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Friday, May 12, 2023

अन्धविश्वास, अज्ञानता, अंधभक्ति और --

अन्धविश्वास, अज्ञानता, अंधभक्ति और उसपे तड़का लगा हो राजनीति का, लोभ का, लालच का? 

Automation, Semiautomation and Enforced or the other way?

Can micromanagement create all this and makes humans robots to exploit different ways?

When we talk about superstition then generally keep illeterate people in mind. Though at times, it can be the other way.

अन्धविश्वास अज्ञानता है और अज्ञानता अन्धविश्वास। अंधभक्ति भी इन्हीं का मिश्रण है। 

सुना होगा कहीं, "माता धोकन जावां सां, माता निकल री सै" और आपने सोचा होगा शायद, की आज के वक़्त भी लोग इन सब में विश्वास रखते हैं?

या "पीलिया निकल आया, ना पीला देखना, ना पहनना, ना खाना"। और शायद आपने सोचा होगा, ये कौन सी दुनिया में आ गए?

और भी बहुत कुछ ऐसा ही। 

Then there is another world, comparatively new knowledge. The way they mix things and create complexities for the exploitation of common people, are some of cruelest ways. They are neither illiterate nor lilbit educated. Who are these people? What are they doing?

Docs, Scientists, Profs and so many other field experts, especially ones who are brains of different parties. They process things from higher level and different parties people micromanage them up to that last level.

2016, H#16, Type-3, कोई आम (दुशहैरी) के पेड़ पे ढेर सारा कच्चा सुत का धागा लपेट गया, पीछे वाले लॉन में। और आप सोच रहे हैं, कैसे-कैसे गँवारपट्ठे हैं यूनिवर्सिटी में भी! उसके पीछे के जुर्म की कहानी थोड़ा लेट समझ आयी।  

माता धोकन जावां सां, माता निकल री सै और पढ़े लिखे भेड़ियों के जाले बच्चों तक को नहीं बख्सते। 

पीलिया निकल आया, ना पीला देखना, ना पहनना, ना खाना ?

ऐसे-ऐसे कितने ही अंधविश्वासों के पीछे छुपे जुर्म की कहानियों (Scientific Way of Exploitation by abusing knowledge and exploiting illiterate, semi illiterate people via faith or religion) को कैसे समझाया जाए? शायद ये सब ज़्यादा जरूरी है।  

कम पढ़े-लिखे लोगों को अपने जाल में फसाना एक बात है। मगर पढ़े-लिखे लोगों का भी पत्ता काट देना, वो भी जब, जब ये सब करने वाले पढ़े-लिखे (भेड़िये)--?, कितने ही लोगों के Surveillance Radar पर हों? 

कुरकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हॉस्पिटल्स। जहाँ हर बीमारी बढ़ाई जा सकती है, बनाई जा सकती है -- सिर्फ़ और सिर्फ़ कुछ पैसों के लिए। ये कहानियाँ हैं, कैंसर से लेकर, लकवे तक के अनोखे इज्जादों की। मलेरिआ, डेंगू, BP, Heart Attacks से लेकर, हर उस बीमारी तक, जो आप सोच, समझ और जान सकते हैं, या जानते हैं। 

मगर हॉस्पिटल्स तो आप बाद में जाते हैं। उससे पहले भी बहुत कुछ है, जो आपको वहाँ तक पहुंचाता है। क्या है वो सब? कैसे समझा और बचा जा सकता है, इन सबसे? और कैसे बचाया जा सकता है, आम आदमी को, जिसकी समझ में अन्धविश्वास ज़्यादा फलते-फुलते हैं?     

इसके लिए इनके जानकारों को, वो फिर चाहे डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, प्रोफेसर्स या संचार माध्यम से जुड़े लोगों को अपने आसपास के ऐसे इलाकों में ज़्यादा संवाद और प्रचार की जरूरत है। खासकर उनको, जिन्हें पैसे से ज़्यादा अपने प्रोफेशन से लगाव है। 

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