ये पार्टी जीती है, ना वो पार्टी हारी है? कुछ-कुछ ऐसा ही?
वैसे चुनाव पाँच साल में एक बार होते हैं? या हर रोज किसी ना किसी रुप में चलते ही रहते हैं?
जो नंबर किसी चुनाव के बाद आता है, वो कितना स्थाई या अस्थाई होता है?
सबसे बड़ी बात, उस नंबर को अस्थाई कौन से कारण बनाते हैं?
किसी भी जगह के चुनाव, कितने स्थानीय और कितने बाहर के कारणों की वजह से बनते या बिगड़ते हैं?
मत - दान? क्या वही होता है, जो आम आदमी, वोट वाले दिन EVM के द्वारा डालता है?
या मतदान की गणना उस दिन के बाद भी परिणाम आने तक बदलती रहती है?
जैसे अगर हवा का रुख दक्षिण अमेरका का हुआ, तो बीजेपी बोलेगी 300 पार?
और अगर उत्तरी पोल (यूरोप) की तरफ का कहीं रुख हुआ, तो कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की बल्ले-बल्ले?
ये संसार के इधर या उधर के रुख से डावाडोल होते आँकड़े, सिर्फ मीडिया घरानों तक का शोर होते हैं?
या हक़ीक़त यही है?
मतलब, मीडिया ने जो चुनाव परिणामों के दावे किए थे, वो उस वक़्त की हवा का रुख बता रहे थे?
और जो परिणाम आए, वो परिणाम के आसपास की हवा का रुख?
इसका मतलब तो EVM, एक धोखा है? ऐसे जैसे, कोई हवा का झोंका है?
ये एक छोटा-सा एक्सपेरिमेंट था, जो काफी वक़्त से रहस्य-जैसा बना हुआ था। बाकी हकीकत तो जानकार या विशेषज्ञ बेहतर बता सकते हैं। ऐसी ही वजहों से शायद मेरा मीडिया में इतना इंटरेस्ट बढ़ गया है। कितना कुछ पता होता है, इन मीडिया वालों को?
जैसे कुछ नेताओं के सोशल मीडिया को मैं खास तौर पर फॉलो कर रही थी। मेरे अपने हरियाणा या दिल्ली के कुछ नेता। कुछ हिंट्स इस दौरान यहाँ-वहाँ से जो मिले, वो थोड़े अजीब लगे। जैसे, दीपेंदर हुडा कहे "अबकी बार रोहतक 400 पार" ।
अरे आप कौन-सी पार्टी से हैं? या इसका मतलब?
ऐसे ही जैसे, केजरीवाल का जेल ड्रामा। ड्रामा, मगर हकीकत। खासकर आतिशी का प्रेस में ब्यान, खासकर कूलर से सम्बंधित। अरविंद केजरीवाल को मारने की कोशिश हो रही हैं। दूसरी तरफ, ये कूलर ड्रामा कहाँ चल रहा था? क्या का क्या बनता है यहाँ? ऐसे ही जैसे इस खेल में मौतें तक ड्रामा होती हैं, मगर घर के घर खा जाती हैं।
जनता को जो दिखाई ही नहीं दे रहा, वो सब समझ कैसे आएगा?
आम आदमी को यही कहा जा सकता है की ये दुनियाँ वो नहीं है, जो आपको दिखाई या सुनाई दे रही है। या समझ आ रही है। टेक्नोलॉजी के संसार ने इस दुनियाँ को आम आदमी की समझ से काफी परे धकेला हुआ है। मगर, समझना बहुत ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। अगर नेताओं के ऐसे-ऐसे बयानों को समझने की कोशिश करोगे तो, जैसे दीपेंदर हुडा कहे "अबकी बार रोहतक 400 पार"। हमारे नेतागण शायद खुद समझाने की कोशिश करते लग रहे हैं?
ठीक वैसे जैसे बाकी पार्टी के नेता कुछ का कुछ बोलते हैं। वैसे ही जैसे मोदी के बादल और राडार। या वैसे ही जैसे, अरविन्द केजरीवाल का शुगर और आम। या वैसे ही जैसे?
ऐसे ही कितने ही जैसे, आप देख-सुन-समझ कर खुद बताईये।
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