Creation of Parallel Cases in Society
कल की ही तो बात थी, जब मेरा जन्मदिन, मेरे उपहार, आपका जन्मदिन भी मेरा जन्मदिन और बच्चों की खुली-सी मस्ती। मगर, एक ही दिन में घुट-सी गयी थी वो। बदल गयी थी, उदासी में । उसके बाद जो हुआ, वो तमाशा पहली बार देखा था। बच्चा जैसे उठा लिया गया था। किसी अपहरण की तरह। शायद पसंद नहीं आया, कुछ लोगों को उसका यूँ शिकायत करना कहीं। चाहे वो शिकायतें थी, डरे-सम्हे, एक दबे-से बच्चे की।
मेरी नजरों से ही ओझल कर दिया गया था उसे। घर रहके भी घर नहीं थी वो। जैसे वो घर उसका कभी था ही नहीं। जैसे निकाला दे दिया हो, उसे उस घर से -- पड़ोसियों के यहाँ या गली में। कौन पड़ौसी? कैसे पड़ौसी? किसके पड़ौसी? क्या लेना-देना उनका, किसी के बच्चे से? बच्चे के पेपर सिर पे और माँ है नहीं। घर में सब अनपढ़-गवाँर। कोई पढ़ाने वाला नहीं। गररररररर
सच में?
अब tution तो लगाना पड़ेगा ना? अरे वो पहले से पढ़ाती है, तो अब भी पढ़ा लेगी?
सच में?
पहले से, कब से? अभी 2022 में पढ़ाना शुरू किया है। Correspondence से MA कर रही है। नहीं कर चुकी।
बढ़िया।
तुम्हे छोटे बच्चों को पढ़ाने का तजुर्बा नहीं है ना।
और आप हक्के-बक्के से, सामने वाले के मुँह की तरफ देख रहे हैं। और सोच रहे हैं, 31st जनवरी तक तो था, शायद। कम से कम अपने घर के बच्चे को पढ़ाने का। हाँ, tution का जरूर नहीं है। इजाज़त नहीं होती, सरकारी नौकरी में और ना ही कभी महसुस किया, ऐसा करने का। फिर ऐसा क्या बदल गया? शायद बहुत कुछ, 1st, फरवरी को।
आसपास एकाध और आवाज़ आती हैं, क्यों सिरदर्द ले रहे हो। वो ...... है ना।
और आप मन ही मन सोचते हैं, "सिरदर्द? अपने बच्चे को पढ़ाना सिरदर्द?"
अब बच्चा आपके पास थोड़ी बहुत देर खेलने के बहाने आता है, बस।
1-2 दिन बाद वो भी बंद। अब खेलेगा भी वहीँ। वही पड़ोस में tution वाली madam के पास।- Correspondence-MA
उसके बाद खाना-पीना भी वहीं। कई बार तो दादी भी रस्ता ही देखती रह जाए।
आपको लगता है, बच्चा ज्यादा ही बाहर खेलने लगा। रात के 9.00 बजे तक। 9.30 बजे तक। आप भी उसके पीछे-पीछे रहने लगे। और इसी के साथ इधर-उधर खटपट भी रहने लगी। और आप मन ही मन सोचते हैं --एक माँ, कितनी जरूरी है, बच्चे के लिए। कितना कुछ करती है। उसे पल-पल की खबर है, अपने बच्चे की। कितनी देर पढ़ना है। कितनी देर खेलना है। कहाँ खेल सकते हो और कहाँ नहीं। कब तक खेल सकते हो, और कब तक नहीं। और भी पता नहीं क्या-क्या। कितना कुछ बदल जाता है, सिर्फ एक इंसान के ना होने से -- खासकर माँ। दादी या बुआ वो सब करने लगें तो खामखाँ की बड़बड़ क्यों? सब जैसे सिर के ऊपर से जा रहा था।
अब इन अजीबोगरीब पड़ोसियों पे, अजीबोग़रीब शक होने लगा। भला कोई क्यों करेगा ऐसा? किसलिए? और इसमें बच्चे की भलाई कहाँ है? क्या-क्या सीख रहा है वो, ऐसे माहौल में? धीरे-धीरे, आप ये सब, कुछ अपने बड़ों से, इधर-उधर बाँटने लगते हैं। जो शायद कुछ कर सकते हैं। और थोड़ा बहुत बदलाव होता भी है। बच्चा वापस घर दिखने लगता है। दैनिक दिनचर्या में कुछ-कुछ पहले की तरह लौटने लगता है। मगर कुछ जगह, कुछ अजीबोगरीब सख्ताई भी होने लगती है। ये जिसकी शिकायतों से हुआ है, उससे जितना और जैसे हो सके, दुर रखने की कोशिशें।
वो नयी-नयी tution वाली मैडम, उसकी माँ वाले स्कूल में पढ़ाने लगती है। चलो अच्छा है। सब निठल्ले, जितनी जल्दी, अपने-अपने कामधाम लगें, उतना अच्छा। इधर-उधर, फालतु का दिमाग कम चलेगा। उलटे-पुल्टे काम कम होंगे। इधर-उधर परेशानियाँ कम होंगी।
मगर
अब बच्चे का स्कूल बदलने की भी खबरें चलने लगी। हाँ। ख़बरें चलने लगी। अब ये क्या बकवास है? और क्यों? वो भी, वहीँ tution वाली madam के साथ जाएगा। अच्छा? अगर वो स्कूल इतना अच्छा था, तो उसकी माँ अपने साथ ही ना ले जाती? मैंने तो सुना है, वो खुद भी स्कूल बदलने .....
एक समझदार (?) पड़ोसन: अरे दो पैसे बचेंगे।
और आप फिर से चुप, मन ही मन सोचते हुए। पढ़ाई में भी दो पैसे बचाने हैं? क्या सोच है। और सच में ऐसी कोई नौबत आ गयी और तुम्हें खबर ही नहीं। कैसे अपने हो तुम?
थोड़ा रूककर आप बोलते हैं। पैसे की दिक्कत, किसी की तरफ देखते हुए? जो कल देता था, अब भी वही देगा। बस कुछ महीने की दिक्कत थी। लड़की स्कूल नहीं बदलेगी और ना ही पैसे की ऐसी कोई दिक्कत। यहाँ, स्कूल की पढ़ाई में तो फिर कुछ लगता ही नहीं।
मामला कुछ और है? क्या है? क्यों है? किसलिए है? महज़ राजनीति? खतरनाक राजनीति? और क्या कहा जाए?
ऐसे ही बनते हैं Parallel Cases?
Twists, Turns, Manifestations, Manipulations as per requirements.
No comments:
Post a Comment