भरम पैदा कर अपनी चाही हकीकत रचना या सामाजिक सामान्तर घड़ाई घड़ना
यहाँ पे दो तरह के परिवार या लोग हैं। एक जो K के लिए लड़ रहे हैं? दूसरे जो N के लिए? इनके लिए आप टुकड़ा हैं, K या N को पूरा करने के लिए? इन्होंने, आपसे आपकी और आपके परिवार की अलसी पहचान ही गुमा दी है। आप इनके बताए नजरिए (Narratives) में जी रहे हैं, बिना हकीकत जाने। जिनका किसी भी परिवार के लिए एक कहानी या किस्से से ज्यादा कोई मतलब नहीं होना चाहिए। जब आप किसी और के बताए Narratives या Perception को जितना ज्यादा जीने लग जाते हैं, अपना या अपनों का उतना ही ज्यादा नुकसान करते हैं। मगर खिड़ालियों का कमाल ये, की उसमें भी ये आपका भला या लाभ बताते हैं।
लोग यहाँ पे इसलिए किसी से बोलते हैं या नहीं बोलते हैं, क्यूँकि उनसे ऐसा करवाया जा रहा है। किसी का क्या काम करना है या नहीं करना, वो इसलिए नहीं करेंगे की उन्हें करना चाहिए, बल्की इसलिए, की उन्हें ऐसा समझाया गया है। जैसे कोई नजरिया (Perception) फिट करना। ये नजरिया (Perception) ही दुनियाँ चलाता है। ज़िंदगियाँ बनाता या बिगाड़ता है। रिश्ते-नातों का आधार है। आप क्या करते हैं या क्या नहीं करते, इसका निर्णय लेने की क्षमता देता है। पीछे जैसे किसी पोस्ट में मैंने दस का दम और उससे जुड़े रोज-रोज के ड्रामों का जिक्र किया। वो Extreme केस है, जिसका खास अध्ययन हुआ है। पहले इसलिए की भाई है। अपनों के लिए आप शायद तब भी काम करते हैं या उम्मीद रखते हैं, जब बाकी सब छोड़ चुके हों। उसी ने उसे शायद, इतने सालों ज़िंदा भी रखा। यहाँ आने के बाद उसमें सामाजिक घड़ाई का एंगल भी मिल गया, इसलिए वो अध्ययन और भी खास बन गया।
Contradictions
बच्चा कहाँ रहेगा, कहाँ नहीं?
किसके कैसी लड़की (बहु) आएगी, और कैसी नहीं?
आपका बच्चा कैसा है, और कैसा नहीं?
आप किनसे बात कर सकते हैं, और किनसे नहीं?
किनको काम पर रख सकते हैं, और किनको नहीं?
किसको अपने घर में घुसा सकते हैं, और किनको नहीं ?
किसको अपना कह सकते हैं, और किसको नहीं?
किसको गोद ले सकते हैं, और किसको नहीं?
आपको क्या चाहिए, और क्या नहीं?
आप क्या खा सकते हैं, पहन सकते हैं, खरीद सकते हैं, और क्या नहीं?
आपके बच्चे या बहन-भाई या किसी भी अपने की क्या क़ाबलियत है और क्या नहीं ?
और भी कितनी ही किस्म के क्या हो सकते हैं या कहो हैं। उनको एक इंसान से दूसरे इंसान के रवैये से या नजरिए से आंको, फर्क समझ आएगा। उससे भी बड़ा फर्क, उनकी पढ़ाई कहाँ से और किस पार्टी से चल रही है? उसमें वो अपना दिमाग कितना प्रयोग कर रहे हैं? और कितना धकेला हुआ है, इस पार्टी का या उस पार्टी का? ज्यादातर घरों में फूट की वजह यही हैं। घरों में ही नहीं, बल्की अड़ोस-पड़ोस में भी।
पीछे यहाँ आसपास कुछ ऐसी चीज़ें हुई, जिन्हें सुनकर ऐसा लगे की कोई माँ खासकर, या उसका परिवार ऐसा कैसे कर सकता है? हालाँकि किसी पे ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, क्यूँकि किसी को किन परिस्तिथियों में ऐसा करना पड़ा होगा, ये वही बेहतर जानते हैं। मगर जब माँ की बात है या परिवार की भी, तो यही दिमाग में आता है की कोई भी परिस्तिथि हो, कोई अपने बच्चे को कैसे छोड़ सकता है? वो भी तब, जब वो इंसान कहे की वहाँ मेरे रहने लायक हालात नहीं थे? तो बच्चे के लिए कैसे हो सकते हैं? ये सब जानने का थोड़ा और पास से मौका मिला, जब खुद के घर में और आसपास कुछ ऐसे से ही केसों को जानने समझने का मौका मिला। मगर यहाँ कुछ उन्हीं लोगों के विचार विपरीत। बदलाव अच्छा है, मगर क्या दोगलापन है? क्या सच में ये नजरिए या विचारों में बदलाव है या महज हद दर्जे का घटिया स्वार्थ? या इससे आगे भी कुछ है? वो है की वो नजरिया थोंप कौन रहे हैं और क्यों? सामाजिक सामान्तर घढ़ाईयाँ घड़ने वाले, बच्चों को भी कहाँ बक्शते हैं?
सबसे बड़ी बात, आसपास ऐसा कोई एक केस नहीं, बल्की कई केस हैं। थोड़े ऐसे, या थोड़े वैसे।
इस दौरान Brainwash का एक ऐसा केस सामने आया, जिसे देख-समझकर कोई भी कहे, ये तो असंभव है। Brainwash, चाहे कुछ वक़्त का ही, असंभव को भी संभव बना देता है। इस घर-कुनबे में कुछ लोगों को खासकर, किन्हीं खास जातियों से जैसे हद पार चिढ़ है। और उसके उनके अपने कारण है, जाती से आगे कुछ। इन लोगों को लगता है, फलाना-धमकाना की वजह से हमारे घर में ये हुआ, ये हुआ या वो हुआ। इन सबसे जितना बचा जा सके, उतना अच्छा। ये हमारे लिए शुभ नहीं। जब मैं घर आई, तो काम के लिए किसी ऐसी जाती से रखने पे, कई दिन जैसे महाभारत का माहौल रहा। ऐसा माहौल, जब आपको लगे की मैं किन लोगों के बीच हूँ और क्यों?
और लो जी, भाभी के जाने के कुछ महीने बाद ही यहाँ जो हुआ, वो किसी को भी सोचने को मजबूर करदे, ये तो असंभव-सा है। सबसे बुरे हाल बच्चे के। जो लाने वालों को सामने चाहे कुछ कहे या ना कहे, मगर इतना बच्चा भी कहाँ है, की कुछ भी हज़म कर जाए। उसपे बहाना ये की बच्चे के लिए ही लाए हैं और बुआ पढ़ा रही है उसे। फिर से बुआ से दूर करो। कुछ वक़्त झेलो, ऐसे दिमाग से पैदल लोगों को। क्यूँकि, दूर करवाने वालों को कल भी बहाना चाहिए था और आज भी। कल वाला बहाना कामयाब नहीं हुआ, तो दूसरा सही।
आप अपने गोद लेने वाले प्रोग्राम पे वापस आ जाओ। चाहे झूठमूठ ही सही या हकीकत में। वो भी किसी ऐसी ही जाती से, जिसपे कल आपसे महाभारत रची हो। क्यूँकि, यहाँ रचने वालों का एजेंडा ही, किसी को हर तरह से ख़त्म करना है। उसमें सिर्फ पैसा, नौकरी, घर या ज़मीन-जायदाद ही नहीं, बल्की रिश्ते-नाते और भावनात्मक एंगल भी है। घर-परिवार में ऐसा रचो, की हर बंदा एक दूसरे से अलग-थलग हो। एक दूसरे के खिलाफ हो। क्यूँकि, ऐसा होने पे उस बच्चे का क्या जो आपसे जुड़ा है? अब उसे कहीं और जोड़ने की कोशिश हो रही हैं। मस्त होगा उसके लिए वो विराजमान प्रोग्राम शायद? खास पैर में बांधे काले धागे के जादू को साकार करने की तरफ (छुपे विज्ञान के) बढ़ते हुए कदम जैसे? रीति-रिवाज़, धर्म-कर्म, किन्हीं के लिए महज़ आस्था के साधन, तो किन्हीं पहुँचे हुए खिलाड़ियों के लिए? काँड रचने के? Cult Politics इसी को कहते हैं? बाप के पैर में वो खास काला धागा किसी खास समय पे आया और आ गया कालिख ज़िंदगी में? बेटी के पैर में उसी खास वक़्त पे आया काला धागा क्या संकेत दे रहा है? संकेतों में बात करने वाले या चालें चलने वाली खास फोर्सेज के अनुसार? माँ गई। उसकी जगह कुछ और आ गया? अब क्या होना बाकी है? कौन से सोने-चाँदी या खास तरह के अखाड़ों की कमी रह गई अभी उस नन्हीं सी ज़िंदगी में?
पहले भाभी के केस में और माँ के साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही रचा। रोचक, उसमें खुद भाभी के घर वालों का ऐसा रोल समझ आया, उनके जाने के बाद खासकर। पड़ोसियों के जाले में फंसा दिए गए लोग? यही जाला खुद उनके अपने घर को भी खाए हुए है, या झगड़ों की एक वजह है, जो मुझे समझ आया। सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ का हिस्सा मात्र? सोनीपत के साँग से बहुत कुछ उठकर, उनके घर में और वहाँ से यहाँ, हमारे घर में? एकदम हूबहू-सा जैसे। और वो कैसे समझेंगे? जो मुझे इतनी सारी केस स्टडीज़ के बाद थोड़ा-बहुत समझ आया है। इस जैसे (स्क्रिप्टेड ट्रेजेडीज़) और हकीकत के फर्क को जब तक आप जानना-समझना शुरू नहीं करोगे, तब तक so-called बड़े लोगों का शिकार रहोगे।
मझले वाला तो जैसे है ही, घर से बाहर। बच्ची बच गई। खुंखार लोगों के हिसाब से बच्चा तक नहीं बचना चाहिए, ऐसी परिस्तिथियों से। भेझे से पैदल लोग कुछ भी लाएँ, कहीं से लाएँ, किसी के भी जाल में फंसकर लाएँ। सिर्फ लाएँ नहीं, उसके साथ कोई खास रुंगा या प्रसाद भी लें आएँ, तो और भी मस्त।
Special "In-Out Designs"? ऐसे ही होते हैं? इस जुए के कोढ़ के अनुसार, खास कोढ़ वाले इंसानो को एक कमरे में रहने को या सोने को In कहते हैं? रिस्ता क्या है, इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता? उम्र क्या है? बच्चा है या बुजुर्ग है, उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता? वो किस वक़्त एक कमरे या शायद घर में भी (?) रहना शुरू करेंगे, ये खास control freaks निर्णय लेते हैं। और कब तक रहेंगे या उन्हें कब Out करेंगे, उसकी भी राजनीतिक पार्टियों की अपनी तारीख या महीना या साल होता है। कौन-सा संसार है ये? खास किस्म के बड़े लोगों वाला, जिन्हें जुए की पता नहीं कैसी-कैसी किस्में और तरीके पता हैं ? इस वाले घर में माँ, बेटा In है। उस वाले में बाप, बेटी? और उस वाले में भांजा या भांजी, मामा या मामी, नाना या नानी? और भी कितने ही घरों में इन्होंने कैसे-कैसे अंदर या बाहर (In, Out) किए हुए हैं? हैं ना, आभासी और हकीकत की दुनिया के "अंदर या बाहर" और कैसे-कैसे?
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