किस्से-कहानियों में डुब जाना (Immersed in narratives? Highly twisted narratives versus reality?)। इसी को मैंने नाम दिया है, Social Media Immersion। यहाँ पे किस्से-कहानी या रोजमर्रा की बातें ऐसे गुँथी जाती हैं, जैसे लैब के खास Protocol, किसी खास Experiment को करने के लिए। जब ये थोड़ा-थोड़ा मुझे समझ आने लगा, मैं इससे इतना प्रभावित हुई थी की Immersion Media की डिग्री के लिए ही Apply कर दिया था। सुक्ष्म स्तर पे कंट्रोल, आप Microlab या Molecular जैसी लैब के Experiments करने के तौर-तरीकों से जान सकते हैं। इस सबको अगर लोगों की रोजमर्रा के किस्से-कहानियों के साथ जोड़ दें और उसपे Surveillance Abuse के तौर-तरीकों की खबर हो तो क्या बन जाएगा? मानव रोबॉट घड़ने का प्रोटोकॉल तैयार। यही प्रोटोकॉल्स राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, हूबहू सामाजिक घड़ाईयाँ घड़ने के लिए प्रयोग कर रही हैं।
किसी ने कुछ कहा और आपने उसे सच मान लिया, बिना उसकी हकीकत जाने?
कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे अश्वत्थामा मारा गया?
और काँड रचने वालों का काम भी पूरा होते देर नहीं लगी? सुना होगा कहीं?
ये Mind Twister या कहो Mind Blinder था। दिमाग को बदलने वाले या अँधा कर देने वाले वाक्या या शब्द या किस्से-कहानियाँ। कुछ देर के लिए ही सही मगर दिमाग अँधा हो गया, ये सोच की मेरा बेटा मारा गया। और देखते ही देखते, वो बाप का काम तमाम कर गए। ऐसा ही ना?
गूगल ज्ञान : युधिष्ठिर ने जवाब दिया, 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी। हाथी बोलते समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर दिया, जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य 'हाथी' शब्द नहीं सुन पाए। आचार्य द्रोण शोक में डूब गए, और उन्होंने शस्त्र त्याग दिए। तभी द्रौपदी के भाई, धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट दिया। -- महाभारत
जब गाँव रहने आई तो काफी हद तक मजबूरी थी, सुरक्षा के मध्यनजर। फिर एक के बाद एक हालात ऐसे होते गए, की कहीं बाहर निकलने के नाम पे 2008 याद आ जाए, की कहीं ऐसा ना हो, जाते ही वापस आना पडे। ठहर थोड़ा, क्यूँकि तब हालात इतने बुरे नहीं थे, जैसे अब बना दिए गए, कुछ खास अपने कहे जाने वालों द्वारा, जाने या अन्जाने। कौन हैं ये खास अपने? कहीं न कहीं खुद भी भुगतभोगी? और औरों को भी बेवजह जैसे बांधे हुए? या सच में धूर्त इतने?
चलो कुछ ऐसे ही किस्से-कहानियों को जानते हैं जो लोगों के दिमाग ही नहीं, बल्की ज़िंदगियाँ घुमाए हुए हैं।
कई बार कुछ ऐसे किस्से या कहानी सुनने को मिलें, जैसे की आज ही या कल हुए हों। आपके हिसाब से हो सकता है, वो सब या तो धूमिल पड़ चुका हो या उसका कोई महत्व ही ना हो। जैसे किसी ने सालों पहले कुछ किया हो या किसी केस में नाम हो और वो केस आया-गया हो चुका हो। मगर हूबहू कोई नया केस उन्हीं नामों जैसा बताए, जो आजकल में ही हुआ हो और आपको लगे की ये फिर से किसी वैसे ही पंगे में पड़ गए? आप हो जाएँ आग-बबुला। और बिन सच जाने या उस इंसान से पूछे बगैर, झगड़े पे उतारू हो जाएं। क्या होगा? हो सकता है की किसी ने कोई सच्चा केस बताया हो और वो आजकल में ही हुआ हो। मगर? करने वाले कोई और हों, सिर्फ नाम और केस मिलता-जुलता सा हो। हो सकता है ऐसे ही किसी बात पे, कहीं से यूँ ही बातों-बातों में निकल आया हो? या ये भी हो सकता है, की इरादा सही ना हो? अब बताने वालों का मकसद क्या है, ये तो वही बेहतर जानें।
ऐसे किस्से-कहानी, एक बार नहीं बहुत बार सामने आए। वो भी किसी एक इंसान के बारे में नहीं, बल्की इधर-उधर के कई इंसानो के बारे में। ऐसे-ऐसे, किस्से-कहानी ही कहीं ना कहीं दिमाग को अँधा करने (Mind Twisters या Mind Blinders) का काम करते हैं। ये रिश्ते-नातों में ना सिर्फ दूरियाँ पैदा करने का काम करते हैं। बल्की होते हुए कामों को बिगाड़ने जैसा काम भी करते हैं। जैसे भाभी का स्कूल बनते-बनते रह गया। और उसके बाद जो कुछ चला, वो सब उससे भी ज्यादा तबाही की तरफ धकेलने वाला रहा। इस सब में दिमाग को जैसे, अँधा कर देने वाले वाक्या या रोजमर्रा की बातें रही। बड़े-बड़े लोग धोखा खा जाते हैं। फिर आम आदमी की क्या औकात, की ऐसे-ऐसे शातिरों से निपट पाएँ? और फिर आज तो वक़्त भी महाभारत का नहीं, उससे बहुत आगे निकल चुका है। कैसे-कैसे शातीरों के समूह काम करते हैं, इतना कुछ लपेटने के लिए?
वो डिग्री तो नहीं हुई, मगर उससे ज्यादा कुछ हो गया शायद। करवाने वालों ने शोध के लिए इतना कुछ पकड़ा दिया की ज़िंदगी बहुत छोटी लगने लगे, सिर्फ उन्हें लिखने में भी। Social Lab of Social Engineering
System will achieve, what it's designed to achieve. -- इसमें थोड़ा जोड़ देते हैं, And we can design to some extent, our own system as per our capabilities.
आप अपने आप में एक छोटा-सा सिस्टम हैं। आपका आसपास, उससे थोड़ा बड़ा सिस्टम। थोड़ा और दायरा बढ़ा दो, तो थोड़ा और बड़ा सिस्टम। ऐसे ही लोकल से धीरे-धीरे ग्लोबल सिस्टम तक जा सकते हैं। इन सबमें कहीं न कहीं, कुछ ना कुछ मिलता-जुलता सा है। हूबहू-सा है। हूबहू मतलब, कॉपी जैसा है या क्लोन जैसा। हकीकत या असलियत नहीं, बल्की उस अलसियत जैसा। अश्वत्थामा और अश्वत्थामा हाथी जैसा फर्क।
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