्या connection? और वो कहेंगे, की किसी कुत्ती के ज़ख्मों पे डालने के लिए पैट्रॉल बोतल, पियकड़ को लख्मी आलायां ने दी थी। करवाया उन्होंने और नाम किसी का? वैसे शब्द या भाषा, वहाँ के सभ्य (?) समाज के बारे में भी काफी कुछ बताता है। Social Tales of Social Engineering, इस पार्टी की या उस पार्टी की? और उनका किसी या किन्हीं इंस्टीटूट्स में छुपे, प्रोजेक्ट्स या टेक्नोलॉजी से लेना-देना? ठीक ऐसे ही बिमारियों का और उनके लक्षणों का भी। ये सोशल मीडिया पेजेज से समझ आया है। 

संकेतों या बिल्डिंग्स के नक़्शों या कुछ और छुपे कोढों को समझना हो, तो शायद, शशि थरूर का सोशल पेज भी काफी कुछ बता सकता है। और इंटरेक्शन का मीडिया, बिलकुल डायरेक्ट नहीं है। कहीं पूछो, की तुम इन सबको जानते हो या ये तुम्हें जानते हैं? मैं इन्हें या ये मुझे उतना ही जानते हैं, जितना आपको। ज्यादातर आम आदमी को। ऐसे ही पढ़ना चाहो या समझना चाहो, तो वो आप भी कर सकते हैं। उसके लिए आपको किसी को जानने या मिलने की जरुरत नहीं है। एकदम indirect, वैसे ही जैसे, सुप्रीम कोर्ट के फैसले या CJI खास एकेडेमिक्स इंटरेक्शन प्रोग्राम्स। या कहो ऐसे, जैसे हम कितने ही लेखकों की किताबें पढ़ते हैं, मगर मिलते शायद ही कभी हैं।   

अब वो सोशल मीडिया पेज आप-पार्टी के किसी नेता का भी हो सकता है और कांग्रेस के भी। JJP का भी हो सकता है और कहीं महाराष्ट्र की शिवसेना की आपसी लड़ाई से सम्बंधित आर्टिकल्स भी। महाराष्ट्र की शिवसेना की लड़ाई के आर्टिकल्स तो और भी आगे बहुत कुछ बताते हैं। भगवान कैसे और क्यों बनते हैं? उन्हें कौन बनाता है? उस समाज में किसी वक़्त आए या कहो लाए गए रीती-रिवाज़ों के बदलावों से उनका क्या सम्बन्ध है? ऐसे ही जैसे, JJP का ऑनलाइन लाइब्रेरी प्रोग्राम या शमशानों के रखरखाव में क्या योगदान है? GRAVEYARDS? और आगे, उसका कैसे प्रयोग या दुरुपयोग हो सकता है?  

वैसे ट्रायल के दौरान किसी को जेल क्यों? बेल क्यों नहीं? या ट्रायल के दौरान ही, कोई कितना वक़्त जेल में गुजारेगा? ऐसा या ऐसे क्या जुर्म हैं? अब आम आदमियों की तो बात ही क्या करें। ये आप पार्टी के नेताओं के साथ क्या चल रहा है? फिर मोदी के साथ क्या होना चाहिए? वैसे मैं किसी बदले की राजनीती के पक्ष में नहीं हूँ। मगर, सोचने की बात तो है। मोदी जी, है की नहीं? सोचने की बात? या मन की बात?

काफी लिख दिया शायद। अब मत कहना की जो लिखती हूँ या जहाँ से आईडिया या प्रोम्प्ट या ख़बरें मिलती हैं, उनके रेफेरेंस नहीं देती। और डिटेल में फिर कभी किसी और पोस्ट में।   

Sunday, April 14, 2024

Social Media Culture, Booster Doses (Social Tales of Social Engineering)

Culture?

जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने?

पैदाईश ही जीरो होगी, तो क्या होगा तेरा?

पैदाईश जीरो? सच में?

Eurovision Song Contest, पहली बार देखा 2005? 

और favourite song? 

My Number One? 2005 


ले तू जीरो पे एक रख
पापा? राजी? या? Paparizou? या?  

"Music is my life?

My life is music?"

Music madness continues और 

ये क्या है?


My Number One? 2016  


आपने कुछ सोचा, उस 2005 वाले गाने के बारे में? 

शब्द वही हैं, मगर बाकी सब बदला-बदला सा है?  

Booster Doses?

Sleep? Psycho?

Music?

Ram Rahim? 

उन्होंने कहा, Immersive Media Technology 

अब ये क्या बला है?

Laser Show?     

Lake Tiliyar, Special Shows 

धन्यवाद, छोटे हुडा को?

दिप्तम-दीप्तम सा है? और आगे आप कहीं, दिप्ती मैडम से भी मिलोगे। 

कहीं किसी केस में जज, तो कहीं?

ये कौन सी दुनियाँ है? और चल क्या रहा है?

"कुछ ना, तू मैन्टल है और मैन्टल सर्टिफ़िकेट पकड़। अब तेरे को चुप करवाने का यही एक रस्ता है। "         

यही नहीं, अब आप गानों को शायद, किसी और नज़र से भी देखने लगे? पहले फ़ोकस शायद सिर्फ लिरिक्स होते थे? अब क्या बदल गया? अरे! ऐसे तो मैंने गानों को कभी देखा ही नहीं? Evolution हो गया? जुर्म और अनुभव की खिचड़ी पकने लगी, धीरे-धीरे दिमाग में? टेक्नोलॉजी के बारे में जानने की उत्सुकता भी बढ़ गई? पहले तो कभी सोचा ही नहीं, की कैसे होता है या करते होंगे ये कलाकार, इतना कुछ? कैसे-कैसे, अलग-अलग विषयों के ज्ञाता होंगे, इस सबके पीछे?

कभी सुना है की मोदी, हाँ वही, आज तक भारत का प्रधानमंत्री, भाषण कैसे देता होगा? किसी hologram से उसका कोई लेना-देना हो सकता है क्या? ये teleprompter क्या होता है? ये सब सिर्फ टेक्नोलॉजी है? राजनीती? Music Industry? या इन सबका, किसी कोढ़ से भी कोई लेना-देना हो सकता है?      

वैसे, music industry का किसी बच्चे के कानों में silver ear rings डलेंगे या gold? या माँ के जाते ही, उसके कान पक जाएँगे? और so-called कमीनों की सलाह पे, सींख डल जाएँगी? बच्चे पे उसका क्या असर होगा? नई आने वाली सोने से लद जाएगी? बीमारी (कानों का पकना?), माँ के जाने के बाद, अपने आप आ जाएगी? या? Invisible Enforcements? अद्रश्य तरीक़े बिमारियों के? अद्रश्य तरीके, लोगों के भेष और हुलिया बदलने के? आप किस वक़्त कहाँ होंगे और कैसे दिखाई देंगे? जैसे बच्चों के बालों के हेरफेर वाला केस? 

कितना कुछ आ गया ना, इस कल्चर में? यहाँ Microlab Culture की समझ बहुत जरुरी है। राजनीती, टेक्नोलॉजी, ज्ञान-विज्ञान के दुरुप्योग को "सोशल मीडिया कल्चर लैब" में पकाई गई, खिचडियों (तरह-तरह की बिमारियों), को समझने के लिए। इसलिए कहा, मीडिया हर विषय के लिए अहम है। कम से कम, यूनिवर्सिटी के स्तर पे तो हर डिपार्टमेंट में इसका अपना, अलग expertise होना चाहिए। जो ये बता सकें, की उनके विषय के ज्ञान या विज्ञान को कैसे भुनाया जाता है? किसी भी समाज के स्वास्थ्य या बिमारियों के स्तर पर? किसी भी समाज की बदहाली या खुशहाली के लिए? ये मीडिया महज़ वो जर्नलिज्म नहीं है, जो भड़ाम-भड़ाम करता रहता है, दिन-रात। ज्यादातर, इस या उस पार्टी के राजनीतिक एजेंडों को। ये मीडिया वो मिर्च-मसाला भी नहीं है, जो मनोरंजन के नाम पे कुछ भी परोसता है और उसे भी भुनाता है। समाज को बीमार करने के लिए। ये मीडिया वो है, जो बता सके, की भगवानों को कौन बनाते हैं? इंसानों को कौन? और शैतानो को कौन? और उससे भी अहम, क्यों और कैसे? रीती-रिवाज़ों में बदलाव कैसे और कहाँ से आते हैं? साइकोलॉजी या फिजियोलॉजी, और भी ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे विषयों का, इन बदलावों और वहाँ की राजनीतिक पार्टियों के अद्रश्य एजेंडों से क्या लेना-देना है? क्या ये भी किन्हीं बिमारियों की वजह या लक्षण हो सकते हैं? और ईलाज भी वहीँ छिपा हो सकता है?    

ये मीडिया वो है, जो एनवायरनमेंट जैसे विषय की तरह अहम है और इकोलॉजी के स्तर पे हर विषय को अपने में समाए हुए है। 

और ये Social Tales of Social Engineering क्या है? ये वो कहानियाँ हैं, जो आपकी, मेरी और हर किसी की ज़िंदगी से जुड़ी हैं। ज़िंदगी के बनने में या बिगड़ने में। ये भी, हर किसी के लिए और हर विषय के लिए अहम हैं। क्यूँकि, ज़िंदगियों को अलग-अलग दिशा या दशा देने के लिए, अलग-अलग जगह, अलग-अलग तरह के विषयों की खिचड़ी पकी होती है। जैसे, 

कुछ इंसान के खोल में छुपे जानवरों ने, होली के दिन इस बेजुबां के कान में चीरा लगा दिया 


या एक ख़ास तारीख को हमारी गली में रहने वाली कुत्ती के ज़ख्मों पे, एक पियकड़ से पेट्रोल डलवा दिया। और भी कितने ही ऐसे किस्से हैं। जिन्हें, सुनकर या जानकार यही कहा जा सकता है, ये कौन-सा समाज है? और कैसी राजनीती? जिसका आम इंसान भी जाने-अंजाने हिस्सा बना दिया गया है?  

Social Media Culture, Booster Doses (Social Tales of Social Engineering)

 Booster Doses?

An interesting concept?

Not just in labs?

Where you need antibody production?  

 



But?
Social in Media Culture also?  
Defence or Civil?
Civil or Defence?
How?
Such an interesting interdisciplinary world?  

Social Media Culture? (Social Tales of Social Engineering)

How you evolve? 

With time? 

With age? 

With circumstances?  

With your surrounding?


Surrounding?

Place?

People?

Plants?

Animals?

Birds?

Worms?

Or flies?


The water you consume there?

The air you breath there?

The food you eat there?

The faith and belief of that surrounding?

The customs, that place follows?

The way, that place or society treats?

Her girls? 

Boys? 

Kids?

Adults?

Elders?


The language, that place speaks?

The way that place look at --

Different views?

Different opinions?

Different customs?

Different people?

And their ways of life?


The way, people wear cloths there?

Types, designs, colours, 

And so many different combinations?

The way, people talk there,

With each other?

With respect or disrespect?

Straight forward or hidden agendas?

The way, people take each-other ahead?

Or the way, they pull down each other, 

So low, that can put under graves?


Whatever you interact in your surrounding

Then be it living or non living beings

Make your life

That's why they say, 

Choose your surrounding carefully? 

But, the kind of social media culture, 

People come across in this world

Do they really have choices?

Or enforced agendas work invisible ways?

Beyond people's understanding?

Saturday, April 13, 2024

सोशल मीडिया कल्चर खिचड़ी

सोशल मीडिया कल्चर, कुछ ज्यादा ही खिचड़ी (Interdisciplinary) है।  इस खिचड़ी को जितना समझा जाए, उतना कम है। जैसे -- 


राजनीती, आपको विज्ञान पढ़ाती है?

विज्ञान, आपको राजनीती पढ़ाता है?

कला, आपको टेक्नोलॉजी पढ़ाती है?

और टेक्नोलॉजी, आपको कला?

शिक्षा, आपका मनोरंजन करती है?

और मनोरंजन, आपको शिक्षा देता है?

समाज शास्त्र, आपको इकोलॉजी पढ़ाता है?

और पर्यावरण? धर्म-आस्था और रीती-रिवाज़?


ऐसे ही जैसे? 

माँ, आपको अर्थशास्त्र पढ़ाती है?

और बाप, रोटी बनानी सिखाता है?  

बीमारी, आपका परिवेश बताती है?

और ईलाज, उसके लक्षण? 

सिविल, आपको डिफ़ेंस पढ़ाता है?

और डिफ़ेंस, सिविल?         

कुछ उल्टा-पुल्टा तो नहीं लग रहा? 

या सब सही है?


आप सोचो, जानते हैं अगली किसी पोस्ट में।     

राजनीती या ज्ञान-विज्ञान?

राजनीती या ज्ञान-विज्ञान? इनको अलग-अलग समझना क्यों जरुरी है? राजनीती इनकी खिचड़ी पकाकर आम-आदमी को कैसे पेश करती है? क्या उन कोढों को समझना सच में इतना मुश्किल है? या, वो ये सब आम-आदमी को पता ही नहीं लगने देना चाहते? क्यूँकि, जितना आम-आदमी को पता चलेगा, उतना ही वो अपने अधिकारों के प्रति सचेत होगा। और ऐसे-ऐसे प्रश्न करने करने लगेगा, की हम यहाँ आपकी सेवा करने के लिए नहीं बैठे। बल्की, आपको इसलिए चुना जाता है, की आप अपने-अपने क्षेत्र का विकास कर सकें। उसे आगे बढ़ा सकें। ना की उस क्षेत्र के लोगों और साधनों को, निचोड़ कर या दोहन कर, अपना घर भर सकें। आपको इसलिए नहीं चुना जाता, की आप हर वक़्त, हर जगह तमाशगीर बन कर रह जाएँ। और अपने उस तमाशे को बिन रुके, बिन थके, एक सर्कस के रुप में अपनी जनता पे थोंप दें। और उन्हें उस सर्कस से बाहर ही ना निकलने दें। उन्हें ज़िंदगी के अहम मुद्दों से दूर भटका कर, अपने भंडोला-शो का हिस्सा मात्र बना कर छोड़ दें। जन्म क्या, बीमारी क्या और मौत क्या, हर ज़गह अपने भद्दे ठप्पों का चस्का, मखौलियों या भंडोलों की तरह लगाने लगें। समाज के हर हिस्से पे, अपनी खुँदकों की छाप छोड़ने लगें।     

कैसे? कैसे कर रहे हैं, राजनीती के ये भंडोले ये सब? सिर्फ़ राजनीती के? या समाज का कोई भी हिस्सा नहीं बक्शा हुआ? अपने महान प्रधानमंत्री से ही शुरु करें?                 

DD O' DD?

या ? दीदी? ओ दीदी?

या 2 D? 3 D?

या फिर, विमान और बादलों या राडारों के शगूफ़े भी सुने होंगे?

कौन से बादल?

पंजाब वाले? 

या इंटरनेट वाले Cloud और Radar?    

ऐसे ही G Creations? 

वो जो घर वाली को कुछ पुराने लोग बोलते हैं, जैसे, ओ श्रीमती जी, तुम्हारी मती कहाँ मारी गई जी? बुरा ना माने, क्या पता कहने वाले की खुद की ही कहीं गुम हो?

या फिर वो श्रीमती जैसे बोलें? जी? ओ जी? 

मगर कौन-सा जी?   

2G? 3G? 4G? या 5G?  कैसे-कैसे स्पेक्ट्रम (Spectrum) घौटाले हैं ये? 

अब आम आदमी इस सबको कैसे समझेगा? कुछ तो ऐसे भी पढ़े-लिखे होने चाहिएँ ना, जो आम-आदमी को ये सब ऐसे अलग-अलग समझा सकें, जैसे दूध से पानी अलग, खिचड़ी से चावल और दाल अलग? या फिर दूध का दही या लस्सी कैसे बनाते हैं? या दूध से पनीर कैसे बनाते हैं? अलग-अलग कंपनियों के दूध, दही या लस्सी या किसी भी, एक ही नाम वाले उत्पाद का स्वाद अलग क्यों होता है? ये कम्पनियाँ, कौन-से अलग-अलग बैक्टीरिया के तड़के लगाते हैं? और राजनीती में उसे कैसे-कैसे पकाते हैं? ठीक ऐसे, जैसे नेता से अभिनेता अलग या एक?   

पर शायद आप कहें, की आम-आदमी के लिए ये सब जानना क्यों जरुरी है? यही अहम है। अगर आपको इस सब की समझ होगी, तो ये धूर्त ,शातीर लोग आपका दोहन कम कर पायेँगे। क्यूँकि, आपकी ज़िंदगी की खुशहाली या बर्बादी इसी समझ पे टिकी है। 

उदहारण के लिए, कोरोना काल को ही लेते हैं। अगर आपको ये राजनीती और ज्ञान-विज्ञान की अलग-अलग समझ होती और ये पता होता की राजनीती के तड़के इनकी खिचड़ी पकाने में कैसे होते हैं? तो दुनियाँ भर में, ये आदमियों की मौतों का ताँडव और उसपे तमासे इतने वक़्त नहीं चलते। और ना ही उस ताँडव को देख, मेरे जैसों का विरोध और फिर देशद्रोह के नाम पर जेल की सैर करना। क्यूँकि, बिमारियों में भी ऐसे ही शब्दों का और तमाशों का हेरफेर है, जैसे किसी भी राजनीती वाले दीदी ओ दीदी या 2D, 3D टेक्नोलॉजी का। या वैसे ही जैसे, एक तरफ मोदी का विमान और बादलों का ज्ञान पेलना। और दूसरी तरफ, इंटरनेट वाला Clouds या Radar शो। या जैसे पार्टियों का एक-दूसरे पर स्पेक्ट्रम घोटालोँ वाला प्रहार और संचार के माध्यंमों (Communication Technology) वाले स्पेक्ट्रम को समझना। अब सब तो हमारे जैसों को भी नहीं पता होता। वो भी ज्यादातर अपने ही विषय तक सिमित होते हैं। वो भी कहीं ना कहीं से पढ़ते हैं, या अलग-अलग विषयों के एक्सपर्ट उसके बारे में बताते हैं। 

मगर इस सबसे ये भी समझ आता है, की मीडिया का रोल किसी भी समाज की प्रगति या विध्वंश में कैसे भुमिका निभाता है? खासकर, जब अलग-अलग पार्टियाँ, पुरे संसार में युद्ध स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही हों। और जनता से कोढों वाली छुपम-छुपाई चल रही हो। पढ़े-लिखे वर्ग की भूमिका उसमें और भी ज्यादा अहम हो जाती है।क्यूँकि, ये शायद समाज का वो वर्ग है, जो सबसे ज्यादा स्थिर और सुरक्षित जीवन जीता है, खासकर Higher Level पर। और वापस समाज को क्या देता है? कोढ़?      

Thursday, April 11, 2024

संतुलन जरुरी है

जैसे स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार जरुरी है। संतुलित शरीर का प्रयोग जरुरी है, चाहे वो फिर घुमना-फिरना, साईकल चलाना, तैरना, व्यायम या कसरत करना हो। वैसे ही, जितना हम अपने आसपास से, पर्यावरण से या प्रकृति से लेते हैं, कम से कम उतना, उसे वापस देना भी जरुरी है। जहाँ-जहाँ ऐसा नहीं है, वहाँ का वातावरण उतना ही खराब है। फिर चाहे वायु हो, पानी या ज़मीन। पेड़-पौधे हों, जीव-जंतु, या पक्षी। जीव-निर्जीव, इन सबसे किसी ना किसी रुप में आप कुछ ना कुछ लेते हैं। कुछ ऐसा जो अनमोल है, जो आपके जीवन के लिए जरुरी है। इनमें से कुछ अहम कारकों को लेते हैं।  

वायु 

आप वातावरण से ऑक्सीजन लेते हैं, जो जीवनदायी है। अगर आपके वातावरण में उसी की कमी हो जाएगी या किसी और ज़हरीली गैस की अधिकता, तो साँस कैसे लेंगे? पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध करने का काम करते हैं। आपके आसपास कितने हैं? इसके इलावा बहुत कुछ इस वायुमंडल में ऐसा छोड़ते हैं, जो इसको साँस लेने के काबिल नहीं छोड़ता। उसके लिए आप क्या करते हैं? यहाँ सिर्फ हरियाणा, पंजाब, दिल्ली की सरकारों के एक-दूसरे पर राजनीतिक प्रहारों की बात नहीं हो रही। ये समस्या दुनियाँ में और भी बहुत जगह है या थी। उसके लिए उन्होंने क्या उपाय किए? तो शायद पता चले, की ज्ञान-विज्ञान को राजनीती से अलग समझना कितना जरुरी है। 

क्यूँकि, राजनीतीक उसी ज्ञान-विज्ञान का दोहन करके, राजनीतिक पॉइंट्स इक्क्ठे करने के लिए कहीं ज्ञान-विज्ञान का दुरुपयोग तो नहीं कर रहे? कुर्सियों के चक्कर में, हर तरह से लोगों को नुकसान तो नहीं पहुँचा रहे? 

इसीलिए हर आदमी के लिए भी इकोलॉजी की समझ बहुत जरुरी है। 

पानी 

मैं एक छोटा-सा उदाहरण अपने ही गाँव का लेती हूँ। क्यूँकि, बाकी गाँवोँ या शहरों में भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। आपके यहाँ सप्लाई का पानी रोज आता है? कितनी बार आता है? साफ़ पीने लायक आता है? या पीने लायक नहीं होता, मगर बाकी घर के कामों के लिए प्रयोग कर सकते हैं? या इस लायक भी नहीं होता की लैटरीन तक में डालने में ऐसा लगे, की फ़ायदा क्या?

अगर आपके यहाँ सरकार साफ़ पीने लायक पानी हर रोज सुबह-श्याम, आज तक भी नहीं पहुँचा पाई, तो आप कैसी सरकारों को चुन रहे हैं, इतने सालों से? और क्यों?  

आजकल जहाँ मैं हूँ, वहाँ सप्लाई का पानी 7-10 दिन या 10-15 दिन में एक बार आता है। जी। सही सुना आपने। आजकल, वो फिर भी थोड़ा बहुत फर्श वगरैह धोने लायक होता है। दो साल पहले जब यहाँ आई, तो ऐसे लगता था जैसी गटर से पानी सप्लाई हो रहा हो। यूँ लगता था, ये सप्लाई ही क्यों करते हैं? इसका अहम कारण है, यहाँ का वॉटर सप्लाई सिस्टम, शायद मेरे पैदा होने से भी पहले का है। जितना मुझे पता है। 46 साल की तो मैं ही हो गई। मतलब, इतने सालों तक किसी ने नहीं सोचा की उसकी क्षमता बढ़ाई जाए, जनसंख्याँ के अनुपात में? कहेँगे नहर कम आती है, पानी कहाँ से आए? नहर तो शायद पहले भी इतनी ही आती थी या इससे भी कम। मगर पानी पूरा आता था। और अब जितना गन्दा भी नहीं होता था।  

जब हम छोटे थे तो यही पानी सुबह-श्याम आता था। और बहुत बार ऐसे ही बहता था। हालाँकि, पीने के पानी के लिए तब भी लोग ज्यादातर कुओं पे निर्भर थे। आजकल या तो टैंकर आते हैं पानी सप्लाई करने। वो भी सरकार के नहीं, बल्की प्राइवेट। या लोग, खेतों के हैंडपंप या समर्सिबल पर निर्भर हैं और वहाँ से लाते हैं। खेतों में भी हर जगह मीठा पानी नहीं है। जहाँ-जहाँ है, वहाँ की ज़मीन के रेट अक्सर ज्यादा होते हैं। जहाँ पे अक्सर मारकाट या धोखाधड़ी भी देखी जा सकती है। एक तरोताज़ा केस तो अभी भाई की सिर्फ दो कनाल वाली जगह का ही है। 

टैंकर सप्लाई कौन करते हैं? और कहाँ-कहाँ वाटर पुरीफायर घर पे कामयाब हो सकते हैं? ये फिर से अलग विषय हो सकता है। क्यूँकि, यहाँ पे ज्यादातर लोग घरों में भी हैंडपम्प्स या समर्सिबल पर निर्भर हैं। इसीलिए तकरीबन हर दूसरे घर में आपको ये देखने को मिलेंगे। मगर यहाँ घरों के एरिया का पानी इतना जहरीला है की बर्तनों पे दाग पड़ जाते हैं। कपड़े ढंग से साफ़ नहीं होते। दाँत पीले पड़ जाते हैं (Fluorosis) । फर्श पे पड़ेगा, तो सुखते ही सॉल्टी नमी या धब्बे। अब जब तकरीबन सब जमीन के पानी का प्रयोग करेंगे और वापस उस ज़मीन में जाएगा नहीं, तो क्या होगा? हर साल जहर का असर बढ़ता जाएगा। और बिमारियों का भी। जिनमें त्वचा की बीमारी भी हैं और बहुत-सी दूसरी भी। कम से कम, बारिश के पानी को वहीं ज़मीन में वापस पहुँचाकर, इस समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। 

या ऐसी जगहों को छोड़ के कहीं अच्छी जगह खिसको, इसका एकमात्र समाधान है? तो ऐसी जगहों की सरकारों को क्या तो वोट करना? और कैसे चुनाव? जब सारे समाधान ही खुद करने हैं? उसपे ऐसे चुनके आई सरकारें, बच्चों तक को बहनचो, माँचो, छोरीचो, भतिजीचो और भी पता ही नहीं, कैसे-कैसे कार्यकर्मों या तमाशों में उलझाए रखेंगी। इसपे पोस्ट कहीं और। Social Tales of Social Engineering में।                           

ज़मीन   

ज़मीन आपको क्या कुछ देती है? आप उसे वापस क्या देते हैं? ज़हर?

हमारे घरों से, खेतों से, फैक्ट्री-कारखानों से, कितने ही ज़हरीले कैमिकल्स रोज निकलते हैं। वो कहाँ जाते हैं? पानी के स्रोतों में और उन द्वारा ज़मीन में? या सीधा ज़मीन में? आज के युग में भी waste treatment, sewage treatment, proper disposal  या recycling जैसा कुछ नहीं है, हमारे यहाँ? क्यों? ये तो दिल्ली के आसपास के या किसी भी बड़े शहर के आसपास के गाँवोँ क्या, उस आखिरी बॉर्डर के पास या दुर्गम से भी दुर्गम जगह पे भी होना चाहिए। ज़मीन से शायद इतना कुछ लेते हैं हम। उसके बगैर हमारा अस्तित्व ही नहीं है। फिर किस बेशर्मी से उसे बदले में ज़हर देते हैं? बिमारियों की बहुत बड़ी वज़ह है ये।         

 पीछे आपने पोस्ट में पढ़ा     

इन सबमें तड़के का काम किया है, आज की टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग ने

और बढ़ते सुख-सुविधाओँ के गलत तौर-तरीकों ने। व्हीकल्स, ए.सी. (AC), घर बनाने में सीमेंट और लोहे का बढ़ता चलन। मगर, घर की ऊँचाई का कम और दिवारों का पतला होते जाना। खिड़की, दरवाजों का छोटा और कम होते जाना। बरामदों का खत्म होना। घरों का छोटा होना। पेड़-पौधों का घरों में ख़त्म होना। घरों में खुले आँगनों का छोटा होते जाना। सर्फ़, साबुन, शैम्पू, कीटनाशक, अर्टिफिशियल उर्वरक, हार्पिक, डीओज़, ब्यूटी पार्लर प्रॉडक्ट्स आदि का बढ़ता तीखा और ज़हरीला असर। और भी ऐसे-ऐसे कितने ही, गलत तरीक़े या बुरे प्रभाव या ज़हर। तो क्या इन सबका प्रयोग ना करें? जँगली बनकर रहें? करें, मग़र सही तरीके-से और सोच-समझ कर। ये जानकर, की कितना और कैसे प्रयोग करें। इतना प्रयोग ना करें, की वो जहर बन जाए। जितना इनका प्रयोग करें, उतना ही इनके दुस्प्रभावोँ को कम से कम करने के उपाय भी करें। कैसे? आगे पोस्ट में। 

इसमें से कितना इस पोस्ट में है? जनरल या आम समझ। सिर्फ लेने से काम नहीं चलेगा, वापस भी देना होगा। वापस कैसे करें? अगली पोस्ट में AC से ही शुरू करें?