जितना ज़्यादा आप सामानांतर केसों का विश्लेषण करेंगे, उतना ही समझ आएगा की अपने आप जैसा कुछ नहीं है। बहुत जगह, बहुत तरह के जबर्दस्ती घड़ने के तरीके हैं। चालाकी और धूर्तता के तरीके हैं।
जो केस जितना ज्यादा एक जैसा-सा दिखता है, उसमें उतनी ही ज्यादा जबरदस्ती घड़ाई हुई है। जो बाहरी दख़ल के बिना संभव ही नहीं है। जहाँ Campus Crime Cases में इनके प्रमाण Documented हैं। वहीँ सामाजिक घड़ाई में बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना। आधी-अधूरी जानकारी देना। इधर का उधर, उधर का इधर करना या बताना। कुछ-कुछ हेराफेरी जैसा-सा ही। हेराफेरी करने के लिए कुछ उपयुक्त परिस्थितियाँ, जैसे:
जिस जगह मनमुटाव या आपस में फुट ज्यादा होगी।
विचारों में मदभेदों को स्वीकार करने की सहनशीलता कम होगी।
लोग कान के कच्चे ज्यादा होंगे।
आपस में बात करने की बजाय, बाहर वालों से ज्यादा बात करते हों।
या किन्ही केसों में एक दूसरे के बारे में जानकारी किसी और से लेते हों, किसी भी परिस्थिति वस।
शांत दिमाग की बजाय जल्दी गुस्सा करने लगते हों।
और भी ऐसी ही कितनी परिस्तिथियाँ हो सकती हैं, जहाँ इन्हे घड़ना आसान हो जाता है । जहाँ फुट या मनमुटाव ना भी हो, या ऊपर दी गयी जैसी कोई परिस्थियाँ न भी हों, वहाँ भी शातिर लोग जाने कैसी-कैसी परिस्थियाँ पैदा करने का मादा रखते हैं।
आजकल ऐसा ही कुछ आसपास चल रहा है, जिसके परिणाम 2024 तक ही शायद खतरनाक रूप में सामने आ सकते हैं। जो इस घड़ाई के मोहरे बने हुए हैं, उन्हें खुद नहीं मालूम की वो रोबोट्स की तरह प्रयोग हो रहे हैं। उनके अपने लिए इसके परिणाम सही नहीं होंगे।
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