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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, February 25, 2024

मिट्टी का कच्चा पुतला (Social Tales of Social Engineering ) 24

She came in this home in a distressed and hopeless environment, after three abortions. Three abortions? Why? And how? And became the central figure of our home. At such a young age has seen more than any child should at her age. Bubbly, chirpy, gloomy sometimes and insecure at times raising the questions, one should not at this age. Resisting to some changes, adapting to some, overwhelmed at some, evolving with circumstances and time.

माँ क्या गई, चारों तरफ ठेकेदार आ गए जैसे। कुछ वो भी, जो पैदा होते ही ऐसी तोड़ियाँ दिखा रहे थे और गा रहे थे, जैसे उसका इस संसार में आना, उनके लिए दुविधा हो। कुछ वो भी जिन्हें लगा, हाय एक लड़का होता, तो अच्छा होता। माँ के जाते ही, वो जिस माहौल में रही, किसी बच्चे को ना रहना पड़े। वो उसे बुआ से दूर करने के चक्कर में क्या-क्या तो सिखा पढ़ा रहे थे। बुआ के बारे में कितना बेहुदा या बुरा-भला गा रहे थे? विडंबना कहो या हास्यास्पद ये, की वो लोग जो खुद अपने बच्चों को उसी बुआ के पास जबरदस्ती जैसे पढ़ने या खेलने के बहाने भेझ रहे थे। जहाँ कोई भी इंसान सोचने को मजबुर हो, की आखिर ये हो क्या रहा है? ये पीछे वाले भी। ये खास अपना बनने वाले भी। वो भी, और वो भी। क्यों? धीरे-धीरे परतें खुलने लगती हैं। हर किसी का अपना अजीबोगरीब-सा निहित स्वार्थ। बच्चे की भलाई कहाँ थी इसमें? स्कूल बदला, पढ़ाने वाले बदले। दोस्त बदले। और घर वाले? वहाँ क्या चल रहा था? सारी गड़बड़ शायद घर में होती है, बाहर का दखल तभी शुरू होता है? शायद? 

या इससे आगे कुछ? 

सारा दखल बाहर की खास राजनीतिक पार्टियों का होता है, जहाँ नंबरों का, कुछ खास कोढों का जुआ अहम भुमिका निभाता है। लोगों के नजरिए को बदलने के लिए? एक दूसरे के खिलाफ करने के लिए? जैसे-जैसे ये सब समझ आना शुरू हुआ। इधर वाले या उधर वाले खामखाँ के ठेकेदारों को चलता किया, वैसे-वैसे बच्चा वापस अपनी दिनचर्या पे भी आने लगा। मगर अभी तो और तोड़फोड़ होनी थी। 

वो लोग जो कल तक मुझे खाने को हो रहे थे, किन्हीं चूड़ी से काम करवाने पे या उसको घर में घुसेड़ने पे, अचानक कोई महाचूड़ी ले आए। कैसे संभव है? उम्र तो पता नहीं, पर दिखने में जैसे माँ की भी ऑन्टी। भाई को तो जैसे-तैसे फिर भी मना लिया होगा। ईधर-उधर का कोई लालच या कोई आभाषी डर बता कर। माँ को तो मैं बचपन से जानती हूँ। कौन-सी पुड़िया दे दी यहाँ पे? जब मुझे पता चला और जानने की कोशिश की या सावधान करने की, किसी अनहोनी से बचाने के लिए, तो कार्यकर्म ही पहले रख दिया गया। इधर-उधर के इशारों पे या कहो सावधान करने वालों के इशारों पे मोहर जैसे। 

कौन रोक सकता है, ऐसी जल्दी, जल्दी और जल्दी को? लाने वाले जब उसे घर लाए, तो यूँ लग रहा था, आसमान भी जैसे दहाड़-दहाड़ के रो रहा हो। किसी अनहोनी की आशँका, उसपे ऐसा मौसम। इससे पहले कभी किसी की शादी में ऐसा मौसम नहीं देखा। जब सामना हुआ, तो लगा जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई हो। किसने चुना होगा? किसने देखा होगा? क्या हुआ होगा, जो माँ की भी जैसे आंटी दिखने वाली औरत को ये घर ले आए? और माँ? उसकी पसंद तो हो ही नहीं सकती। खैर। वो तो घर आ चुकी थी। उसके बाद थापे के वक़्त जो ड्रामा हुआ, वो कुछ खास था शायद। इशारा जैसे, किन्हीं फिंगरप्रिंट्स पे जाली मोहर वाले जैसे? या अँगूठा लगवाने वाले नमुने जैसे? ये इधर के और वो उधर के? किसे क्या कह सकते हैं? सब समझ से बाहर जैसे। उससे भी खास, बुआ के यहाँ से तो फिर भी घर आए। ये मामा के यहाँ वाले कहाँ अटक गए? या मर गए कहीं? मेरे फ़ोन का असर या उससे आगे कुछ? दादा की मौत के बाद जो सनातनी ड्रामा रचा गया, वो और वैसे-वैसे और कैसे-कैसे बेहुदा साँग लोगों की ज़िंदगियों में बताने के बावजुद, कैसे ठेकेदार बने हुए हो तुम इस घर का नाश उठाने के लिए? किसके इशारों पे? लोगों को दिमाग से पैदल तो होते देखा है, मगर इस कदर?    

कुछ वक़्त बीतने पे समझ आता है, घर पे अजीबोगरीब बाहरी कंट्रोल की कोशिशें। वक़्त के साथ बच्चे की दिक्कत भी फिर से बढ़ा दी गई। या माहौल के हिसाब से अपने आप बढ़ गई? अप्रैल में कोई विराज प्रकट होगा और वो भी किसी खास F (फरीदाबाद) से R (रोहतक) ज़ोन पर। अप्रैल ही क्यों? क्या खास है उसमें? 26 April, 2021, Kidnapped by Police.  सिर्फ एक और ड्रामा, और भी ज्यादा भद्दे रुप में। आम आदमीयों पर जिसका असर और भी ज्यादा बेहुदा। 

अरे उससे पहले जनवरी और फरवरी में क्या-क्या हुआ है?

और भी अहम, ये मार्च में आसपास क्या-क्या होने वाला है?  

कितनी सारी ज़िंदगियों पर control freaks के साए? आसपड़ोस को जानो एक बार।      

JA NU A R Y ?

FEB R UA RY ?

MA R CH ?

AP R IL ?      

कुछ अक्षरों के कोढ़ के कितने अर्थ या अनर्थ हो सकते हैं?             

युद्धों में ऐसा ही होता है, और हो रहा है? इधर भी और उधर भी? जितना ज्यादा छुपम-छुपाई, उतना ही ज्यादा खतरनाक खेल और ज़िंदगियों की तबाहियाँ। ये "in or out" क्या है, जानना बहुत ही जरुरी है। उससे भी आगे checkmate और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे भद्दे और खतरनाक राजनीतिक षड़यंत्र। आज भी आप नहीं समझेंगे, तो कल आपके बच्चे भी ऐसे-ऐसे बेहुदा लोगों के शिकार होंगे। ये शायद उन संस्थानो के लिए भी, जो Technical स्तर पर इस सब पर रिसर्च कर रहे हैं। Surveillance Abuse and Designed Invisible Enforcements on people's lives. बहुत कुछ है शायद, बहुत-सी यूनिवर्सिटीज में और उनके ख़ासमख़ास प्रोजेक्ट्स में। वो सब पढ़-देखकर बाहर निकलने का मन तो है, मगर। मगर, जाने क्या मगर आड़े आ रहा है? कोई जैसे धक्के मार रहे हों, निकल बाहर। और कुछ जैसे रोक रहा हो। कह रहा हो जैसे, मरना है? खत्म होना है? रुक जा यहीं। या शायद कोरोना और उसके बाद के वक़्त के हालात देखकर, बेवजह का कोई डर?    

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