28-01-2024 को कोई नौटंकी होती है। बच्चों द्वारा करवाई जाती है।
चलो, आपको किसी से मिलवाती हूँ। छोटा-सा, क्यूट-सा शैतान है, आसपास ही। शैतान कहना गलत है। बच्चा है, नादान, अंजान। जिससे थोड़े बड़े, उल्टे-पुल्टे काम करवाते हैं। पता है, इतने बच्चे को अब कौन क्या कहेगा? कुछ भी करवाओ? सबसे बड़ी बात, कुछ बड़े भी उसमें शामिल हैं। कहो तो मानेंगे नहीं। यही शायद से बच्चों को बिगाड़ने की तरफ धकेलने की पहली सीढ़ी होती है। जहाँ आप उसे गलत-सही बताने की बजाय, खुद उसके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
क्या करता है ये बच्चा?
घर के अंदर आके mattress पे पानी के इंजैक्शन लगा जाना। थोड़े बड़ों के कहने पर, बजरी फेंक जाना। एक खास खेल (खेल?) है बच्चों का, अपनी छतों से या पड़ोसियों की छतों पे चढ़ कर, इस खंडर वाली छत पर या इधर हमारी साइड बॉल फेंकना। एक-दो बार आप दे देंगे, बच्चे समझ के। मगर फिर समझ आएगा, ये जहाँ से कह रहे हैं बॉल आ रही है, वहाँ से तो बॉल यहाँ नहीं आएगी। फिर?
इस नन्हें शैतान को ही पकड़ो और आराम से पूछो। बच्चा ज्यादातर सच बोलता है, जब तक झूठ बुलवाने वाले उससे झूठ नहीं बुलवाते। फिर मेरी वो थोड़ी सुन भी लेता है। वो फलाना-धमकाना का नाम लेकर बताता है, की इन्होंने छत के ऊप्पर चढ़ के फेंकी है। नीचे से नहीं आती वो। कैसे अजीब बड़े हैं, अपनी ही बहन, बेटी को परेशान करने के लिए बच्चों का साथ दे रहे हैं? कैसे लोग अपने बच्चों को ऐसा सिखाते हैं? शायद वही, जिनके यही बच्चे बड़े होकर कुछ उलटे-पुलटे कारनामे करेंगे? और ये बड़े कहते मिलेंगे की हमारे बच्चे तो बहुत शरीफ हैं? जब तक वो अच्छे-खासे केसों में या जेल तक के चककरों में ना फंस जाएँ? और इनके घरों को ही लुटाने-पिटाने ना लगें? तब तक ये उनके साथ रहेंगे? अरे नहीं। अब इतने लाड-प्यार से पालेंगे तो आगे भी ये लाड-प्यार जारी रहेगा? या कुछ कम हो जाएगा?
कुछ कह सकते हैं, "Petty People, Petty Crimes?"
ऐसे ही जैसे कुछ और, "Big People, Big Crimes?"
मगर इन दोनों में फर्क है। दिन-रात का फर्क।
बड़े लोग चाहेंगे तो अपने बच्चों को बचा लेंगे।
गरीबों में वो औकात होगी?
बड़े लोग आपको खुद के केसों में कोर्ट्स के धक्के लगाते भी नहीं मिलेंगे।
ये सब वो घर बैठे, कुछ फोन कॉल्स से संभाल लेंगे। वहाँ अगर कोई दिखाई देगा, तो उनकी तरफ से लड़ते उनके वकील।
आपके बच्चों ने जुर्म नहीं भी किया होगा या उतना बड़ा जुर्म नहीं भी होगा। चाहे आपके पास सबुत भी हों। आप सालों धक्के खाकर भी हार जाएँगे। और वो जीत जाएंगे, सारे सबुत उनके खिलाफ होते हुए भी। या मान भी लो की आप जीत भी गए तो क्या इस दौरान का वक़्त वापस ला पाएँगे?
गरीबों की ज़िंदगियों को वक़्त ना सिर्फ रोक देता है, बल्की कभी-कभी अगर पीछे ना भी धकेल पाय, तो कोशिश जरूर करता है।
आसपास कितनों की कहानी है ये? तो क्यों पड़ना चाहते हो, ऐसे लफड़ों में? या तो ऐसे लोगों से, ऐसी जगहों से, ऐसे मोहल्लों से दूर निकलो। और अगर किसी बेहतर जगह निकलना मुश्किल है, तो अपने आसपास को ही बेहतर बनाओ। वो घर से शुरू होता है। फिर आसपास, फिर मौहल्ला। राजनीती या ऐसी कोई पार्टी उस सबके बाद। जिन्हें यही नहीं मालूम की अपने बच्चों के लिए काम कैसे करते हैं? शायद वही फिर कहते मिलते हैं, की हमने तो बहुत किया अपने बच्चों के लिए, बच्चे ही ऐसे निकले?
और ये सिर्फ किसी बॉल के खेल या पानी के इंजैक्शन या बजरी की कहानी नहीं । इनके और बहुत से खेल तो इनसे भी महान हैं। इसमें सबसे अहम है, ये खेल आते कहाँ से हैं? क्या दुनियाँ की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी भी ऐसा कुछ खेल रही हैं? कहा था ना, आपको दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर पे लेके चलुँगी, अपने साथ। उनके हिसाब-किताब से भी अपने आसपास को जानना सीखो। जानने की कोशिश करेंगे उसे भी, आगे किन्हीं पोस्ट्स में।और हो सका तो ऐसी कुछ यूनिवर्सिटीज को ऐसी जगहों के लिए काम करने के लिए प्रेरित करना। जो कई सारी यूनिवर्सिटी पहले से ही कर रही हैं।
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