तुम जिसके पास रहते हो, उसी जैसे-से दिखने लगते हो। कैसे? व्यवहार भी, वैसा-सा ही करने लगते हो।
कुछ साल पहले, दो बच्चों के बालों में, कुछ अजीबोगरीब बदलाव महसुस किये गए।जेनटिक के हिसाब से, वो कुछ हज़म नहीं हो रहा था। एक बच्चे के पैदायशी, सीधे भारतीय भूरे-काले बाल, काले और घुँघराले में बदलने लगे थे। दूसरे के पैदायशी, काले और घुँघराले बाल, सीधे और हलके काले में। कोई बड़ी बात नहीं। कितने ही तो कॉस्मेटिक्स हैं बाज़ार में, ऐसा करने के लिए। मगर, वो इन बच्चों के केस में संभव नहीं लग रहा था। माँ-बाप ही इतना पार्लर नहीं जाते, तो बच्चे कहाँ से जाएँगे?
उस वक़्त ये शायद किसी ने लिखा था कहीं, "तुम जिसके पास रहते हो, उसी जैसे-से दिखने लगते हो।" मुझे समझ नहीं आया तब। शायद, अब कुछ-कुछ आ रहा है।
व्यवहार भी, वैसा-सा ही करने लगते हो।
खाते-पीते वही हो। नहाते-धोते उसी पानी से हो। रखरखाव भी, वैसा-सा ही रखते हो। नहाने-धोने के लिए, रखरखाव के लिए, प्रोडक्ट्स भी तक़रीबन वही प्रयोग करते हो। छोटी-मोटी बिमारियों के नाम पे, दवाईयाँ भी वहीं की लेते हो। तो क्या होगा?
पहले मैं यहाँ से कोई प्रोडक्ट कम ही लेती थी। चाहे वो खाने-पीने का हो या किसी और तरह का। क्युँकि, इतनी देर रुकना ही नहीं होता था। अब जब रूकना पड़ा, तो काफी-कुछ समझ आया। दिनप्रतिदिन प्रयोग होने वाला कुछ सामान, मैंने यहाँ से लेना शुरू कर दिया।
ये भी समझ आया की Molecular Bio के Codon Usage की तरह, हर प्रोडक्ट का अपना एक कोड है और वो किस कोड वाली जगह या दुकान पे फिट बैठता है, वो प्रोडक्ट भी वहीं आएगा। इसमें काफी कुछ automation पे है और काफी कुछ semi-automation। ऐसे ही जैसे, इस जगह इनके हॉस्पिटल हैं, उस जगह उनके। इन हॉस्पिटल्स में, इन-इन कंपनियों की दवाईयाँ मिलेंगी। उन हॉस्पिटल्स में उनकी। बदल गए, उनको बनाने वाली सामग्री और तरीके। तो प्रभाव भी बदलेंगे।
सोचो, एक ही कंपनी, एक ही प्रोडक्ट, मगर थोड़ी-सी जगह बदलते ही, उसपे कुछ अजीब-सा, कोई शब्द बदला मिले? ऐसा एक नहीं कई प्रोडक्ट्स के साथ हुआ। आपने कोई खाने का सामान लिया है। याद ही नहीं कब से वही ले रहे हैं। दोनों जगह पैकेजिंग वही, स्वाद भी वही, दिख भी वैसा ही रहा है। मगर बड़ा-सा लिखा एक शब्द, आपको उत्सुक बनाता है। और आप सोचते हैं, ये क्या है? वैसे भी मेरी आदत का हिस्सा है, तारीख़, ingredients वैगरह जाँच कर लेना।
एक जगह के उसी कवर पे अंदर की साइड M, और दूसरी जगह B। अब किसी खाने-पीने की वस्तु के अंदर के कवर पे भी, ऐसा क्या फर्क हो सकता है? ये कौन-सा, electronic-items की chip हैं?
कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, कहीं सीधे और खुले बालों का चलन हो। बाँधना हो, तो इक्क्ठ्ठे किये, सिम्पल सा रुफल डाला और हो गया। मतलब, जो काम आसानी से और कम वक़्त में हो सके और ठीकठाक भी लगे। और कहीं चलन में,जलेबी-जैसी, सीधी-सी-चोटी (Braid)। वहां पर शायद वही अच्छी लगती है। उनके लिए खुले बाल मतलब, भूतनी! भांध ले इन्ह, भुंडी लाग्य सै। दादियों के वक़्त में, एक जबस्दस्त गुँथा-हुआ, सिर के ऊपर जुड़ा जैसा-सा चुण्डा होता था, जो वो खुद नहीं बनाती थी, बनाने वाली आती थी। तो कहीं बच्चों को नए-नए शौक थमाए जा रहे हों। आज इधर से, कल उधर से, परसों उधर से, टेढ़ी-मेड़ी, उलटी-पुल्टी, कभी आगे से, कभी पीछे से, कभी इस साइड से, तो कभी उस साइड से, कभी एक, कभी दो, कभी और भी ज्यादा। आओ, पार्लर-पार्लर खेलते हैं। खामखाँ की रोकटोक, शायद किसी को भी अच्छी नहीं लगती। खासकर जबतक बताया ना जाए, की ऐसे या वैसे करने से फर्क क्या पड़ता है। हमें क्या करना है, या क्या बनना है, उसके हिसाब से वक़्त कहाँ लगाना चाहिए। वक़्त, जरूरतों, जगह और समय के हिसाब से काफी कुछ बदलता है।
मगर इन्ही के अंदर छिपा होता है सिस्टम, राजनीतिक कोड्स और पार्टियों के द्वन्द्व। बच्चों से लेकर बड़ों तक, सिर्फ उनका अनुशरण कर रहे होते हैं। ज़्यादातर बिना जानकारी के। इसीलिए, अगर आप किसी या किन्हीं बिमारियों का बार-बार शिकार हो रहे हैं या लगता है, की ये किया हुआ है -- राजनीतिक बीमारी है, तो जगह बदल कर देखिये, शायद ठीक हो जाएं। वो कहते हैं ना, कुछ बीमारियाँ हवा-पानी बदलने से ही खत्म हो जाती हैं। क्युंकि, उस हवा-पानी के साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है। वैसे ही, जैसे, भाषा, वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान आदि। ये सब पेड़ पौधों से ज्यादा सीखा जा सकता है।
No comments:
Post a Comment