उन्हें नफरत थी की उनके घर कोई काम वाली (चूड़ी) घुसे। बाकी चमार, धानक, नाई या कोई भी चलेगी। ऐसा इसी पीढ़ी में था। वो भी सिर्फ कुछ खास लोगों के साथ या इससे पहले वाली पीढ़ी में भी ऐसा कुछ था? इस खास नफरत की कुछ खास वजहें थी, शायद। इनके अनुसार इनके दोनों बेटों को ये चूड़ी प्रजाती खा गए। और अगली पीढ़ी में भी, बच्चों के केसों में भी ऐसा-सा ही कुछ पंगा था। नहीं तो, जैसे पहले हर जाट घर के खास अपने चूड़ों के घर होते थे, इनके भी थे। और वो काम करने भी आते थे। जाती से भी ज्यादा, सफेद रंग, सुन्दर नयन-नक्स की चाहत वाले ये लोग, जात-पात में ज्यादा नहीं, तो थोड़ा-सा जरूर विश्वास रखने वाले ये घर, क्या अचानक से रातों रात बदल गए थे? सोच में कोई घनघोर परिवर्तन हो गया था? या किसी खतरनाक साजिश का शिकार हो गए थे? कुछ ही महीने पहले, जब इनकी बेटी घर रहने आई और काम वाली की जरुरत महसूस हुई तो गाँव की एक चूड़ी से काम करवाने पे अच्छा खासा हंगामा हुआ था, इस घर में। कई दिनों तक माँ-बेटी के बीच संवाद ही खत्म हो गया था।
खास शब्द थे, "मेरे घर में तुने किसी चूड़ी को कैसे घुसा दिया। मेरा घर खाली कर दिया।" ये शब्द कुछ-कुछ उस समझ की देन थे, जिसमें कोई औरत (चूड़ी), ये सब कहने वाली के पति को खा गई थी। इनकी सोच और जानकारी के अनुसार।
अपने आसपास की सुन्दर चूड़ियों से भी नफरत और दूर-दराज से इनकी सुंदरता के बिलकुल विपरीत मायनों वाली औरत को, जैसे रातों-रात घर ले आए ये। ये? ये कौन? अहम प्रश्न, ये कौन? Cult Politics? बेटी को बहला-फुसला, बहन को दूर दराज कर, अँधेरे में रख। सिर्फ माँ-बेटा का किया धरा धमाल था ये? या? या कौन थे ये लोग, जो इस घर के साथ खेल चुके थे? किस तरह की राजनीतिक साजिश का शिकार? इनके खुबसुरती के मायनों के हिसाब-किताब में बेहद भद्दी औरत। कौन-सी जाती से थी, ये इतनी भद्दी औरत? उसपे डावां-डौल भी। ट्रक जैसे कोई। बेटे के कहीं आसपास नहीं। उसकी आंटी जैसे। उम्र में तो पता नहीं कितनी थी, मगर दिखने में उसकी आंटी जरूर लग रही थी। बहन को काफी कुछ खबर शादी से पहले ही हो गई थी। उसने माँ-बेटे को सावधान करने की भी कोशिश की। मगर साजिशों का उतावलापन कह रहा था, जल्दी-जल्दी, जितना जल्दी हो सके। नहीं तो कहीं कोई बाधा ना आ जाए। उसी जल्दबाज़ी के शिकार माँ-बेटा हो चुके थे और अभी भी उन्हें खबर तक नहीं थी की उनके साथ हुआ क्या है? ये एक सामान्तर सामाजिक घड़ाई का बढ़ा-चढ़ा रूप था। जैसे हर सामांतर घड़ाई में होता है। ये सामान्तर घड़ाईयाँ, ऐसे ही लोगों की ज़िंदगियाँ और घर बर्बाद करती हैं। जैसे इनके आसपास के तकरीबन सब घरों की कहानियाँ। कुछ ऐसी सामांतर घड़ाईयाँ और कुछ वैसी सामांतर घड़ाईयाँ। राजनीती के बेहुदा जालों के शिकार लोग।
कुछ प्रश्न अहम हो सकते हैं, ये सब जानने में। जैसे, ऐसी क्या परिस्तिथियाँ रही होंगी की अपनी पसंद के बिलकुल विपरीत, अपनी जाती से दूर, कोई अचानक किसी औरत को (अचानक शब्द अहम है यहाँ), अपने घर ले आए? वो भी बहन तक से छुपाकर? जबकी भाई की जब पहली शादी हुई, जो की लव मैरिज थी, तो बहन साथ थी। बहन को कोई खास फरक नहीं पड़ता, कौन, क्या और क्यों है, अगर दोनों एक दूसरे को पसंद करते हों। मगर, किसी भी तर्कसंगत इंसान को फर्क ही नहीं पड़ता, बल्की बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है, अगर कहीं किसी षड़यंत्र की बू आए। उसपे उसके संकेत कहीं से साफ़-साफ़ आ रहे हों। चलो उन संकेतों से दूर, थोड़ा आसपास के लोगों के व्यवहार, शब्दों और इरादों को जानने की कोशिश करते हैं। उनमें कुछ ऐसे खुरापाती तत्व भी हैं, जो इस घर में कुछ हद से ज्यादा ही घुसे हुए हैं। मगर उनके शब्दों और करामातों पे जाएं तो वो इस घर में किसी का भी हित नहीं चाहते। ऐसे भी होता है? शायद ऐसे-ऐसे केस तभी होते हैं।
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