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Wednesday, August 16, 2023

छोटे-बड़े-से-कबीले!

छोटे-बड़े-से-कबीले! 

थोड़े कम पढ़े-लिखे 

तो थोड़े ज्यादा पढ़े-लिखे कबीले 

अजीबोग़रीब रस्मों, मान्यताओं की 

जकड़न में जकड़े कबीले। 


शदियों पुराने ठहरे-से, 

ठहराव में जकड़े कबीले।  

गुप्त, छदम-युद्धों में पारांगत 

इनके पढ़े-लिखे योद्धा। 

(योद्धा? या शातिर धूर्त लोग?) 


एक तरफ --

आज भी अंधे-बहरे होकर जैसे 

अपने राजे-महाराजाओं को मानते 

थोड़े कम पढ़े-लिखे और  

थोड़े गरीब और मजबूर जैसे 

मरने, कटने, काटने तक को तैयार 

इनके ज्यादातर, अनभिज्ञ, अज्ञान, 

भीड़ों के समुह। 

कुछ इधर के समुह,

तो कुछ उधर के समुह  

छोटे-बड़े-से ये कबीले। 


तो दूसरी तरफ -- 

अंधविश्वासों, कुरीतियों के जालों में 

पढ़े-लिखे शातिरों द्वारा उलझाए हुए 

गुप्त सुरंगों के रस्ते 

आमजन की ज़िंदगी के 

हर छोटे-बड़े फैसले लेते 

उन्हें तोड़ते, जोड़ते, मरोड़ते 

मनचाही दिशा देते 

मानव रोबोट घड़ते, पढ़े-लिखे चालबाज़।  


भला क्यों चाहेंगे वो, पढ़े-लिखे जालों वाले शातिर

की इनकी ये कीड़े, मकोड़ों-सी 

मानव रोबोटों की सेनाएं 

पढ़-लिख जाएँ ऐसे 

रहें ना इतना अनभिज्ञ और अज्ञान 

अब तक रही हैं जैसे?  


देश के नाम पे भड़काते 

मगर ये ना बताते 

ये कैसे देश हैं? 

और कौन-से देश हैं? 

किनके लिए ये देश हैं? 

अन्धभक्ति का राग अलपवाते 

(देशभक्ती बोलो, नहीं तो मारे जाओगे!)


अपने कहे जाने वाले लोगों को ही 

गरीबी और गुलामी की ज़ंजीरें परोसते 

कैसे-कैसे देश ये?

और कैसी-कैसी इनकी सेनाएँ? 

और 

कैसे-कैसे लोकतंत्र इनके? 

देशों के खोल में --  ये छोटे-बड़े-से-कबीले!   

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