Search This Blog

About Me

Happy go Lucky kinda stuff. Lilbit curious, lilbit adventurous, lilbit rebel, nature lover. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct. Sometimes feel like to read and travel. Profession revolves around academics, science communication, media culture and education technology. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Monday, December 11, 2023

कब्जे कैसे-कैसे?

राजनीतिक पार्टियाँ अगर रिश्ते जुडवाने, तुड़वाने, लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध दुरुपयोग करने में व्यस्त होंगी, तो क्या होगा उस समाज का?   

राजनीतिक पार्टियाँ, अगर निर्णय लेंगी की कौन कहाँ रह सकता है और कहाँ नहीं, मतलब सीधा-सीधा या गुप्त नियंत्रण लोगों के और जीवों के माइग्रेशन पर। तो क्या होगा उस समाज का? ठीक वैसे, जैसे एक पार्टी ने यूनिवर्सिटी छोड़ने को मजबूर किया। तो दूसरी पार्टी ने, गाँव में ताँडव रचा, ताकी वहाँ ना टिक सकूँ। ये ताँडव, यूनिवर्सिटी की कैंपस क्राइम सीरीज से कहीं ज्यादा बेहुदा और खतरनाक था। या शायद कहना चाहिए, की इस बेहुदा रुप की शुरुआत तो यूनिवर्सिटी के Organized Violence 2019 से ही हो चुकी थी। पार्टियों का और कुर्सियों का, एक दूसरे के खिलाफ वही ताँडव, बढ़ते-बढ़ते, कोरोना काल में बदला और आगे बढ़ा। जिसकी सबसे ज्यादा मार, बच्चे, बुजुर्ग और औरतें भुगतती हैं।   

ठीक वैसे, जैसे कितने ही लोग कोरोना काल में दुनियाँ भर में प्रभावित हुए। ठीक वैसे, जैसे कितने ही लोग दुनियाँ भर में, अपने-अपने घरों तक बंद रह गए। कितने ही राजनीतिक बीमारियों का शिकार हुए, महामारी के नाम पे। कितनों को ही OXY - GEN (या OX YG EN?) की कमी हो गई। शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे एक तरफ भाभी गई और दूसरी तरफ कोई काम वाली आ गई? या काम वाली के साथ-साथ, sex object भी? उसपे किन्हीं बड़े लोगों के लिए, उस घर पे सीधा-सीधा नियंत्रण। जब तक चाहेंगे रखेंगें। फिर उसी माध्यम से, जिस तरह का ताँडव रचना होगा, रच देंगे? या शायद slow-poisoning? ठीक वैसे, जैसे कुछ ऐसे और कुछ वैसे, जाने कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाईयाँ, आसपास की या दूर-दराज की कितनी ही ज़िंदगियों में चल रही हैं। वो सब धकेले हुए लोग हैं। इधर से उधर और उधर से इधर। एक तरफ काम की तलाश में आए हुए मजदूर, तो दूसरी तरफ ससुराल से या गुंडों की मारों से, अपने घरों की तरफ भागी हुई लड़कियाँ। और लोगबाग उनके पीछे के कारणों को ना समझ, एक-दूसरे के खिलाफ दुरुपयोग हो रहे हैं। जो पार्टियाँ, उन्हें यहाँ से वहाँ धकेल रही हैं, वो उन्हीं के जालों में उलझे हैं। उन्हीं का कहा हुआ कर रहे हैं। तो और ज्यादा उलझ रहे हैं।      

सरकारी और लोगों की प्राइवेट सम्पति भी, अगर गुप्त कोढों के अनुसार, राजनीतिक पार्टियाँ के अधीन होंगी या उनपे कब्जे के युद्ध होंगे, तो क्या होगा उस समाज का? प्रॉपर्टियों पे ये खास तरह के कब्जे समझ आए, जब गाँव में किसी जमीन पे भाई-भाभी के लिए स्कूल बनाने की बात चली। और इस या उस पार्टी ने रचा, की स्कूल नहीं बन सकता यहाँ। या इससे भी थोड़ा आगे चलके, जब किसी पार्टी ने उस जमीन को बिकवाने की ही कोशिश की। कैसी बेहुदा पार्टियाँ हैं ये? और कैसे बेहुदा लोग? 

औरतें या पुरुष भी अगर राजनीतिक पार्टियों के कोढों के अनुसार, उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी होंगे तो क्या होगा उस समाज का?

जहाँ बेहुदा किस्म के राजनीतिक युद्धों में, जुए वाली राजनीती, इंसानों को गोटियाँ की तरह चलेगी, वो भी उनकी मर्जी के विरुद्ध, विरोध के बावजूद, या गुप्त रूप से। जहाँ लोगों को पता ही ना हो, की आपको कहाँ-कहाँ गोटियों की तरह चलाया जा रहा है, तो क्या होगा उस समाज का? वही जो हो रहा है। 

No comments:

Post a Comment