15 दिसंबर को अपना ही एक भाईबंध बताता है, की सुनील की 2-कनाल जमीन, लक्ष्य ने खरीद ली,
14 December, 2023 को ।
14 में कुछ ज्यादा ही खास है, शायद?
या 15 में?
या 16 में?
YES Bank नौटंकी
एक पार्सल देने वाला आता है, YES बैंक से, सुनील के नाम, घर पे। मगर, उसपे घर का पता तक नहीं था? अगर भेझने वालों को भेजना होता, तो वो उसे सुनील के पास ही घेर में या जहाँ कहीं उस वक़्त वो था, वहाँ भेझते। अरे, उसका तो अपहरण किया हुआ था ना। बोतल सप्लाई, फोन बंद। और सुनील की कोई खबर ही नहीं, कहाँ है। मैंने वो पार्सल देखा और फ्रॉड लगा। और वो पार्सल वापस हो गया। नौटंकी ये भी होती है की लक्ष्य का फोन आ गया पार्सल वाले के पास, और उसने उसे वापस आने को बोला है। खैर। वो पार्सल तो दे चूका था। हस्ताक्षर चाहता था, वो मैंने मना कर दिए, ये बोलके की लक्ष्य ही आ जाएगा करवाने।
माँ हद से ज्यादा भोली है। हालाँकि, समझती है बहुत परिपक्कव हूँ। शायद इसीलिए, मेरे ऑफिस वाले भी मेरे ऑफिस छोड़ने पे उन्हें बुलाते हैं (2017)। 54 Days Earned Leave केस पढ़ सकते हैं, बेहतर समझने के लिए। वो भी तब, जब मैं लिखके और बोलके गई, की मैं Out of Station होंगी। संपर्क करना हो तो फोन या मेल कर सकते हैं। पर भारत में हम (खासकर लड़कियाँ), बूढ़े होने तक भी बच्चे रहते हैं और अपने फैसले खुद नहीं ले सकते? वो भी So-Called यूनिवर्सिटी के स्तर पर भी? क्या वो माँ-बाप को joining देती हैं या भाइयों को? या तालिबान से संभंधित हैं?
दूसरी तरफ, ये खास सेल वाले लक्ष्य, "बुआ Protection के लिए ली है, जमीन"। वो भी किससे? जिसे सालों से शराब की लत है, उससे? वो अपने फैसले खुद ले सकता है? वो भी वो ज़मीन, जिसको तुम सालों से मांग रहे थे, मगर हमने दी नहीं।
YES बैंक, पार्सल कहानी यहाँ खत्म हो जाती है। इसमें HD Public School से संभंधित कुछ लोगों का भी कोई रोल है, क्या? सिर्फ प्रश्न है। वीरभान केस और साइको इंजेक्शन और उसके बाद खास विजिट Chail, HP? अजय कादयान पार्टी कुछ कहना चाहेगी? कुछ उल्टा-पुल्टा तो कंफ्यूज नहीं कर रही ना मैं? तुम So-Called, पढ़े लिखे, अनपढ़ या तकरीबन अनपढ़, जो शायद ही कभी गाँव से बाहर निकले हों, ऐसे लोगों का शिकार करना चाहते हो? कितने महान और कितने बड़े हो? जानते हो मुझे? सीधे-सीधे बात करने में शर्म आती है? या वो काम नहीं होने, जो ऐसे टेढ़ी उँगलियाँ करके निकालना चाह रहे हो?
मुझे लालच भी दिया जाता है, इधर-उधर की बातों में, की यूनिवर्सिटी तो तुम्हें तुम्हारी बचत का पैसा देगी नहीं। ये मौका है, पैसा लो और बाहर निकलो। सच में? वो भी छोटे भाई की जमीन औणे-पोणे करके? वो भी वो जमीन, जो इतने सालों माँगने के बावजूद, इन So Called रैईशों को नहीं मिली? मैं तुम्हारे जितनी जलील कहाँ हूँ। मेरा देना बनता है वहाँ, लेना नहीं। यहाँ द्वेष किसी लक्ष्य से भी नहीं है। पर दुख है, की अगली पीढ़ी को भी ऐसे ही घसीटा जा रहा है, बड़े खिलाडियों द्वारा, जैसे हमारी या हमसे पहले की पीढ़ीयाँ भुगत चुकी या अभी तक भुगत रही हैं।
और पढ़े-लिखे गँवारों, अगर मुझे बाहर ही जाना है, तो पैसे की जरुरत है क्या? वैसे नौकरी नहीं मिलेगी? या रोक दोगे वो भी? अगर जाना ही हो तो रस्ते तो, और भी बहुत हैं शायद? तुम्हें वो नहीं मालूम या सिर्फ ज़मीन के नंबरी खेल के चक्कर में गँवार दिखा रहे हो खुद को? ये Congress पैसा इकट्ठा कर रही है, किसी गरीब की जमीन औणे-पोणे कर? सबसे बड़ी बात, खेल यहीं खत्म नहीं होता। उसके बाद, इस भाई को भी खत्म करना है। खेल तब पूरा होगा? और बहाना होगा की शराब पीता है। ये है, आदमखोर राजनीती।
मैंने इधर या उधर वालों का साथ नहीं दिया, तो मेरा भी ईलाज होगा। वही, जो भाभी का हुआ है? कोरोना के दौरान, बहुत जगह पीछे पोस्ट्स में आपने पढ़ा होगा Assisted Murders।
Assisted Murders में वो नहीं होता, जो आपको बताया या सुनाया जाता है। अक्सर वो होता है, जो आपको ना दिखता, ना सुनता और ना पता लगता। फिर कैसे पता लगाएँ? किस्से-कहानियों में, आसपास की ज़िंदगियों की होनी-अनहोनियों में ही छिपा है सब। हालाँकि जरुरी नहीं, सब किस्से-कहानी वही हों, जो वो बताए जा रहे हों। हो सकता है, सिर्फ नैरेटिव हों इस या उस पार्टी का। खासकर, अगर वो किन्हीं फाइल्स से हूबहू मिलते हों, तो। आएँगे उसपे भी।
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