जादु? या (Brainwash) -- किसी खास उदेश्य से विचार, भाव, बर्ताव आदि बदलने की कोशिश करना।
ऐसा कहाँ-कहाँ संभव है? पहले इसे आतंकवादी बनाने में प्रयोग करने वाली विधि के रूप में यहाँ-वहाँ पढ़ा था। ज़्यादातर, अख़बारों में। उसके बाद, दिमाग-नियंत्रण के तौर-तरीके और राजनीतिक पार्टियों द्वारा सामाजिक स्तर पर इसके दुरूपयोग के किस्सों में, वाद विवादों में। जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का समाज पे प्रभाव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ये सामाजिक घड़ाई (Social Engineering) में ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हो रहा है। कहीं सही, तो कहीं गलत।
किस तरह के लोगों को आसानी से नियंत्रित (Control, Brainwash) किया जा सकता है?
और किस तरह के लोग टेढ़ी खीर साबित हो सकते हैं?
सीधी सी बात -- भोले, अंजान, अनभिज्ञ और ज़्यादातर कम पढ़े-लिखे। ज्यादातर! हमेशा जरूरी नहीं। क्युंकि कभी-कभी, अच्छे-खासे, पढ़े-लिखे भी धोखा खा जाते हैं और कम पढ़े लिखे बच निकलते हैं। क्युंकि, ये सब इसपर भी निर्भर करता है, की सामने वाले को किसी विषय-वस्तु की जानकारी कितनी है।
बच्चों के केस में, ये सबसे आसान होता है। इसीलिए बच्चों को कहीं भी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच या आसपास भी अकेले नहीं छोड़ा जाता। मगर क्या हो, जब जाने-अनजाने, कुछ खास अपने कहे जाने वाले लोग, किन्हीं जालों के चक्कर में आकर, ऐसे किसी प्रोग्राम या षड़यंत्र का हिस्सा बन जाएँ?
किसी और के घर के बच्चे की इतनी अहमियत किसी या किन्हीं बाहर वालों के लिए, कैसे और क्यों हो सकती है? किस तरह की राजनीति हो सकती है, उसके पीछे? और उसके परिणाम क्या हो सकते हैं?
आइये पहले Brainwash के तरीकों को जानते हैं:
सबसे पहले ऐसे किसी आदमी को या समुह को, उनसे अलग करना होता है, जो किसी भी तरह की brainwashing में रोड़ा बन सकें। कौन होंगे ऐसे लोग? परिवार या उनके शुभचिंतक। किसी भी तरह से उनसे अलग करो। ऐसे किसी भी रोड़े को रस्ते से साफ़ करो। काम बहुत आसान हो जाएगा।
अब brainwash किये जाने वाले व्यक्ति की पढ़ाई शुरू होती है। जिनसे दूर करना है, उनके खिलाफ भड़काने के तरीके क्या-क्या हो सकते हैं? खासकर जब, जिसके या जिनके खिलाफ भड़काना हो, वो बहुत अपना या खास हो? आप सच्ची-झूठी जितनी बुराई उनके खिलाफ, उस इंसान के पास रहते हुए कर सकें। जरूरी नहीं वो सच भी हो या आसपास भी हो। समझदार आदमी होगा, तो हक़ीक़त जानने की कोशिश करेगा। ज्यादा तिकड़म वाले शायद उन कोशिशों में ही फंसा लें, येन-केन-प्रकारेण। और बच्चा हो तो? कोशिश ही नहीं कर पायेगा। शायद उसे सहायता चाहिए, तो शुरू-शुरू में चोरी-छुपे बताएगा, डर-डर के। जब शैतानों को ऐसा कुछ पता चलेगा, तो वो उस पर भी जैसे-तैसे प्रतिबंध लगाने की कोशिश करेंगे। तब कहाँ जाएगा वो? वो सब उसके व्यवहार में आना शुरू हो जाएगा। चिखना-चिलाना, रोना, बात-बात पे चिढ़ना, बात-बात पे मारना-पिटना, उदास रहना। और शायद वक़्त के साथ जालों के जंजाल में फंस जाएगा?
अगर ऐसे किसी केस का पता हो, तो समय रहते बचा भी सकते हैं? क्यूंकि ऐसे-ऐसे केसों में, किसी Parallel केस जैसी-सी घड़ाई की तरह, हर कदम पर खामियाँ ही खामियाँ धरी होती हैं।
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