यही खंडहर बजते रहते हैं
खाली-पीपड़े से,
थोड़े-से हवा के झोंके से भी?
खंडहर हिल जाते हैं
थोड़े-सी आँधी से ?
खँडहर गिर जाते हैं
थोड़ी ज्यादा आँधी से ?
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
खंडहरों में भूत तो पता नहीं
पर बीमारियाँ पनपती हैं
विवाद पनपते हैं।
और खंडहरों में अक्सर,
सबसे कमजोर लोग पनाह लेते हैं
और खुद भी खंडहर-से ही हो रहते हैं?
या शायद भूत और यादें?
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
खंडहरों की खाते-पीते घरों को जरुरत नहीं होती
कुछ बड़े लोगों के बुजर्गों के यादों के महल
अक्सर खंडहर हो रहते हैं?
क्यूँकि, उन्हें उन यादों की जरुरत नहीं होती।
और ना ही कद्र?
वो यादें उन्हें शायद आईना दिखाती हैं
की आप यहाँ से उठकर गए हैं?
जिनसे शायद उन्हें शर्म आती है?
क्यों?
पता नहीं।
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
मगर ऐसे-ऐसे खंडहर अक्सर
खतरा बन जाते हैं
आसपास रहने वालों के लिए
इन खंडहरों को सालों-साल
इनके so-called मालिक सँभालने तो क्या
देखने तक नहीं आते।
ना ही वो इन्हें, आस-पड़ोस को देते हैं
जो सँभाल सकें।
so-called इसलिए, की जिन्हें ना उसकी जरुरत
और ना ही कद्र
तो क्या?
सिर्फ आसपास वालों की सिरदर्दी के लिए, नाम भर रखा हुआ है?
ऐसे-ऐसे खंडहरों के बारे में
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
इन खंडहर वालों के कुछ यारों-प्यारों का
सामान भी रखा होता है, शायद,
ऐसे-ऐसे खंडहरों में ?
ऐसा सामान,
जिनकी उन्हें भी ना जरुरत होती और ना कद्र?
उस सामान वाले भी
शायद ही कभी, सँभालने या साफ़-सफाई करने आते हैं।
और ना ही वो सामान किसी जरुरतमंद को देते।
और वो सामान भी गलता रहता है, सड़ता रहता है
बिलकुल उस खंडहर की तरह।
दूसरी तरफ,
ऐसी जगहों पे, ऐसे लोगों की भी भरमार होती है,
जिनके सर छत तक नहीं होती?
इन खंडहर के मालिकों को
ऐसे-ऐसे इंसानो से प्यारे तो कुछ और जीव प्यारे होंगे?
खंडहर में भी शायद जीवन पनपता होगा?
कैसा जीवन पनपता होगा, ऐसे खंडहरों में?
भिरड़ों के छत्ते ?
चमगादड़ों के झुंड?
चूहों के बिल?
आर-पार, इधर वाले घर में?
उधर वाले घर में?
और बाहर गली में भी?
कितनी ही तरह की मकड़ियाँ?
साँप भी शायद?
और कितनी ही तरह के ऐसे-ऐसे जीव?
वो कहते हैं ना
की इस खंडहर के आसपास पैर भी सोच-समझकर रखना
पता नहीं कौन कीड़ा-मकोड़ा काट ले?
कीड़े-मकोड़ों के बिल और कतारें?
और उनका किया हुआ गोबर?
हाँ। ऐसे-ऐसे जीवों का गोबर
वो भी तो वहीँ सड़-सड़ के खाद बनता रहता होगा?
और सुगँध (या दुर्गन्ध)?
जीना हराम कर देती होगी, आसपास वालों का?
कभी हवा के झोंकों से,
तो कभी ठहरे हुए पानी से?
शायद बड़े लोग (so-called बड़े) जानबुझकर ऐसा करते हैं?
ताकि उनकी औकात का अंदाजा, आसपास वालों को लगता रहे?
या शायद दरियादिली का भी?
क्यूँकि, अक्सर ऐसे-ऐसे लोग ही फिर,
यहाँ-वहाँ, छोटा-मोटा दान करते भी तो नज़र आते हैं?
दान?
गायों को शायद?
या गरीबों को?
जाने दान करने के लिए?
या फोटो करवाकर और विडियो बनाकर,
सोशल मीडिया पर रखने के लिए?
ताकि जनता को लगे
अरे वाह! बड़े दानी हैं ये तो?
और गरीबों को याद रहे ज़िंदगी भर
वो तन ढकने को एक बार दी गई कोई साड़ी या सूट?
कोई धोती या कुरता?
कोई मिठाई का डिब्बा या 100-200 रूपए का दान?
कोई बच्चे की फीस-माफ़ी?
या गायों को दिया गया चारा?
मगर यही दानी-लोग, बड़े-लोग?
नहीं दिखाते, उसी जनता से वो लूटते क्या-क्या हैं?
जाने क्यों, उसको छुपा-छुपा कर रखते हैं?
बड़े, महान-दानी लोग?
सुना है रात को कोई आँधी का झोँका आया था?
वो ऐसे-ऐसे दरवाजे और खिड़कियों को बजाता
और हिलाता-डुलाता रहता है?
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