थोड़ा हेरफेर इधर, थोड़ा हेरफेर उधर, शब्दों का, इरादों का, क्या-क्या करवा सकता है?
आप इस विषय और इससे संभंधित हो सकने वाले प्रभावों पर विचार करिये। आते हैं इस विषय पर भी। इसके इंसान के रोबोट्स की तरह प्रयोग कर पाने की क्षमता पर। भावानात्मक प्रहार, भावानात्मक रूप से बदल पाने की क्षमता। सिर्फ़ थोड़ा-सा दिमाग प्रयोग करके शांति को बवंडर में और बवंडर को शांति में बदल पाने की क्षमता। रिश्तों के जोड़-तोड़ करने की क्षमता। रिश्ते बदलने की क्षमता। घरों को, समाज को तोड़ने या जोड़ने की क्षमता। परिणामों को इधर से उधर कर पाने की क्षमता।
बड़ी-बड़ी कंपनियों के जोड़-तोड़ की क्षमता। राजनीतिक उथल-पुथल मचाने की क्षमता। कुर्शियों के द्वंद्वों का शातिर हेर-फेर। जिन्हें ज़्यादातर करते हैं, कहीं दूर बैठे शातीर इंसान, और भुगतान करता है अक्सर आम आदमी।
छोटे स्तर पर भी, आप रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कितने ही ऐसे वाक्यों से वाक़िफ़ होते होंगे। कभी इधर तो कभी उधर देखते होंगे। तो शायद कहीं खुद भी भुक्तभोगी होंगे।
इन सबके पीछे कोई जादू नहीं है। साइंस है, साइकोलॉजी है और उनके अलग-अलग तरीके से बदलाव कर पाने की क्षमता।
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