मानो आपकी ज़िंदगी में कोई रिस्ता सही नहीं गया? वो किसी लड़के का भी हो सकता है और लड़की का केस भी। अलग हो गए या तलाक हो गया। तो अब ज़िंदगी से उम्मीद क्या होगी की आगे कोई रिस्ता हो तो सही जाए। शुरू-शुरू में सब सही चल रहा है, मगर कुछ वक़्त बाद यहाँ किसी और तरह की समस्या शुरू हो गई। अब आप थोड़ा पीछे ज़िंदगी को निहारेंगे तो समझ आएगा की समस्या अभी तक ये पीछे वाला रिस्ता ही है? या शायद आपका अपना व्यवहार, जो हंसी-मजाक में या शायद जानभुझकर किसी नौटंकी से शुरू हुआ? शायद कुछ ऐसे शब्द या हावभाव आपके व्यवहार में घुलमिल से गए, जो आप या तो किसी और के कहने पे कर रहे थे? या किसी को चिढ़ाने के लिए? सामने वाले के लिए उनका कोई अर्थ हो या ना हो। मगर आपके दिमाग की ट्रैनिंग खुद आपने शुरू की। जाने या अनजाने। तो समस्या, किसको होनी थी? उसपे अगर वो राजनीतिक कोढ़ है तो जिस पार्टी ने रचा है वो तो आग में घी का काम करेगी ही करेगी।
कहीं-कहीं तो सिर्फ अपनी ही नहीं, अपने बच्चों या बड़ों की भी ऐसी ट्रैनिंग शुरू की हुई है। अब ये पार्टी और वो पार्टी, ये सब बड़े पास से देखसुन रहे हैं। उनके पास संसाधन हैं, वो सब करने के। तो आपके व्यवहार को अचानक कोई मोड़ देना या तोड़-मरोड़ देना, बहुत मुश्किल नहीं है उनके लिए। तो आप 90-10 वाले हैं? 80-20 वाले? 70-30 वाले? 60-40 वाले ? 50-50 वाले ? 45-55 वाले ? इस पार्टी वाले या उस पार्टी वाले ? यही सब खेल रहे हैं ना? या कहना चाहिए की जबरदस्ती (Enforce, Force) करने की कोशिश कर रहे हैं ? वो भी किसी और पे ? मगर हो रहा है खुद आपके साथ? जब ये सब हो रहा होता है तो कम ही समझ आता है। ये सब होने के बाद थोड़ा आसानी से समझ आता है। जिनके लड़कों के साथ हुआ है, वो इनके लड़कों के साथ वैसा ही या उससे भी बुरा रच रहे हैं? और जिनकी लड़कियों के साथ हुआ है, वो दुसरों की लड़कियों के साथ? या जिनके साथ हुआ है वो ज्यादातर कुछ रचने लायक हैं ही नहीं। ये सब, ये राजनीतिक पार्टियाँ रच रही हैं? जिनके पास संसाधन और दिमाग दोनों हों वही रच सकते हैं। जो सिर्फ पेट-भराई के जुगाड़ में हों, वो नहीं। मतलब, जो जितना ज्यादा नासमझ, भोला या अनजान है, वो उतना ही ज्यादा भुगतान करता है।
तो अगर आपको रिश्ते पुरे चाहिएं तो इन बाज़ार वाले, इतने परसेंटेज या उतने परसेंटेज discount से बाहर निकलो। अपने भेजों को उसकी ट्रैनिंग देना बंद करें। नहीं तो, आपके रिश्ते पुरे होते हुए भी, अधुरे होने लगेंगे। आसपास के कुछ रिश्तों की कहानियाँ कुछ-कुछ, ऐसी-सी ही हैं। ये राजनीतिक पार्टियाँ, पहले रिश्ते जुड़वाती हैं, फिर तुड़वाती हैं। फिर कोर्ट भी इन्हीं के हैं। इनके या उनके वकीलों के धक्के आप खाते हैं और शायद अच्छा खासा उन्हें पूज के भी आते हैं। ज़िंदगियाँ खाली और घर भी खाली? कुछ-कुछ ऐसा सा ही लग रहा है ना? चलो कुछ वक्त बाद, कोई और रिश्ता हो गया और फिरसे जैसे ज़िंदगी चलने लगी। मगर ये क्या? आप अभी तक बाजार खड़े हैं? कितने परसेंटेज वाले बाजार में? तो आगे क्या उम्मीद रखते हैं? क्या कर रहे हैं, अपनी खुद की ज़िंदगी के साथ? या अपनों की ज़िंदगी के साथ?
ऐसा क्यों है की कहीं किन्हीं राजनीतिक कहानियों में जो हो रहा है, आपको लग रहा है की वैसा-वैसा कुछ मेरी ज़िंदगी में भी हो रहा है ? Copy या Clone बनाना पता है क्या होता है ? और कैसे होता है ? बस आपके साथ वही हो रहा है। और आप खुद उस Process और Programming का हिस्सा बने हुए हैं -- जाने या अनजाने।
यही नहीं, कहीं न कहीं अपने बच्चों और बड़ों को भी बना रहे हैं -- जाने या अनजाने।
कैसे ? जानते हैं, अगली पोस्ट में।
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