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Monday, August 14, 2023

पक्ष? विपक्ष? आम आदमी कहाँ है?

जर, जोरू और जमीन। क्या यही होती है इंसान के झगड़ों की वजह?

या किसी भी तरह का लालच और अहंकार, शायद?

पहले ज्यादातर के कई कई बच्चे होते थे। जब तक कम से कम एक लड़का न हो, तब तक तो स्टॉप लगता ही नहीं था। और जमीन-जायदाद होती थी लड़के की। लड़कियाँ तो खुद जमीन-जायदाद होती हैं, इस समाज में। उस जमीन-जायदाद को तो कहीं आगे जाना है। माँ बाप उन्हें किसी को सौंपने के लिए ही तो पैदा करते हैं। मतलब, जमीन-जायदाद भी movable, न की  immovable। तो भला जमीन-जायदाद की भी अपनी कोई जमीन-जायदाद हो सकती है? 

हाँ। अगर लड़कियों को भी इंसान मानने लगें, बजाय की जमीन-जायदाद समझने के, तब तो जमीन-जायदाद उनकी भी होगी। ऐसे ही, जैसे लड़कों की होती है। आजकल जब ज्यादातर के एक या दो से ज्यादा बच्चे नहीं होते, तो बहुतों के तो शायद लड़कियाँ ही होंगी। हो सकता है लड़का हो ही ना। फिर? वो अपनी जमीन-जायदाद अपने दुसरे भाइयों को दे दें? या लड़कियों का हक़ है? वो भी इंसान हैं? न की कोई जमीन-जायदाद? हाँ ! जिनको लगता है की मेरे पास मेरे लायक है, या बहुत है, तो अपनी मर्जी से वो चाहे जिसे दें। वहाँ जबरदस्ती नहीं। 

एक पक्ष 

कुछ केसों में ऐसा भी हो सकता है की किसी भी वजह से किसी की पत्नी की जल्दी मृत्यु हो गई और सिर्फ लड़की है। तो इस चक्कर में की सारा उस लड़की का ही हो, किसी की शादी ही ना होने दी जाए? कुछ अडोसी-पड़ोसी और रिस्तेदार इस चक्कर में लग जाएँ। तो कुछ लड़की को ही घर से बाहर निकालने में। या शायद दिखाई अडोसी-पडोसी या कुछ रिस्तेदार नज़र आ रहे हों। मगर, हकीकत में राजनीती के तड़के हों। कोई सामान्तर घड़ने की कोशिश? ये पार्टी इस तरह का और वो पार्टी उस तरह का। और ये भी हो सकता है की राजनीती की कहानी की हकीकत कुछ और ही हो। वहाँ सिर्फ किसी राजनीतिक ड्रामे में कोई किरदार मरा हो। न की हकीकत में। तुम्हारे ड्रामे और किसी की ज़िंदगी। और भी बहुत तरह के लालच और पेचीदगियाँ हो सकती हैं। तो एक में हकीकत में कोई इंसान गया है और दूसरे में आभाषी (ड्रामे में)। केस अलग, इंसान अलग, जगह अलग, परिस्थितियाँ अलग, तो समाधान एक कैसे हो सकता है? और कहीं किन्हीं फाइल्स से या राजनीतिक ड्रामों से, दूर कहीं किन्हीं ज़िंदगियों की हकीकत कैसे बदल जाती हैं? चाहे वो फिर रिश्ते हों या बीमारियाँ। मतलब, इंसान नहीं, सिस्टम बीमार है। अब उस सिस्टम को कौन सुधरेगा? फाइलों वाले पढ़े-लिखे या आम-आदमी? या शायद सब मिलकर?     

Numerology की राजनीति 

किसी एक पक्ष के पास 8 है तो किसी के पास 9 । 8 मतलब, बच्चा पैदा कर सकते हैं। 9 मतलब, रुकावट है। या शायद, 8 मतलब, काँड रच सकते हैं। 9 मतलब, किसी बाधा को पार करना है। कोड के मतलब, आप किस पार्टी में हैं, उसके हिसाब से अलग-अलग होते हैं। यहाँ जिसकी पत्नी किसी भी कारणवश दुनियाँ में नहीं रही, उसे बोला जाए की 8 ले। 8 भी ऐसा, जिसपे एक ने 9 लगा रखा हो, मतलब रुकावट। जैसे एक पे रुकावट, 19 लगा रखा हो। 19 18 19 28 19 38 और भी कुछ हो सकता है। जैसे 2 पे, 3 पे, 4 पे, 5 पे या किसी और नंबर पे। अब 8 का मतलब शादी तो है नहीं। फिर ऐसे राजनीतिक तड़के लगाने का मतलब? काँड? जो बचा है उसे भी खत्म करने की कोशिश? राजनीति संभानाओं का खेल है। खेलते रहो, राजनीतिक खिलड़ियों के साथ। और बच्चों तक को ऐसी घटिया राजनीती का मोहरा बनाने वालों को तो कहें ही क्या? 

एक और पक्ष है 

या तो तलाक हो रखा है। या केस चल रहा है। या जिस किसी वजह से अलग हैं। और पहले केस में बच्चा या बच्चे भी हैं। अब लड़की वाले चाहें की लड़के की दूसरी शादी न होने दें। या कम से कम तब तक रोक के रखें की आने वाली के बच्चे न हों। हक़? जमीन जायदाद? या वर्चस्व के लड़ाई-झगड़े? अलग-अलग केसों की अलग-अलग हकीकतें हैं। मगर, राजनीतिक पार्टियाँ उन्हें एक लाठी से और अपने-अपने, हिसाब-किताब से हांकने की कोशिश करती हैं। जबकि सबकी हकीकत बहुत ज्यादा अलग-अलग हैं। अहम, ये रिश्ते करवाने वाले भी कहीं न कहीं ये राजनीतिक तड़के हैं। तो शायद तुड़वाने में भी यही होंगे? सोचो, हम कैसे सिस्टम में रह रहे हैं? जहाँ राजनीतिक पार्टियों को अपनी जनता की भौतिक जरूरतों की चिंता नहीं है। बल्की, चिंता ये हैं की किसके रिश्ते जुड़वाने हैं और किसके तुड़वाने हैं। किसके बच्चे पैदा करवाने हैं और किसके नहीं। किसके घर से भगाने हैं और किसके लाने हैं।   

सरकार मानो आपको कह रही हो 

रोटी, कपडा, मकान, साफ खाना, पानी, हवा, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य इसकी चिंता नागरिक अपने आप करें। क्युंकि, आपके रिश्ते-नाते, तोड़ने-जोड़ने के लिए ही तो आपने हमें चुना है।      

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