समाज के अलग-अलग स्तर पर, एक जैसी-सी कहानियाँ जैसे? मगर अलग-अलग स्तर पर लोग, भुगतते अलग-अलग हैं? ऐसा क्यों?
क्यूँकि, स्तर अलग-अलग है। लोग अलग-अलग हैं। उनके आसपास का समाज या तबका भी अलग है। उनका शिक्षा का स्तर, सोच, रहन-सहन, पैसा, घर, जमीन-जायदाद सब अलग-अलग है। जिसके पास ये सब जितना ज्यादा है, वो उतना ही कम भुगतता है। ज्यादातर फाइल्स तक का खेल रहता है। जिनके पास ये सब कम है या कहो, जो इस स्तर पर जितना कमजोर है, वो उतना ही ज्यादा भुगतता है। जिसका समाधान, अपने विरोधियो पर फोकस करना नहीं, बल्की अपनी और अपने आसपास की स्तिथि को सुधारना है। so-called बड़े लोग, अक्सर वही नहीं होने देते। वो एक तरफ, आपकी अच्छाईयों को डुबोने में लगे होते हैं तो बुराईयों को बढ़ाने-चढ़ाने में। क्यूँकि, उन्हें पता होता है, की आपकी strenghts क्या हैं और weaknesses क्या। और आपको ये तक नहीं पता होता, की आपके ये so-called विरोधी हैं कौन। इसलिए, सामान्तर घड़ाईयाँ दिखती एक जैसी-सी हैं। मगर परिणाम?
दूसरा, बड़ों के किस्से कहानियों को अगर बच्चों पे या बुजर्गों पे थोंपने की कोशिश होंगी तो सोचो वहाँ क्या होगा? नाड़े की कहानी से जानते हैं।
मैं अभी गाँव अपना सामान नहीं उठाकर लाई थी। मगर 26-29 का खास जेल ट्रिप हो चुका था। वहाँ जो कुछ देखा, सुना या अनुभव किया, उसमें काफी-कुछ ऐसा था, जिसपे शायद ध्यान कम दिया। या शायद थकान, गर्मी और सिर दर्द की वजह से ध्यान कम गया। ऐसा ही कुछ, जब यहाँ गाँव आने पे बच्चों या बुजर्गों को किसी ना किसी रुप में कहते सुना या भुगतते सुना, तो शुरु-शुरु में तो कुछ खास पल्ले नहीं पड़ा, शिवाय चिढ़ के। या ये क्या हो रहा है और क्यों, जैसे प्रश्नों के। मगर धीरे-धीरे शायद समझ आने लगा। बच्चों और युवाओं की अजीबोगरीब ट्रैनिंग चल रही थी, उनकी समझ के बैगर। और बुजुर्ग भुगत रहे थे। कहीं ना कहीं युवा भी। और बच्चों की ऐसी ट्रैनिंग का मतलब? वो भविष्य में भुगतेंगे? और ऐसा भविष्य, शायद बहुत दूर भी ना हो, अगर वक़्त रहते रोका ना जाय तो?
क्या थी ये ट्रैनिंग?
कौन और कैसे चला रहे थे इसे?
क्या अभी भी ऐसा कुछ चल रहा है?
सिर्फ यहाँ या हर जगह?
जानते हैं ऐसे और कैसे-कैसे प्रश्नो के उत्तर, हकीकत में जो देखा, सुना या अनुभव किया उससे। आगे पोस्ट्स में।
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