राजाओं के आत्मघाती दस्ते -- ज्यादातर खुद के लिए या अपनों के लिए, राजे-महाराजों के लिए नहीं। राजे महाराजे किसी के अपने नहीं होते। वो सिर्फ कुर्सी के होते हैं।
या कहो इंसानों का रोबोट बनाना। जो चाहो वो करवाओ और वो करते जाएंगे। वो भी बिना सोचे-समझे की इसमें तुम्हारा अपना फायदा नुक्सान कितना है। या शायद पास का फायदा दिखा दिया और दूरगामी असर भूल गए? या उन तक या उनके आसपास वालों तक वो समझ ही नहीं।
Offensive, disgusting, repulsive and can add as many such words as possible in this. What is that?
कांडों पे मोहर, अपने तरीके की?
या चालों में कांड?
ये इनके वो उनके।
लोगों को अपनी सेनाएँ बना लेना और आत्मघाती कामों में प्रयोग करना। मतलब, वो खुद ही अपने खिलाफ काम करने लग जाएँ।
आप कहेंगे, कोई पागल है क्या? भला अपने ही खिलाफ क्यों काम करेगा?
काला आपका पसंदीदा रंग है?
नहीं? कोई खास नहीं। पर कोई खास खुंदक भी नहीं ?
यहाँ इंसान के तवचा के रंग की बात नहीं हो रही। बल्की,आसपास की हर चीज़।
फिर तो पसंद नहीं है।
काला रंग सत्ता को बड़ा पसंद है। मगर इंसानों की तवचा का नहीं, बल्की अंदर की कालिख़ का। अंदर जितना कालिख़ बढ़ता जाएगा, बाहर उतना ही ज्यादा, काला-काला रंगता जाएगा। हो सकता है, आपको ऐसी कालिख पसंद न हो, मगर आप खुद ऐसा कुछ कर रहे हों, यहाँ-वहाँ ? खुद से कर रहे हैं या इसे बोलते हैं, इंसानो को रोबोट्स बनाना? आत्मघाती बनाना। जो वो कर रहे हैं, वो उन्हें पसंद नहीं, मगर कर रहे हैं। या पसंद ही बदल गयी? कब, कैसे और कहाँ?
इस थोड़े से वक़्त में ऐसा बहुत कुछ यहाँ देखा, सुना और नज़र आया। जो इधर-उधर के झगड़ों में नजर आया, खान-पान, पेड़-पौधों में पाया। रिस्तों की दरारों में, घरों के फर्शों में, दीवारों में, खिड़कियों में, दरवाजों में, रसोई के बर्तनों में, बिजली के तारों में, खम्भों में, मीटरों में, बिजली के उपकरणों में, जमीनों के सौदों में, घरों-प्लॉटों की बिकवाली में।
सब कर तो ये लोग खुद ही रहे हैं। लग तो ऐसे ही रहा है। दिख तो ऐसे ही रहा है। मगर
मगर -- इस सबका सच कितना है?
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