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Sunday, February 25, 2024

आम लोगों की माइग्रेशन की कहानियाँ (Social Tales of Social Engineering) 26

अब वि राज मान तो होना चाहिए, सत्ता के गलियारों के हिसाब से, आम आदमी की ज़िंदगियों में भी? AP   R   IL (2024?) सही महीना है उसके लिए? और तारीख़ क्या होंगी? 

पूजा का प्रसाद, ईधर से उधर होने के लिए MA   R    CH (2024?) सही रहेगा? उनकी तारीख़ क्या होंगी? खास तरह की पूजा-अर्चना की विधि समझने के लिए कौन-कौन से प्रोजेक्ट्स को पढ़ना चाहिए? सिविल और डिफ़ेन्स की विधियाँ अलग हैं? और इंजीनियरिंग और डॉक्टर्स की अलग? ऐसे ही कुछ प्रोजेक्ट्स समझने की कोशिश है आजकल।   

एक विराजमान यहाँ होगा, तभी तो दूसरा कहीं और होगा? वैसे ये जो अब वापस अपने घर होगा, ये वहाँ से निकाला कौन-सी पार्टी वालों ने था? एक रितु यहाँ से खाएँगे, तभी तो एक पूजा (नर्स) के जाने की भरपाई कहीं और होगी? और दूसरी पूजा (टीचर) कहीं और खिसकेगी? ये कौन-सी और कैसी सेनाओं के इधर से उधर आम लोगों की (By Invisible Enforcements) माइग्रेशन की कहानियाँ हैं? सिर्फ माइग्रेशन भी कहाँ? उनके परिणाम? या कहना चाहिए खासकर दुष्परिणाम? रिश्ते-नातों की दूरियाँ, कोर्ट्स में केसों की कहानियाँ, लोगों की आत्महत्याओं या खात्में की कहानियाँ, बच्चों के अनाथ होने की कहानियाँ, स्कूल स्तर पे ही बोर्डिंग स्कूलों के हवाले होने की कहानियाँ, भावनात्मक स्तर पर खोखले या असुरक्षित इंसानो की कहानियाँ? अपनों के इधर या उधर छूट जाने की कहानियाँ? Enforced माओं या बापों के आने या जाने की कहानियाँ? घरों के उजड़ने या बसने की कहानियाँ? आर्थिक या ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे एंगल तो फिर किसी रुंगा या प्रसाद जैसे ही होंगे, ऐसे-ऐसे हादसों में? Designed Tragedies?          

भाभी के जाने के बाद, और पड़ोस में, घर-कुनबे में ही, किसी के यहाँ दूसरी बहु आने पर, जब गुड़िया ने बोला, बुआ आपको पता है, उनके यहाँ नई बहु आई है। वो मेरी मम्मी की जगह आई है। पुरानी कहाँ गई? और उसकी बेटी? मेरी उनसे बात करवा दो। मुझे लगा, बच्चे को भावनात्मक बेवकूफ़ बनाया जा रहा है। सच भी, जाने वाले वापस कहाँ आते हैं? मगर, जुए के इन अजीबोगरीब खेलों में, ड्रामों में आते-जाते रहते हैं, शायद। जब जुआ ही हो गया, तो क्या बहु-बेटियों का फर्क और क्या भाई और बटेऊओं का? सब का गोबर-गणेश जैसे? किसी को भी, कुछ भी बना दो। किसी का किरदार थमा दो। तमाशा ही तो है। वही चल रहा है। इधर भी, उधर भी। उधर भी और उधर भी। आप कहाँ रह रहे हैं, इससे बहुत फर्क पड़ता है। ये सिर्फ आपके घर का कैसा माहौल है की बात नहीं है। बल्की, कभी-कभी शायद अड़ोस-पड़ोस, मौहल्ला, गाँव या शहर, ये देश या वो देश भी, ज़िंदगी को कितनी ही तरह से बनाता या बिगाड़ता है। इसलिए आपका पता आपकी बहुत बड़ी पहचान है, ID है। पहले ये सब ऐसे समझ नहीं आता था। यूँ लगता था की क्या फर्क पड़ता है? पड़ता है, एक ही मौहल्ले में भी एक घर से दूसरे घर के पते पर ही कोई सिस्टम ही बदल जाता है। एक गली से दूसरी गली पर शायद बहुत कुछ बदल जाता है।         

बचा जा सकता है क्या इन सबसे? अपनों से ज्यादा बात कर, बाहर वालों की बजाय। क्यूँकि, जहाँ जितना ज्यादा उल्टा-पुल्टा है, वहाँ लोगबाग उतने ही ज्यादा दूसरों के सुने, कहे गए किस्से-कहानियों (narratives, perception) के हवाले हैं। वो इतना कुछ सच मान सकते हैं, जैसे वो तो live-in रह रही थी। किसी और की या अपने किसी की कहानी या ज़िंदगी की हकीकत बता, इशारा किसी और की तरफ करने वाले घर-घुसडु। जिन बेचारों को ये तक खबर ना हो, की वो उस वक़्त टाँग तुड़ाये पड़ी थी। और कोई बच्चा उसके पास रह रहा था। जो इतना छोटा था की लक्ष्मणरेखा से घेरे बना, कीड़े-मकोड़ों को मारने जैसे खेल खेलता था। उसके बड़े भाई-बहन डिपार्टमेंट तक छोड़ने और लेने जाते थे। और उनकी माँ (मेरी cousin), नौकरी और घर के कामों के बावजूद, मेरे छोटे-मोटे काम निपटा के जाती थी। इसी तरह के कितने ही narratives, perceptions घर के तकरीबन हर इंसान के बारे में सुनने को मिले। भाभी के जाने के बाद जो चला, उससे बेहुदा षडयंत्र तो शायद ही कोई हो। क्यूँकि ना तो जाने वाले को बक्सा जा रहा था, ना जो बचे थे उन्हें। जिन्होंने बच्चे तक को नहीं बक्सा, वो और किसे बकसेंगे? वैसे ये In, Out भी बड़े अजीब हैं। शब्दों के हेरफेर जैसे। एक तरफ Live-in, Live-out जैसे अमेरिकन Resident-in, out type? तो दूसरी तरफ Checked-in, checked-out type? यहाँ पे residence की बजाय airport आ गया लगता है, खास तरह के experimental type? कलाकार ही जानें और कितनी तरह के in और out होते हैं? यहाँ, जहाँ आजकल हूँ,  तो दरवाजा खोल दिया बाहर की तरफ या अंदर की तरफ और लो हो गया in, out । अब ये दरवाजे भी कितनी ही तरह के हो सकते हैं। Offensive, Defensive या Neutral?                                     

बुनाई सामाजिक ताने-बाने की, कितनी सिद्धत से? वो भी औरों की ज़िंदगियों में, घरों में, कुनबों में, मौहल्लों में, रिश्ते नातों में? सबसे बड़ी बात, खुद दूर, बहुत दूर बैठकर। लोगबाग तुमसे कभी मिले नहीं, तुम्हें शायद जानते तक नहीं। आम लोगों को कोई खबर नहीं की ये राजनीतिक पार्टियाँ क्या-क्या और कैसे-कैसे काँड रचती हैं। बड़े लोगों का संसार और हद गिरे हुए दर्जे का कंट्रोल, लोगों की ज़िंदगियों पर। एक ऐसा कंट्रोल, जिनमें उन्हें खबर ही नहीं, की वो कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ, कौन से स्तर तक कंट्रोल हो रहे हैं। और ऐसा करके कंट्रोल करने वालों को क्या मिल रहा है? 

रिश्ते-नातों के हूबहू से झगड़े। जमीन-जायदाद के हूबहू से झगड़े। अंजाम भी हूबहू से ही? हाँ। सिर्फ भेझे से पैदल लोगों के यहाँ। कमजोर तबकों में। क्यूँकि, उनमें और यहाँ खास फर्क है, संसाधनों का, ज्ञान का। जो उन्हें बचा लेता है, बहुत से बुरे प्रभावों से। मगर यहाँ, ना सिर्फ रिश्ते-नातों को ख़त्म कर देता है, बल्की ज़िंदगियाँ ही खा जाता है। अहम, उसके लिए खुद आपको अपनी सेनाओं की तरह प्रयोग करते हैं। मानव रोबॉट बेहतर शब्द है, शायद? या चलती-फिरती गोटियाँ? खुद आपके अपने खिलाफ और आपके अपनों के खिलाफ। दुष्परिणाम, अगली पीढियाँ और ज्यादा भुगत रही हैं, ना सिर्फ भावनात्मक स्तर पे, बल्की बदले माहौल की वजह से।                         

Social Engineering इसी को बोलते हैं? और Social Tales, लोगों की ज़िंदगियों के आसपास ही घुमती हैं? मगर ऐसे की आभासी और हकीकत की दुनियाँ का फर्क ही जैसे खत्म होता लगे। और ये सब घुमा कौन रहा है? Social Media Culture, जिसमें वो सब आता है जो आप देख, सुन या अनुभव कर सकते हैं। 

आप क्या देख, सुन या अनुभव कर रहे हैं?

ये सब इस पर निर्भर करता है की आप कैसे माहौल से घिरे हैं। जिसमें इंसानो के साथ-साथ, वहाँ का हर जीव और निर्जीव शामिल है। जो आपको बहुत कुछ बिना कहे भी कहते हैं। बिना सुनाए भी सुनाते हैं। और अंजान होते हुए भी अहसास कराते हैं। जैसे हवा, पानी, खाना-पीना, पहनावा, रीति रिवाज़, धर्म मजहब, पढ़ाई-लिखाई का होना या ना होना, शिक्षा का स्तर, भाषा-बोलचाल,  आर्थिक स्तिथि, न सिर्फ आपकी खुद की, बल्की आसपास की भी। यही सब अच्छी या बुरी ज़िंदगी बनाता है। और यही सब ज़िंदगी को छोटी या बड़ी करता है।    

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