सिस्टम Automation पे कितना है? Semiautomatic कितना है?
या फिर Manual और Enforced कितना है?
और उसका प्रभाव आम-आदमी पर कैसे और कितना है?
कैसे और कहाँ-कहाँ वो आपको रोबोट्स की तरह प्रयोग कर रहा है?
अपने आसपास का कोई भी केस उठाओ और जानने की कोशिश करो, कहाँ-कहाँ और किस हद तक वो अपने आप हुआ है और कहाँ-कहाँ वो करवाया गया है, जो होना ही नहीं था? इन्हे parallel cases भी कहा जाता है और created भी। ज्यादातर, ऐसे cases में इंसान रोबोट्स की तरह प्रयोग हुए हैं। सबसे बड़ी बात, इन cases में Campus Crime Series से भी ज्यादा खामियाँ मिलेंगी। Parallel Cases का मतलब, सिर्फ अदालती मुकदमों से नहीं है, बल्कि आपकी ज़िंदगी के हर पहलु से है। जैसे
कौन पैदा होगा, कौन नहीं होगा ?
किस तारीख को होगा, कहाँ होगा ?
क्या-क्या बिमारियाँ होंगी। या बिना बिमारी के भी, किसी बिमारी के नाम पर अस्पताल पहुँचोगे? अगर हाँ तो उसके बाद आप किसी भगवान के नहीं, बल्कि वहाँ कदम-कदम पर अलग-अलग तरह के यमराजों के हवाले होंगे।
कौन कब तक कहाँ रहेगा? क्या करेगा? कब तक करेगा? कब कौन सा रोजगार बदलेगा?
कहाँ पढ़ेगा, कहाँ नहीं? किसके पास रहेगा, किसके नहीं?
कहाँ जमीं-जायदाद या घर खरीदेगा और कहाँ नहीं?
कब, कहाँ और कैसे मरेगा?
थोड़ा ज्यादा हो गया?
बिमार होने पे किस डॉक्टर या अस्पताल जाएगा और कौन सा इलाज़ होगा ?
कौन सी दवाई लेगा ? किस दवाई का असर कैसा रहेगा?
और भी बहुत कुछ
मरने के बाद, रीति रिवाज़ के नाम पे क्या-क्या होगा?
बहुत ज्यादा हो गया ना ?
अदालती मुकदमों में भी, कौन सा केस कैसे जाएगा और किस तरह का फैसला आएगा। किसको कब केस से मुक्ति मिलेगी और कौन कब तक अटका रहेगा। किसको किस केस में कब और कितने दिन की छुट्टी मिलेगी?
ये सब राजनीतिक जुआ तय करता है। यही नहीं आगे भी जाने
ऐसे ही पढ़ाई लिखाई का है -- स्कूल से लेकर विश्वविधालय तक। सिलेबस से लेकर परिक्षाओं तक।
इससे भी ज्यादा कुछ है, जो बहुत ही अजीबोगरीब है और उल्टा-पुल्टा है। खासकर, धर्म के नाम पे। आस्थाओं के नाम पे। और ना जाने कैसे-कैसे। मंदिर, मस्जिद से लेकर बाबाओँ और पाखंडों तक।
खेती से लेकर बाज़ार तक। आपके खाने-पीने से लेकर कपड़ों तक।
देश, राज्यों के बनने से लेकर टुकड़ों में टुटने-बिखरने या जुड़ने तक।
फिर अछूता क्या है? कुछ भी नहीं? जो भी आप देख सकते हैं, सुन सकते हैं या महसूस कर सकते हैं, वो सब इसका हिस्सा है?
इसीलिए मानव को रोबोट की तरह प्रयोग करना उतना मुश्किल नहीं है, शायद जितना लगता है।
मेरा काम सिर्फ मेरे अध्ययन और अवलोकन (Observations) को आपके सामने रखना है। कितना सही है और कितना गलत और कैसे? ये तय करना आपका काम है।
इसमें बहुत कुछ शयद मुझे भी नहीं मालूम। हो सकता है, इन्हे लिखते-लिखते ही कुछ समझ आ जाए। ऐसा कई बार होता है मेरे साथ। या शायद अलग-अलग विषयों के जानकार कुछ और बता सकें।
मगर संभव कैसे है ये सब? शायद ये सब जानना और भी जरूरी हो जाता है। नहीं ? आगे की पोस्ट्स में वो सब भी मिलेगा।
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