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Monday, December 11, 2023

इंसानों द्वारा बनाई गई मशीनों पे खुरापाती तत्वों द्वारा तरह-तरह के कंट्रोल

जब भी थोड़ी-बहुत बाहर जाने की बात हो और कुछ भंडोले जैसे बड़बड़ाने लगें, मोदी इलेक्शन जल्दी करवाएगा या बीजेपी इलैक्शन जल्दी करवाएगी। सिर्फ बात हो या शायद सिर्फ कोई ऑनलाइन ट्रैवेल हो। क्यूँकि, मुझे घूमने का शौक है। मगर कोरोना के बाद वो ऑनलाइन तक ही रह गया है, बहुत से कारणों की वजह से। और आप सोचने लगें, सच में किसी के भारत से बाहर जाने का मतलब, भारत में इलेक्शन्स के जल्दी होने से हो सकता है क्या? कुछ मीडिया कितना फेंकम-फेंक हो सकता है? ठीक वैसे ही, जैसे अपने फेंकू जी? मुझे ना तो अपने फेंकू जी पसंद और ना ही टीचर्स का इलेक्शंस में खास ड्यूटी देना। खैर। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन कितनी विस्वास के लायक हैं और कितनी नहीं, ये तो शायद इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपर्ट्स बता पाएँ। परन्तु, इलेक्ट्रॉनिक्स पे विस्वास? किसी भी तरह का इलेक्ट्रॉनिक्स या किन्हीं और तरह की तरंगों के माध्यम, कितने विश्वास के लायक हैं या हो सकते हैं? जानते हैं, कुछ ऐसे छोटे-मोटे वाक्या, जो मैंने पीछे अनुभव किए।   

कार, संतरो, जो कुछ महीने पहले 14 को ब्रेक फेल (Gindhran, Madina-B) कर गई। अब इस 14 में क्या खास है, ये शायद सुप्रीम कोर्ट बेहतर बता सकता है। खासकर अपने चीफ जस्टिस? क्यूंकि मेरी अपनी कार i10 भी किसी 14 को, एक खास ड्रामे के साथ उठा ली गई थी। गाडी को ठीक-ठाक छोड़, मैं सोम के यहाँ समोसे लेने गई और कुछ ही मिंट बाद वापस आई तो कार ने स्टार्ट होने से ही मना कर दिया। जैसे वो चाबी ही उसकी ना हो। शायद चाबी के चिन्ह वाले (JJP) कुछ बता पाएँ? उसके बाद थोड़े और ड्रामे चले कई दिन। फिर केस और कार जब्त जैसे। बिल्कुल जैसे गुंडे करते हैं, वैसे। इस गुंडागर्दी से पहली बार, सोम के समोसे का मतलब समझ आया और साड़ी का भी। डिटेल में लिखना बनता है, इन कार हादसों पे भी और 14 से इनका क्या लेना-देना हो सकता है? अब आम आदमी, ऐसे-ऐसे कोड भला कैसे समझे? जहाँ तक संतरो का ब्रेक फेल होना था तो उसके बाद कोई रिस्क लेना, मतलब, जान से हाथ धोना भी हो सकता था। क्यूँकि, एक तो ये कार मेरी नहीं थी, उसपे मेरी अपनी इकलौती कार i10 के उठने के बाद, जब ये मुझे मिली, तो कुछ ही वक़्त बाद, पानीपत के पास अच्छा-खासा ड्रामा (एक्सीडेंट) दिखा चुकी थी। हालाँकि, अब ब्रेक फेल के केस में, शायद वो सर्विस माँग रही थी मगर जैसे और जिस जगह वो ब्रेक फेल हुए, उससे यही समझ आया, की ऐसी खटारा गाड़ी के बगैर भी गुजारा हो सकता है। उसके बाद मैंने किसी और की गाड़ी भी नहीं ली। यही सोचके की पता नहीं, कहाँ राम नाम सत्य कर दे। यहाँ पे सिर्फ ब्रेक फेल तो, सर्विस माँग रही थी का बहाना हो सकता था। इस ब्रेक फेल से पहले कई बार, ये कार अपने आप स्पीड बढ़ने का ड्रामा भी दिखा चुकी थी। ये सर्विस मॉंग रही थी, का इलेक्शंस से क्या कनेक्शन हो सकता है? कभी-कभी, यहाँ-वहाँ अजीबोगरीब पढ़ने को मिलता है। 

स्कूटी और पैट्रॉल पम्प bluetooth control?

संतरो को थोड़ा रैस्ट पे रखने के बाद, कुछ वक़्त, अपने आसपास ही किसी की स्कूटी से काम चला, गाँव में इधर-उधर आने-जाने तक। अब आप किसी बच्चे या अपने से जूनियर के साथ इधर-उधर (गाँव में ही) घुमेंगे, तो पेट्रोल डलवाना तो बनता है। 2-3 बार डलवाया और नंबर कुछ फिक्स से लगे, 220 या 200। शायद इतना ही आता हो उसमें? या टँकी इतनी ही खाली हो? इसलिए, किसी तरह का कोई शक नहीं था। मगर यहाँ-वहाँ कहीं पढ़ा, की पैट्रॉल पम्प BLUETOOTH नियंत्रित हुआ है। अब ये किस तरह का BLUETOOTH नियंत्रण था और पैट्रॉल पंप वालों को भी खबर थी या नहीं, पता नहीं। मगर मुझे वो सब पढ़कर कोई खास अजीब नहीं लगा। क्यूँकि, इससे पहले wifi या bluetooth कंट्रोल नहीं, बल्की Microwave स्पेशल हैक जैसा कुछ हुआ था। वैसे ही जैसे AC? या शायद उससे भी थोड़ा और sophisticated? नया माइक्रोवेव कोई खास तरह के कोड शो कर रहा था। जिसकी शिकायत मैंने उस कंपनी को भी की। उसका शिकायत का उत्तर भी, शायद कोडेड-सा ही कुछ था। हो सकता है भविष्य में डिटेल में ऐसी-सी ही, कुछ रोचक कहानियाँ पढ़ने को मिलें आपको। एक दिन ऐसे ही फिर से स्कूटी पे उसी लड़की के साथ गई, मगर अबकी बार पैसे मैंने नहीं दिए। और बिल था 350, शायद टँकी बिलकुल खाली थी और इतने में ही फुल होती हो। 

तो ये थी रोजमर्रा की छोटी-मोटी सी बातें। इंसानों द्वारा बनाई गई मशीनों पे और उनपे खुरापाती तत्वों द्वारा तरह-तरह के कंट्रोल के शक।   

हम जैसे भुगतभोगी, जो ये सब गड़बड़ घौटाले, तर्कसंगत जानने की कोशिश करते हैं, उन्हें थोड़ा-बहुत ज्ञान हो जाता है। क्यूँकि, अपने विषयों से दूर, हर विषय के एक्सपर्ट आप नहीं हो सकते। मगर, आम आदमी भी ये सब भुगतता है, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी तरह से, अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में। और रोचक तथ्य ये, की उसे इस सब की भनक तक नहीं होती। वैसे ही, जैसे राजनीतिक बीमारियों और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे हादसों की नहीं होती।  

अब आते हैं रोजमर्रा की छोटी-मोटी शिकायतों या आम-आदमी की भड़ास से परे, इलेक्शंस और EVM वगैरह पे। ये बुथ मैनेजमेंट और हाई टैक कंट्रोल क्या होता है? जब ज्यादातर टेक्नोलॉजी के जानकारों को पता है की कोई भी मशीन हैक करना या खुरापाती तत्वों द्वारा कंट्रोल करना कोई बड़ी बात नहीं है तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग क्यों? जानते हैं अगली पोस्ट में। 

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