एक ही सिक्के के दो पहलु? (Two Sides of The Same Coin?)
एक, ठीक-ठाक पढ़ते बच्चे पढ़ाई छोड़कर, उल्टे-सीधे कामों में लग जाते हैं? या लगा दिए जाते हैं?
दूसरा, निठल्ले-नालायक, जैसे-तैसे डिग्रीयाँ लेकर ठीक-ठाक काम धंधे लग जाते हैं? या लगा दिए जाते हैं?
एक, किसी भी विषय में ठीक-ठाक, चलते-चलते, उससे डरने लगते हैं या भागने लगते हैं? या डरा दिए जाते हैं या भगा दिए जाते हैं?
दूसरा, ऐसे ही किसी विषय से डरने या भागने वाले, उसमें ठीक-ठाक चलने लगते हैं या दौड़ने या उड़ने लगते हैं? या चलना या उड़ना सिखा दिए जाते हैं?
ऐसे-ऐसे कितनी ही तरह के विषय या पहलु हो सकते हैं। मतलब, माजरा सारा माहौल का है, सीखने या सिखाने वालों का है? आगे बढ़ाने या पीछे-धकेलने वाले तत्वों का है। आपके वातावरण का है। वो बदलो और ज़िंदगियाँ बदल जाएँगी। कहने में कितना सीधा सा लग रहा है ना? और शायद है भी, अगर microlab जैसे कंट्रोल्ड एनवायरनमेंट की नज़र से देखें या समझें तो?
राजनीती, ये बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ या कहो की कहीं का भी सिस्टम, वो फिर घर का हो या आसपास, आपके गाँव, शहर या फिर देश का, यही सब तो खेल रहा है।
शायद इसीलिए सोशल इंजीनियरिंग किसी भी समाज के लिए अहम है। उसे सही दिशा या गलत दिशा देने वाले तत्वों की समझ और पहचान और उनपे कोई कंट्रोल। खासकर, गलत राह दिखाने या देने वाले तत्वों पर।
जब दशा या हालात पता हों और उन्हें प्रभावित करने वाले कारक या कारण भी, तो दिशा देना भी शायद कुछ आसान हो जाता है। ऐसे ही जैसे, बीमारी और बीमार करने वाले कारणों की जानकारी, बीमारी से बचने या ईलाज करने के लिए जरुरी होते हैं।
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