YES सेल हो गया?
HDFC पे चलें?
जमीन पेपर्स -- Raise Objections and no click?
दिसंबर में जब ये सब ड्रामा चल रहा था, तो भी मुझे यकीन नहीं हुआ, की ऐसा सच में हो सकता है। वो भी वो लोग करेंगे, जिनका नाम आ रहा है? जाने क्यों लोगों को इतना भला समझ लेते हैं? ये जानते हुए, की शिक्षा उनके लिए सिर्फ एक धंधा है। कमाई का साधन मात्र। पैसा आए, चाहे जैसे आए? छोटे भाई ने उनके लिए इतना किया, जब उनका स्कूल बन रहा था। उन्होंने उसके साथ क्या किया? एक केस उसके सिर लगाया, जो एक्सीडेंट सुरेंदर भाई से हुआ था। वो भी घर वालों को अँधेरे में रखकर और उसे बहला फुसलाकर। जब उसकी शादी की बात हुई, तो उनके उस शिक्षा के धंधे पे उल्टा असर पड़ने का डर था। और लड़की के हालात ऐसे बना दिए, की वो मरने की सोचने लगे? चाहते तो, वो शादी ऐसे कोर्ट के चककरों की बजाय, सीधे-सीधे हो सकती थी। यहीं नहीं रुके। उसे स्कूल से भी निकाला। और आम भाषा में जिसे बेईज्जत करना कहते हैं, वो सब सुनाना और प्रचार-प्रसार करना अलग। खैर। वो वक़्त और था, 2005 ।
उसके बाद तो बहुत कुछ बदला। क्या लोगों के विचार और दिलों के कालिख भी बदले?
राजमल नम्बरदार और ये कशिश कौन हैं?
जानते हों तो मिलना एक बार?
कितने पैसे खाने को मिले, ये हस्ताक्षर करने के?
तुम लोगों को शायद पता ही नहीं था, की ये जमीन बिकाऊ ना थी, ना है?
और ना ये पता, की ये सुनील नाम का भाई कब से पीता है?
इसके मानसिक हालात कैसे होंगे, ऐसे में?
उसे कोई आना भी मिलेगा ऐसे में?
एक-आध आना अगर मिल भी गया, तो कहाँ जाएगा?
ये कॉपी जनवरी में मिलने से पहले, मैंने ऑनलाइन jamabandi की वेबसाइट पे कोशिश की objection raise करने की। वहाँ रिकॉर्ड भी थोड़ा लेट मिला। मगर वहाँ objection पे क्लिक ही नहीं हो रहा। शायद कलाकारों ने मेरे लैपटॉप पे गड़बड़ कर दी?
शिकायत सुझाव के लिए सम्पर्क करें, पर संपर्क भी किया। उन्होंने कहा, मैडम यहाँ तो कोई शिकायत नहीं लेते। 1000 शिकायत भेझ चुके। कुछ कारवाही तो होती नहीं। मैंने कहा, तहसीलदार का नंबर दे दो। किसी नायब तहसीलदार का मिला, बोले जी तहसीलदार छुट्टी पे है। उससे बात की तो बोला, मैडम सिविल कोर्ट जाओ। अरे भई, ये तो धोखाधड़ी का मामला है। और इन कोर्टों के चककरों में तो, कितनी ही ज़िंदगियाँ तबाह हो गई।
खैर, वकील को फोन किया, ये जानते हुए की सब सबूत दूसरी पार्टी के खिलाफ होते हुए भी, मेरा वकील जानबूझकर हारता है? अब वकील भी क्या करे? आने तो देती नहीं उसे। वकीलों को भी घर चलाने होते हैं। बोला, मैडम श्याम को कॉल करुँगा। आज तक तो कॉल आई नहीं। कोई बोलता है, फैमिली कोर्ट जाओ। ऐसी कोई कोर्ट भी होती है क्या?
फिर तो ऑन्टी की कोर्ट जाना चाहिए? घर की घर में। थोड़ा बहुत सही बोला तो, उन्होंने ही। छोटे को पिलाई डाँट, तू क्यों बीच में आता है। बोलने से ही नहीं रुक रहा था छोटू। और दबा-दबा सा ही सही कहा तो, ऐसे तो गलत है, किसी की ज़मीन लेना। वैसे कई तरह के सगूफे भी सामने आए, कोई कहे 30 लाख में दी है और कोई 32 । अब ये कौन से वाले कोर्ट के हिसाब-किताब हैं, ये आप जानकार बेहतर बता सकते हैं शायद।
और हमारे आज के एडवांस्ड-कोर्ट, ये objection भी स्वीकार करें। क्यूँकि, जो थोड़ा बहुत पैसा है, वो तो यूनिवर्सिटी ने ब्लॉक कर रखा है। क्यों कर रखा है, उसपे भी हो सके तो कुछ करें। जहाँ तक मेरी चली, अब किसी और की नौकरी करनी नहीं। नौकरी देने वाले बनेंगे। नहीं तो आखिरी रस्ता, बाहर का तो बड़े लोगों ने दिखा ही रखा है।
कितने की जमीन दी है और वो पैसा कहाँ है? आते हैं अगली पोस्ट पे।
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