धंधा है, पर गन्दा है ये!
अचानक से फिर वही? हालाँकि, अचानक जैसा कुछ भी नहीं। खबर आ रही थी इधर-उधर से, की फिर-से ड्रामा शुरू। कुछ-कुछ बच्चे ने भी गाना शुरू कर दिया था की किससे पढोगे तो कौन सी पोजीशन आएगी। खासकर कोई खास पेपर। "Special Maths Tutor", Special Dates Exams And again same shooter/s? ऐसे गंदे धंधे में बच्चों को भी नहीं बक्सा जाता?
सुना है, WhatsApp University, ऐसे-ऐसे रोबोट बनाने में (Robotication), काफी उपयोगी है, खासकर राजनितिक पार्टियों के लिए। बच्चों का क्या है, उन्हें थोड़े ही कुछ समझ आना है। पेलते रहो, इधर-उधर, जैसे भी।
ये अचानक-सी दिखने वाली नौटंकियाँ, धीरे-धीरे समझ आने लगती हैं। आम इंसान आज भी बेखबर है, की वो कैसे, ऐसे-ऐसे समान्तर केसों की घड़ाई में प्रयोग (?), ना! दुरूपयोग हो रहा है। दुरूपयोग मतलब फसाया जा रहा है। उनकी इन नौटंकियों में कुर्सियों के हेरफेर हैं। सत्ता के साधन है। और तुम्हारे बच्चों की, तुम्हारे अपनों की और खुद तुम्हारी अपनी ज़िंदगियाँ बर्बाद। ज्यादातर केसों में ऐसा ही होता प्रतीत हो रहा है। अब अपने ही आसपास के किसी 24 के केस को ही लो। ऐसे-ऐसे हादसे समय रहते टाले जा सकते हैं, खासकर जिन्हे उनकी भनक हो, उन द्वारा। मगर करवाने वालों को वो चाहियें, खासकर राजनितीक पार्टियों को। और आम-आदमी को या तो खबर ही नहीं होती या तरीके नहीं पता होते।
शायद वैसे ही जैसे कई हादसे कोरोना दौर में या उसके बाद कुछ हद तक भनक के बावजुद हुए हैं। मगर वक़्त रहते रोके नहीं जा सके। जितना ज्यादा राजनितीक पार्टियों के ताने-बानो से दूर रहोगे और जितना ज़्यादा खुद को या अपने आसपास को आगे बढ़ाने में वयस्त रहोगे। उतना ही ऐसे हादसों से बचने के chance ज्यादा रहेंगे।
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