ये राजनितीक पार्टी, वो राजनितीक पार्टी! घर, आस-पड़ोस कहाँ गुम गए?
"हम,आपसे दूसरी पार्टी से हैं।" यहाँ आपके कुछ खास अपनों का आना-जाना है। "I call such people unnecessary outsiders interfere, even up to the level of finishing up that home!"
दूसरी पार्टी? आप मन ही मन सोच रहे हैं। ओह! घरों में राजनितीक पार्टियाँ? तो क्या होगा ऐसे घरों में? मुझे तो लगा था, मैं अपनों के बीच हूँ। यहाँ तो राजनीती के लोग और उनके रचे ताने-बाने, उन्हीं की दी हुयी बीमारियाँ और इज़ाद मौतों में शामिल किरदार रहते हैं। जिन्हें खुद नहीं मालुम, कैसे?
वही मेरे मामा के लड़के, पी... वाली पार्टी? या दीदी कैप्टेन बोल रहा हूँ -- वाली पार्टी? कितने खासमखास किरदार हैं, इस पार्टी के? लड़कियों की टेस्टिंग का दो-दशक से भी ज्यादा का धंधा है इनका? वो गौरवमयी राणा वाले गान****? या शायद लड़कों से छोटी-मोटी गलतियां हो जाती हैं, वाले संस्कारी लोग? खैर, मन की बातें, मन तक रहें, तो ही अच्छा होता है। नहीं? और फिर तुम्हे यहाँ रहना ही कितना है? बच्चा भी तुम्हारे साथ-साथ निकल जाएगा। या शायद जरूरी होता है, थोड़ा बहुत मन की बात को भी बाहर निकाल देना? शायद कभी-कभी जरूरी हो जाता है? बच्चे को घर से छीनकर एक ऐसे वातावरण में धकेला जा रहा है -- जहाँ सीधे-सिल्की बाल, घुंघराले और भद्दे होने लगते हैं। आइटम नम्बर्स पे बच्चे ठुमके लगाने लगते हैं, और ये मोहतरमा कहती हैं, अर्रे फिरसे से दिखाओ। तुम्हारी बुआ आ गयी, उसे भी दिखाओ ना। हा! हा! हा! हा! हंसी ऐसे लग रही थी, जैसे कोठे पे बैठी, कोई धंधा एजेंट, बच्चों को धंधे में जाने की प्रैक्टिस करवा रही हो। ऐसा डांस नंबर और एक्शन शायद इससे पहले जेल के स्पेशल ट्रिप में देखा था। देखा, ना देखा-सा, हद दर्जे के, सिर दर्द के हालात में। जिस बच्चे को वो ये सब कह रही थी वो तो और भी छोटी है। धीरे-धीरे वहाँ की बातें और व्यवहार जानकार, आप इन बच्चों को घर में ही खेलो या पढ़ो का ज्ञान पेलने लगते हैं। कुएँ के टरटर मेंढकी की तरह, कार वाली लड़कियाँ तो उसके लिए बस अय्याशी का काम करती हैं। लड़के, ऐसे लोगों के लिए गलतियाँ नहीं करते, वो तो lucky होते हैं! झल्लाहट हो रही है?
"अर्रे! बुआ ने tution के पैसे दिए हैं, आओ पिज़्ज़ा पार्टी करें। हा! हा! हा! हा!" बच्चा किसी बात पे माँ को याद करते लगता है, और आप बोलते हैं -- "उधर देख , बड़ी माँ हैं ना।" क्युंकि वो अपनी दादी और छोटी दादी को भी प्यार में माँ ही बुलाती है। और ये चुड़ैल बोलती है --"म...., माँ ! हा! हा! हा! हा!" थोड़े से ही वक़त में ऐसे जाहिल-गवाँर लोग, सिर के ऊपर से उतरने लगते हैं। वो आपको ये बताने की कोशिश करने लगते हैं की आपके अपने घर में आपकी औकात क्या है और उसकी क्या! और उस जाहिल को ये तक नहीं पता होता की कुछ वस्तुएँ जो आज आपके पास आयी हुयी हैं, एक बार पता कर वो कहाँ से, कैसे, किसके लिए और किस अवसर पे आयी थी। हाँ! बच्चा जरूर कभी-कभार ऐसा कुछ गाने लगता है, वो भी डरा सहमा-सा। पर शायद सब गाना अच्छा नहीं होता। कुछ जगहों और लोगों से चुपचाप दुर खिसक लेना अच्छा होता है। नहीं तो आप अपना अच्छा कुछ दे पाएं या न, ऐसी छोटी-छोटी, मगर खोटी बकबक जरूर आपको अपने जाले में लेने लगती हैं।
वहाँ के खेलों का जिक्र शायद मैं पहले ही कर चुकी, किसी पोस्ट में। नंगी-पुंगी गुड़ियाओं के खेल, पार्लर-पार्लर। बच्चों की असली ज़िंदगी में असर? पढ़ते-पढ़ते भी आइटम्स नंबर वाले ठुमके, चलते-फिरते भी बम पे मारना और भी बहुत कुछ ऐसा ही। बालों पे अलग-अलग तरह की चोटियाँ बनाने के प्रयोग। और भी ऐसा ही बहुत कुछ। सोचने की बात है की बच्चे वहाँ पढ़ते क्या होंगे? शायद यही की tution से KVS की नौकरी पाने का रस्ता क्या है ? या मैथ्स में कोई specific position कैसे आएगी? या शायद, ऐसे माहौल में बच्चों के सपने होंगे Dance Reality Show में पार्टिसिपेट करना, वो भी हद दर्जे के बेहुदा गानो और एक्शन्स के साथ? फिर मन में कहीं ये ख्याल भी आता है, की आप कुछ ज्यादा नहीं सोच रहे?
मगर शायद ये सब समझना भी जरूरी है, इन जालों- जंजालों को समझने के लिए? इस घर और आसपास में हुए कुछ हादसों को समझने के लिए? गवाँरपठे, इतनी छोटी-छोटी चीज़ों को कहाँ समझ पाएंगे? वो तो इसके अगले पायदान को भी नहीं समझते?
गाली-गलौच, मारपीट! ये इसके आगे के खेल हैं। कुछ बच्चों के ऐसे माहौल में बात-बात में डायलाग ही इस तरह के होते हैं, "छीन ले, झपट ले, मार दे, पीट दे, फिर भी ना मिले तो रगड़ दे"। चकराइये मत! और क्या सिखाएगा ऐसा माहौल?
ये कोई मनघडंत कहानी नहीं है, हकीकत बता रही हूँ। आँखों देखी, कानो सुनी, अपनी सामने कही हुयी या हुई। पीछे शायद किसी पोस्ट में बच्चोँ के मार-पिटाई के खेल भी बताये होंगे? कहाँ से आता है, ये सब? सीधी-सी बात, आसपास के ही वातावरण से। यही वातावरण, यहाँ पे बहुत-सी ज़िंदगियाँ खा जाता है -- वक़त से पहले। खासकर, औरतों की और कमजोर तबकों की। बहुत से ऐसे लोगों की ज़िंदगियाँ, यहाँ इन्हीं वजहों से बेहाल हैं। खासकर, औरतों की। ये वजहें, ना सिर्फ घर का माहौल बिगाड़ती हैं, बल्कि अलग-अलग तरह की बीमारियाँ भी लाती हैं। और अस्पताल भी पहुंचाती है। यही कारण, बहुत सी मौतों के ज़िम्मेदार भी हैं। बहुत मुश्किल नहीं है, शायद इस ताने-बाने को समझना? खासकर, जब आपको उस जगह रहने का मौका मिले। और आप खुद उन सबका शिकार होने लग जाएँ। अब ऐसी पार्टियाँ, ऐसे माहौल में आग में घी का काम करती हैं। उन्हें बार-बार कहने के बावजूद, की मेरे घर से दूर रहो, या इस बच्चे से दूर रहो, भद्दे, बेहूदा, बेशर्मों की तरह, और ज्यादा घुसती जाती हैं। कौन घुसा रहा है उन्हें? ये जानना शायद ज्यादा अहम् है? और क्यों? ये शायद, उससे भी ज्यादा अहम् है? क्या ऐसे इंसानों के हवाले किसी बच्चे को किया जा सकता है? वो फिर चाहे कोई भी क्यों ना हो।
अब कल की ही तो बात है। क्या हुआ है? कुछ नहीं। यहाँ पे ये सब छोटी-मोटी बातें है। ऐसी शुरुआत के बाद, इस समानान्तर केस की घड़ाई का अगला स्टेप क्या है? ऐसा ही कुछ हादसा, जो पीछे हुआ है? आग लगाने वाले वहां क्या कारण थे? या कौन लोग थे? अब कौन हैं? जब कहीं मार-पिटाई हो रही हो, तो सिर्फ ये सुनकर पीछे हटा जा सकता है, की ये हमारा घर का मामला है? या ऐसे मामले पुलिस के मामले होते हैं? और उन्हें जितना जल्दी रोका जाए, उतना ही बेहतर होता है? शायद कोई बड़े हादसे बचाये जा सकें?
और शायद उससे भी ज्यादा अहम् है, ऐसे लोगों से संवाद। ऐसे माहौल में बदलाव की कोशिश। क्युंकि, यहाँ तो ये यूँ लगता है, घर-घर की कहानी है। और उसपे भद्दी, बेहुदा, गवाँर जुबाने -- "मर्द-मानस ते मार-ए दिया करें! " शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, "लड़कों से छोटी-मोटी गलती हो जाती हैं?" और कौन-कौन भुग्गते हैं, उन गलतियों के परिणाम? पुरा घर, आसपड़ोस, मोहल्ला और सारा समाज? नहीं?
जब ऑफिस में मार-पिटाई हो और सुनने को मिले, की ये तो Domestic Violence है!
तो अगर घर पे या उस घर के आसपास ऐसा कुछ हो, तो उसे, ये तो office Violence का नाम दिया जा सकता है? क्यों नहीं?
Universities समाज को राह दिखाती हैं, आगे लेके जाती हैं। दिखा तो रही हैं? आगे लेके तो जा रही हैं? ये वही तो समाज है, जिसको भद्र, पढ़ा-लिखा समाज बना रहा है? आगे का रास्ता दिखा रहा है? कहीं खुनी-रस्ता तो नहीं दिखा रहे, ये शिक्षा के महान पायदान? इनमें यूनिवर्सिटीज ही नहीं, बल्कि उस पढ़े लिखे समाज का हर तबका शामिल है। वो फिर चाहे डॉक्टर हों, वैज्ञानिक हों, या कोई और इंटेलिजेंस विंग्स -- फ़ौज या सिविल।
ये शायद उन लोगों के लिए खासकर है, जिन्हें लगता है की गलत हो रहा है। या बहुत कुछ हुआ है। वो, जो नहीं होना चाहिए था। वो जिसे बचाया जा सकता था, पर नहीं बचा सके -- शायद बहुत सी ज़िंदगियाँ। बहुत से घर, जो उजड़ गए या उजाड़ दिए गए, इन्ही राजनितिक ताने-बानो ने। कुछ पढ़े-लिखे दबुओं की ख़ामोशी की वजहों से, या ऐसे तानेबानों के साथ होने की वजहों से? वो जो ज़ुबाँ से जैसे कहर उड़ेलते हों, और इशारों में हाथ जोड़ते हों? जिन्हें पता तो सब है। क्या हुआ है, क्यों हुआ है। किसके लिए या कैसे हुआ है। किसके इशारों पे या चालों पे हुआ है। तो ऐसे लोगों को समाधान नहीं मालुम क्या?
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