इंसान, जानवर, पेड़-पौधों का आना और जाना, कितना एक जैसा सा हो सकता है ?
सब्ज़ी ले लो, सब्ज़ी
भैया कितने की दी?
अरे, इससे मत ले, वो ऑटो वाला आएगा ना
ये भी तो ऑटो वाला है?
नहीं वो बजरंग बलि है
तो?
ये तो बामन है, बासी लावै है
अच्छा फिर तो उस बड़ी टेम्पो वाले से लेना
क्या फ़र्क पड़ता है, इससे या उससे, जहाँ से सही मिले ले लो?
ये पैसे भी ज्यादा लेता है।
गररर
और आपको ऑफिस याद आता है, वो उस दिन वाली अज़ीब विषय बातचीत। सब्ज़ी कहाँ से लो ये भी विषय है?
आपके यहाँ कौन सब्जी लेके आता है? कहाँ से है? किसमें आता है? नाम क्या है? कौन-सी सब्जी, कितने की देता है? कब तक आता है और कब दूसरा आना शुरू कर देता है। ये भी राजनीतिक जुआ बताता है या ये सिस्टम?
और बच्चे ऐसे-ऐसे खेल भी खेलते हैं?
जी हाँ! ऐसा ही। खाने-पीने से लेकर, ओढ़ने-पहनने तक। किस हिस्से में, कौन-सी फसल उगेंगी और कब तक, सब ये सिस्टम बताता है। और आपको लगता है, वो सब अपने आप होता है? हाँ! जो आपके सामने होता है, उसमें से पसंद आप करते हैं। मगर, वो भी शायद बहुत जगह नहीं। बहुत-सी चीज़ें प्रभावित करती हैं, उसको भी। बहुत बार automatic version से और बहुत बार शायद आपकी जानकारी के बिना।बहुत बार एक तरह से थोंपी हुयी, अलग-अलग तरह की हेरा फेरी से। हेराफेरी, जो आपको नजर नहीं आती।
अपने आसपास पेड़ पौधो को देखिये। कौन, कौन-से हैं? कौन से बहुत सालों से? कौन से नए? वो नए कहाँ से आये? कौन लाया? या कैसे आये? उनपे फूल-फल कैसा आता है? कौन-कौन से पौधों पे नहीं आता है? कभी जानने की कोशिश की, ऐसा क्यों? अपने आप? या किया जा रहा है? हो सकता है, आपको जानकारी ही न हो, की ऐसा कैसे? जानवरों के साथ भी ऐसा ही है। और इंसानों के साथ भी। किसी भी इलाके में जो-जो, पेड़-पौधों के या जानवरों के साथ हो रहा है, वैसा ही कुछ इंसानों के साथ भी। अब ये अपने आप कैसे संभव है?
कुछ automation पे रखा हुआ है। कुछ semiautomation और कुछ जबरदस्ती। शायद आसपास के लोगों की जानकारी के बैगर। मगर हो सकता है, करवाया उन्ही से जा रहा हो। या हो सकता है, बाहर से भी।
No comments:
Post a Comment