Search This Blog

About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, April 4, 2023

अखाड़ा (R-ing?)

 अखाड़ा!

 जब अखाड़े की बात दिमाग़ में आती है, तो कौन-सी तस्वीर उभरती है, दिमाग़ के सामने?

पहलवान, कुस्ती करते हुए?

अखाड़ा, जिसे अंग्रेजी में Ring कहते हैं। वही वाला ना?  

वैसे Ring के नाम पे कौन-सी तस्वीर उभरती है, दिमाग़ में? 

वही Ring, जो आप उँगलियों में पहनते हो?

कौन-सी उंगली में?

अच्छा, आप नहीं पहनते? मेरी तरह शायद ज्यादा गहनों के शौक़ीन नहीं हैं? या शायद गहने हैं ही नहीं?

चलो फिर भी, पता तो होगा, की कौन-सी ऊँगली में, कौन-सी अंगुठी पहनी जाती है?      

कौन सी मतलब? सिर्फ एक ही तरह की अंगुठी का पता है?

अरे, लोगों को, औरतोँ को भी, कभी देखा नहीं क्या, अलग-अलग तरह की अंगुठियां पहने?   

और बच्चों को? स्कुल जाने वालों को? 

स्कुल में ये सब अनुमति होती है क्या? हमारे वक्त तो नहीं होती थी। आजकल?

हमारे यहाँ तो (यूनिवर्सिटी) आजकल भी अच्छा नहीं माना जाता, खासकर प्रक्टिकल्स में। ऐसे विद्यार्थियों को गंभीर नहीं माना जाता। क्यों, के पीछे के, अपने तर्क-वितर्क हैं। 

आपको पता चले, ये सब बच्चों के पास आने लगा। कहाँ से, कैसे और क्यों जानना चाहेंगे क्या आप?

शायद किसी जगह आजकल इसका फैशन हो? नहीं ?

बच्चे, मैं आपको Copper-Ring उपहार में देती हूँ।  इसे पहली ऊँगली में डालोगे या दुसरी में? अच्छा ये दुसरी ऊँगली में शुभ रहेगी। 

मैं आपको Gold Ring देती हूँ। इसे पहली ऊँगली में पहनोगे या तीसरी उँगली में?

में आपको Diamond Ring देती हूँ।  इसे ?

आजकल चलन में या फैशन में है क्या ?

गहनों का, कपड़ों का, जूतों का फैशन या फिर किसी और वस्तु का, पता है कौन तय करता है ? राजनीतिक अखाड़े। या बॉलीवुड, हॉलीवुड? आपको लगता है, बॉलीवुड, हॉलीवुड? या शायद कम्पनियाँ जो वो सब बनाती हैं? 

आप सिर्फ़ और सिर्फ उसका अनुशरण करते हैं। वो भी, बैगर सोचे समझे? नहीं ?

अरे इसमें भी अब क्या सोचना? जो चल रहा है, वही तो सही लगता है। नहीं?

शुभ और अशुभ?

बाबा ने बताया या किसी ब्रामण ने बताया की ये शुभ होगा और ये अशुभ। आप उसका भी अनुशरण करने लगते हैं। अब उस बाबा या ब्रामण को कैसे पता की क्या शुभ होगा और क्या नहीं? ज्ञानी हैं न वो ? और आप मुर्ख ? आपमें भी तो दिमाग है ? फिर सोचना क्यों नहीं की इसमें मेरा भला या बुरा कैसे है ?

और अगर बिना सोचे समझे आप कर रहे हैं, तो रोबोट में और आप में फर्क क्या है ? 

ये सब Manifestation और Manipulation का काम करती हैं। जैसे किसी अंजान, अनभिज्ञ इन्सान के दिमाग की Programming करना। 

अपनी योजना को किसी के भेझे में डालना। वो Programming, सिर्फ शुभ कही गयी (जरूरी नहीं शुभ हो भी), वस्तु के पहनने या डालने या घर में किसी खास जगह रखने से नहीं होता। बल्कि, वो उनकी रची गयी योजना (Programming) की पहली सीढ़ी होता है। वो सीढ़ियाँ, Chemistry, Physiology, Psychology, Physics, Biology, और भी न जाने, कैसी-कैसी खिचड़ी पकने से बनती हैं। 

(आम आदमी को ये सब कैसे समझ आएगा? आएगा शायद कुछ हद तक उनके अपने आस पास के उदाहरण देकर? बच्चे, कुत्ते, बिल्ली, गायं, भैंस, भेड़, बकरी, खेती और भी कितना कुछ तो है न? मगर फिर भी शायद थोड़ा-सा मुश्किल तो है? हो सकता है, इन सब विषयों के जानकारों को भी न पता हो, जिन्होंने वो योजना तैयार ही न की हो। या तो ये सब रचने वाला बता सकता है या ऐसी रचनाओं को उखाड़-फेंकने की क्षमता वाला। विज्ञान को जो आमजन तक पहुंचाते हैं, अंधविश्वासों को, जिनमें अक्सर षड्यंत्र भी छिपे होते हैं, को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।)

बाकी सीढ़ी कहाँ हैं? आपको पता ही नहीं ! जिन्होंने रचा है, उन्हें पता है। वो आपके शुभचिंतक हैं या दुश्मन, आपको ये भी नहीं पता। ज़्यादातर शुभचिंतक आपके आसपास, आपके अपने बन्दे होते हैं। दूर से बैठकर, ये सब रचने वाले, ज़्यादातर सत्ता, राजनीतीक पार्टियाँ या बड़े-बड़े, औद्योगिक साये होते हैं। और ज्यादातर automation या semiautomation का प्रयोग करते हैं। ताकि उनका घड़ा (Programming), ज्यादा से ज़्यादा लोगों पर, और कम से कम संसाधन प्रयोग करके प्राप्त किया जा सके। ऐसे लोगों के लिए टोने-टोटके, ताबीज़-गहने, मंदिर-मस्जिद या इसी तरह की आस्थाएँ, अक़्सर, आम आदमी के मानसिक-दुहन (Psychological and Scientific, Manipulations and Manifestations) के लिए होती हैं 

कुछ चीज़ें लोग अपने कस्ट, दुख-निवारण के लिए भी, दुसरों के गले डालने की कोशिश में रहते हैं। वो सुना है न, ज़्यादातर लोग, अपने दुख से नहीं, दुसरे के सुख से दुखी हैं। जब तक वो सामने वाले को भी, अपने जैसा न बना लें, तब तक शायद उन्हें मज़ा ही नहीं आता। अब सब लोग तो एक जैसे नहीं हो सकते न?   

तो बेहतर रहता है, ऐसे किसी चक्कर में पड़ो ही ना। और अपने आसपास वालों को भी, खासकर बच्चों को, इन सबसे दूर रखो। 

कैसे ?आगे की कुछ पोस्ट्स में।           

No comments:

Post a Comment