28-01-2024 को कोई नौटंकी होती है।
बच्चों द्वारा करवाई जाती है। इतना कुछ बताने के बावजूद, लोगों को समझ नहीं आया की अपने बच्चों को रोज-रोज, इन राजनीती से प्रेरित पार्टियों की नौटंकियों का हिस्सा ना बनाएँ। क्यूँकि, ये ना उनके लिए सही और ना ही आपके लिए। ये सब एक तरफ जहाँ, फुट डालो, राज करो का हिस्सा है। तो दूसरी तरफ आपके बच्चों की, और साथ में कहीं न कहीं आपकी ज़िंदगियों को भी, किसी सामाजिक घड़ाई का हिस्सा बना रहे हैं। इन ज़िंदगियों को कोई खास दिशा दे रहे हैं। जो आने वाले वक़्त में शायद सही ना हो।
जो पार्टी जितना ज्यादा भाईचारा-भाईचारा करती है, मान के चलो, उसने उतना ही भाईचारा बिगाड़ा हुआ है। वैसे ही जैसे, जो पार्टी जितना ज्यादा प्रोग्रेसिव-प्रोग्रसिव कर रही है, वो कहीं ना कहीं, उतनी ही ज्यादा दक्यानुसी है। और भी बहुत कुछ ऐसा-सा है, इन पार्टियों के बारे में। बिलकुल ऐसे जैसे, हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और। वैसे भी राजनीती का भाईचारे से क्या लेना-देना? जहाँ जितनी ज्यादा राजनीती होती है, वहाँ उतने ही ज्यादा झगड़े। नहीं?
इसलिए अपने लिए काम करो। अपनों के लिए काम करो। अपने आसपास के लिए काम करो। इंसान के लिए काम करो, हैवानों के लिए नहीं। ज्यादा खुशहाल रहोगे। अपनों से ज्यादा बातचीत करो और जितना हो सके, उनके साथ वक़्त बिताओ। बाहर के षड़यंत्रों से बचने का एकमात्र रस्ता यही है। अपने आपको इस पार्टी का कहो, ना उसका। जो जितना आपका या आपके मोहल्ले का काम करे, उतनी ही वो आपकी पार्टी। तो कौन-सी पार्टी 5% आपकी है? 10 % है? 20 % है? 50 - 90% है ? थोड़ा ज्यादा हो गया ना? इतनी कोई पार्टी, किसी की नहीं हो सकती। हाँ। आपके अपने जरुर हो सकते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ पर्सेंटेज का हिसाब-किताब हैं। रिश्तों या भाईचारे का नहीं।
राजनीतिक पार्टीयों ने आपके रिश्तों तक में पर्सेंटेज घुसेड़ दिया है। बाजार घुसेड़ दिया है। यही रिश्तों के बिगाड़ की कहानी है। यही बाज़ारवाद और राजनीती, जहाँ-जहाँ रीती-रिवाज़ों में और धर्म-आस्था में जितना ज्यादा घुसा हुआ है, वहाँ का समाज उतना ही ज्यादा अशांत है। जितना इस सबसे और ऐसी-ऐसी नौटंकियोँ से दूर हो जाओगे, उतने ही आपके रिश्ते बेहतर होंगे। और बेहतर हैं तब तो पक्का दूर हो जाओ, इन सबसे। नहीं तो ये कैसी-कैसी नौटंकियाँ ही, कल को आपके रिश्तों के दरार की कहानी होंगे। ये राजनीतिक पार्टियाँ पता नहीं कैसे-कैसे भूतप्रेत साथ लेके चलती हैं। उन्हें ये यहाँ-वहाँ स्टोर रखती हैं। जब जरुरत पड़े, उन भूतों को वहाँ से निकालने लगती है। क्यूँकि, जिन्हें कभी खुद ये स्टोर में चलता करवा देती हैं। या खंडहरों में चलता कर देती हैं। कल उन्हीं की जरुरत इन्हें जीत के काम आती हैं। कुर्सियों पर टिके रहने की जरुरतें, पता नहीं इन राजनीतिक पार्टियों से क्या-क्या करवाती हैं? ऐसा ही हर पुरानी वस्तु, ईमारत या जगह की कहानी है। राजनीती के कोढ़ के अनुसार, वहाँ जीत-हार का सामान रखा है? जिन्हें हम भूत (गुजरा हुआ वक़्त ) कहते हैं। ये पार्टियाँ आज का आपका वक़्त बता, उसे आपकी ज़िंदगी का ही भूतप्रेत बना देती है। चाहे आपको ऐसे लोगों से बात किए या मिले सालों या दशकों बीत चुके हों। इंसान की ज्यादातर यादास्त Short Memory होती है। उसे ये पार्टियाँ और कभी-कभी बाजार भी Long Term Memory बनाने पे उतारू हो जाते हैं। सिर्फ और सिर्फ, अपनी जीत के लिए। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, की आप पर उसका क्या असर पड़ता है। याद रखो, मगर अपनों को, अगर वो दुनियाँ में नहीं हैं तो भी। कुछ ना कुछ अच्छा ही कहते-बताते मिलेंगे। क्यूँकि, वो आपके अपने थे और हमेशा आपका हित चाहते थे। और ऐसे अपनों को आप खास सहज के भी रखते हैं। अपने स्टोर में, अपने दिमाग के स्टोर में। खंडहरों में नहीं। मगर अगर किसी ने, आपसे ऐसा करवाया है तो शायद, आपके भले के लिए नहीं करवाया।
जिन घरों में या गली-मोहल्लों में, या घरों के साथ लगते, जितने ज्यादा खंडहर मिलेंगे या खामखाँ के सामान से खचाखच भरे स्टोर, वहाँ शायद बीमारियाँ, रिश्तों के बिगाड़ की कहानियाँ, और अजीबोगरीब केस उतने ही ज्यादा? इस विषय पे मेरे विचार, मेरी अपनी पिछले कुछ वर्षों की observation हैं। खासकर, यूनिवर्सिटी से और अब कुछ साल से यहाँ गाँव से। शायद आगे इस विषय पे और भी पोस्ट मिलें। आपके विचार आमंत्रित हैं। क्यूँकि मैं कोई एक्सपर्ट नहीं हूँ इस विषय की। खुद जानने की कोशिश में हूँ, पिछले कुछ सालों से।
Surveillance Abuse and Control and Creations of Human Robots via Strange Cultures
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