आपको पता है, उनके घर एक नयी बहु आई है।
हाँ। आपको पता है, आपकी क्या लगती है, वो नई बहु?
पुरानी कहाँ गई? और उनकी लड़की भी थी ना?
थी नहीं, है।
कहाँ रहते हैं वो?
अपने घर।
ये उनका घर नहीं है?
आप नई बहु से मिले?
हाँ।
कैसी लगी? अच्छी हैं ना?
पुरानी ज्यादा अच्छी थी।
पर वो तो गए ना।
और लड़की को भी ले गए।
हाँ। वो माँ-बेटी यहाँ रहते ही नहीं थे।
आपको पता है, वो मेरी मम्मी की जगह आई है?
आपकी मम्मी की जगह वो कैसे आ सकती हैं? आपका और उनका घर अलग है। वो आपकी चाची लगती हैं, मम्मी नहीं। वैसे किसने बोला आपको, की वो आपकी मम्मी की जगह आई है? बेवकूफ हैं वो। ऐसे भी कभी होता है?
अच्छा, आप मेरी पुराने वाली चाची से बात करवा सकते हैं?
मैं तो उन्हें ज्यादा जानती नहीं। तब मैं यहाँ आती-जाती ही कितना थी, जब वो यहाँ थे ?
तो नंबर तो ले सकते हैं।
आप जानते हैं उन्हें? वैसे, क्या बात करनी है आपको उनसे?
बताना है कुछ।
क्या?
उन्हें पता है, उनके घर में कोई और घुस गया है?
आप बच्चे हो। आपको शायद नहीं पता की वहाँ क्या चल रहा है। वो भी शायद किसी नए घर में गए।
आपको पता है, बात होती है आपकी?
नहीं। मैंने भी सुना है, जैसे आपने यहाँ-वहां से सुना है। वैसे, ये सब किसने बोला है आपको?
पता नहीं। मुझे उनका नंबर चाहिए। आप ला दो ना कहीं से। नहीं तो ये पता कर दो, वो रहते कहाँ हैं।
मुश्किल है ये तो। जिसने आपको बताया है की वो आपकी मम्मी की जगह आए हैं, शायद उन्हें पता हो।
वो नहीं बताएँगे। उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया। वो तो मुझे ऐसे ही सुन गया।
थोड़ी देर और ऐसी ही गपशप चलती रही। ऐसी-ऐसी कुछ और बातें, कुछ इधर की, कुछ उधर की, यहाँ-वहाँ। और आपको समझने में ज्यादा देर नहीं लगेगी की Human Programming क्या होती है और इंसान Robots की तरह क्यों व्यवहार करने लगते हैं।
मानसिक शोषण -- परिस्थिति जितनी ज्यादा कमजोर या नाजुक होती है, उसमें मानसिक शोषण होने के उतने ही ज्यादा आसार बढ़ते जाते हैं। मतलब, उतने ही ज्यादा, जोड़-तोड़-मरोड़ कर, चीज़ों को या परिस्थितियों को दिखाने के या भुनाने के तरीके। ऐसी बातों को सुनने वाला, कमजोर मानसिक स्थिति में अक्सर उस बच्चे की तरह होता है, जो पल में हंस दे, पल में रो दे, पल में झगड़ ले और पल भर बाद वैसा का वैसा। यहाँ इस तरह की गपशप आम हैं, की इनके यहाँ ये गया तो उनके यहाँ वो आ गया। क्युंकि, वहां भी पहले वाला कोई, कहीं और गया।
शुरू-शुरू में मुझे लगता था की ये सब सिर्फ मुझे लग रहा है। या सिर्फ मुझसे इधर-उधर की खामखाँ की, बगैर सिर-पैर की तुलना हो रही है। और भी ऐसे ही कई केसों में जब ये सब सुना, या देखा, तो समझ आया, की ये तो राजनीती का जाल है, और वो भी बिलकुल जालों की तरह। इतनी तरह गुंथा हुआ की ढूंढ़ते ही रह जाओगे, की ये जाला किधर से आ रहा है, और वो किधर से! रिश्तों के बनने-बिगड़ने में, टूटने-सवंरने में भी, राजनीती के इन जालों का अहम् रोल है। तो आम-आदमी इतना भी नासमझ नहीं है, की इतना कुछ देख-समझकर भी, ये सब बिलकुल ही समझ न आए? पर शायद अभी तक इतना समझ नहीं पाया की रोजमर्रा की ज़िंदगी में इन सामानांतर घढ़ाईयों के दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए? जहाँ अच्छा है, वो तो सही, मगर जहाँ दुष्प्रभाव बहुत ज्यादा हों?
पुनर्जन्म? क्या होता है ये? इंसान का एक जगह से चले जाना और किसी दूसरी जगह जन्म ले लेना? या घर, जगह और रिश्ते नातों का बदल जाना ? पता नहीं।
Be static where you wanna be, but don't stay at the same place at least for the sake of your next generation.
शायद अगर हो सके तो ऐसी जगहों को छोड़ देना चाहिए? वैसे भी कितनी पीढ़ी एक ही जगह? एक ही जगह रहने का मतलब, आप कुछ खास नया तो सीख ही नहीं रहे। ऐसी जगहों पे आगे बढ़ने के रस्ते कम और शायद मुश्किलें ज्यादा बढ़ती जाती हैं? आगे बढ़ने वाले लोगों की अगली पीढ़ी, ज्यादातर उसी जगह नहीं रहती।
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