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Friday, June 21, 2024

निगरानी और ज्ञान-विज्ञान का दुरुपयोग

Surveillance and Knowledge Abuse? Or Diagnostic and Testings?

आसपास से केस स्टडी 

पीछे वाली पोस्ट का कुछ हिस्सा फिर से पढ़ते हैं


कैसे पता चलता है, की हमें कोई बीमारी है?

और कौन-सी बीमारी है?

नब्ज देखकर?

बिन पूछे और बिन जाने?

PK के जैसे? 

Wifi से?

Wifi, किसी का घर जाने का सिग्नल या सिस्टम?

और किसी का?

दरबार लगाने का जुगाड़ जैसे? 

बिन पूछे, आपके दर्द-तकलीफ़ बताना जैसे?

घोर Surveillance Abuse जैसे? 

इधर भी और उधर भी?      

या?

कोई दर्द या तकलीफ हो तो?

डॉक्टर के पास जाते हैं, 

और वहाँ डायग्नोस्टिक्स से पता चलता है?

या वहाँ भी गड़बड़ घोटाला जैसे?

या गड़बड़-घोटाला, 

हमारा दर्द या तकलीफ को फील करना ही है? 

खाना, पानी या हवा?

कैसे बचें इन प्रदुषित-मिलावटी हवा, पानी या खाने से?    

ये तो जिधर देखो उधर है 

कुछ जगह नज़र आता है 

मगर, 

बहुत जगह दिखाई तो साफ देता है 

मगर होता, प्रदूषित है। 

जैसे कोई pain inducers दे दिए हों,

किसी ने, आपकी जानकारी के बिना? 

किसी खाने में, या पानी में?

और डॉक्टर बोले, पथ्थरी है? 

डायग्नोस्टिक यही कह रहा है?


इस पथ्थरी के दर्द को और किस बीमारी के दर्द से बदला जा सकता है? कैंसर? और शायद और भी कितनी ही तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं, जिनका नाम लिया जा सकता है? ऐसे कितने लोगों ने PK देखी होगी? या WIFI क्या होता है, का पता तक होगा? या दुनियाँ में ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे कारनामे भी होते हैं? कहाँ ज्ञान- विज्ञान का दुरुपयोग? और कहाँ अनपढ़, या कम पढ़े-लिखे लोग, कैसे-कैसे बाबाओं, महाराजों या झोला-छापों के चक्कर में पड़े गरीब लोग? जहाँ ढंग से खाने-पीने या रहने तक के पैसे नहीं होते और लूटवा देते हैं ज़िंदगियाँ, ऐसे-ऐसे बाबाओं को। उसपे उन्हें समझाना भी आसान नहीं होता।        

ऐसा ही एक कैंसर के मरीज का आसपास सुनने को मिला। जो ऐसे-ऐसे महाराजों के चक्कर आज तक काटते हैं। जो दूर से ही बिन जाज़ें, परखे या टेस्ट्स के सबकुछ बता देते हैं? और इनपे या इन जैसे झोला-छापों पे कोई कारवाही नहीं करता? इनके नाम, जगह वैगरह जानोगे, तो पता चलेगा, so-called सिस्टेमैटिक कोड इतना जबरदस्त चलता है? पर फिर जो मुझे समझ आया, ऐसा-सा ही छोटे से छोटे हॉस्पिटल से लेकर, बड़े हॉस्पिटल्स तक है। जानकार लोग इनपे कोई किताबें क्यों नहीं लिखते या आमजन को अवगत क्यों नहीं कराते? यही सिस्टम रोकता है क्या, उन्हें ऐसा करने से?       

जब PhD में थी तो आसपास कुछ खास किस्म के कारनामे होते थे। वैसे से हर जगह संभव हैं। जैसे आप कोई एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं और आपसे जलने वाले या वाली ने, आपकी vials, test tubes या कुछ और भी हो सकता है, जिसमें आपका एक्सपेरिमेंटल मैटेरियल है, बदल दें या उसमें कुछ उल्टा-पुल्टा डालके उसे खराब कर दें। आसपास कितनों के साथ होता था ऐसे? पूछकर देखो। या अभी भी शायद कितनी ही लैब्स में होता है? आप लगे रहो, बार-बार उसे दोहराने। परिणाम क्या होंगे? निर्भर करता है की उस बन्दे ने क्या किया है। ये तो वही बेहतर बता सकता है या सकती है या सकते हैं? किसी भी डायग्नोस्टिक सेंटर पे, ये या ऐसे-ऐसे कितने ही किस्म के कारनामे संभव है। उसपे डॉक्टर डायग्नोज़ करके कितनी सारी सम्भानाएं रखते हैं, खासकर जब दर्द-तकलीफ दूर ना हो?

Probability Factor। ये नहीं है, तो ये हो सकता है। ये नहीं, तो ये। ये भी नहीं, तो ये। ये कोड और सिस्टम के जाले कितनों को पता होते हैं? और कौन ऐसे सोचके बीमारी का पता लगाते हैं? हो सकता है, की कोई बीमारी हो ही नहीं? गुप्त तरीके से कुछ उल्टा-पुल्टा, यहाँ-वहाँ से खिलाया या पिलाया गया हो? उसके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं? जैसे ही उस खिलाने-पिलाने का असर खत्म, वैसे ही बीमारी। ये तो कुछ-कुछ ऐसे नहीं हो गया, जैसे, इन डायग्नोस्टिक्स और संभानाओं के चक्कर में, इतना कुछ मेडिसिन के रुप में खिलाके या ऑपरेशन तक करके, ना हुई बीमारियों की बाढ़ जैसे? यही हाल हैं, हमारे आज के समाज के? 

आदमी अभी वो मशीन कहाँ बना है, की कुछ भी तोड़ो-फोड़ो, कुछ भी खिलाओ-पिलाओ या कैसे भी, कहीं से भी काटो और मशीन-सा सब सही हो जाएगा?

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