शिव कौन है?
क्या जानते हैं आप, इस इंसान या भगवान (?) के बारे में?
भगवान शादी करते हैं?
भगवान के बच्चे भी होते हैं?
कितनी शादी करते हैं?
अब भगवान हैं, तो कितनी भी करें?
या भोले हैं, एक में ही गुजारा कर लेते हैं?
या परिस्तिथिवश दो, तीन, चार या ज्यादा भी कर सकते हैं?
परिस्तिथिवश? परिस्तिथियाँ, भगवानों के भी काबु से बाहर होती हैं? कैसे भगवान हैं ये? ये तो बड़े इंसान-से हैं। नहीं?
वैसे आपके भगवान पुरुष हैं या औरत? भगवान हैं तो भगवानी भी होंगी? मतलब, देव हैं तो देवियाँ भी होंगी? श्री देवी जैसी शायद? कुछ भी।
अगर पुरुष या औरत भगवान हो सकते हैं, तो हिज़ड़े भी भगवान हो सकते होंगे? है कोई? या उन्हें ऐसा कोई हक़ नहीं होता?
अरे भगवान को इस या उस लिंग की जरुरत ही कहाँ?
वो तो जैसे पौधों में Hermaphrodite होते हैं ना, मतलब, द्विलिंग, एक में ही दोनों औरत और पुरुष के लिंग, वो भी हो सकते हैं? नहीं? ना शादी करनी। ना किसी औरत की या पुरुष की जरुरत। ना औरत-पुरुष वाले जलन वाले झगड़े। शादी वाले सास-बहु सीरियल। और ना ही पति या पत्नी वाली तू-तू, मैं-मैं। सारे वाद-विवाद ही खत्म। कुछ-कुछ करण जौहर जैसे? फिर से कुछ भी? वैसे श्री देवी और करण जौहर दोनों ही मस्त हैं या रहे हैं अपनी-अपनी ज़िंदगी में। मेरा इरादा, यहाँ किसी खास इंसान या एक्टर या एक्ट्रेस पे कोई कटाक्ष या किसी तरह की खामखाँ टिका-टिप्पणी नहीं हैं। सिर्फ विषय पे कटाक्ष कह सकते हैं -- भगवानों या भगवानियों के भी बाजार?
कैसे-कैसे विवाद होते हैं ना ये? पुरे समाज को उलझाए रखते हैं, अपने में। और तो जैसे कोई काम ही नहीं होते दुनियाँ में? कहीं पंचायतें लगी पड़ी हैं। हमारे जैसे so-called पढ़े-लिखे, जिन पंचायतों को कंगारू कोर्ट्स भी कहते हैं। और फिर अच्छी खासी सुनते भी हैं, अपने इधर-उधर के बुजर्गों से। इन ज्यादा पढ़े-लिखों के ज्यादा दिमाग खराब हो जाते हैं। समाज-वमाज में तो रहना नहीं होता। पड़े रहते हैं, यूनिवर्सिटी या कैंट्स में ज़िंदगी भर। उनसे बाहर भी दुनियाँ होती है। कोई समझ ही नहीं होती इनको, दुनियाँदारी की। थोड़ा बहुत बोल दो, तो देश छोड़ देंगे की धमकियाँ। मतलब?
मतलब, ऐसा जहाँ या दुनियाँ भी है, या देश हैं, जहाँ शिव के नाम पे कुछ भी नहीं चलता? या शायद शिव को मानते ही नहीं? या हो सकता है, वहाँ के शिव अलग तरह के हों? मतलब दुनियाँ तो बड़ी है, हमारे बुजर्गों की दुनियाँ से? उन्हें उस दुनियाँ की खबर कम है और इन so-called ज्यादा पढ़े-लिखों को इनकी (अपने ही बुजर्गों की), इस दुनियाँ की? यही गड़बड़ है? एक ही घर के या आसपास के माहौल में, इतनी ज्यादा असमानता? किसी भी तरह की जितनी ज्यादा असमानता, उतने ज्यादा विवाद। वो भी ज्यादातर बेवजह के? इसमें कितना सच है और कितना झूठ, ये आप सोचें।
चलो, ये तो समझ आया की समस्याएँ, सिर्फ इंसान को नहीं होती। इंसानों के भगवानों और भगवानियों को भी होती हैं। उनकी भी परिस्तिथियाँ, खुशी और गम वाली हो सकती हैं? वैसे ही जैसे, कभी खुशी, कभी गम, वाले इंसानों को होती हैं। परिस्तिथियाँ, उनकी भी औकात से बाहर हो सकती हैं?
अब शिव को ही लो। सती मर गई। शिव को मालूम ही नहीं की उसे ज़िंदा कैसे करे? मचा दिया ताँडव? चल पड़ा उठा के सती के मर्त शरीर को? और बिखरा दिए उसके टुकड़े, यहाँ-वहाँ और कहाँ-कहाँ? जहाँ-जहाँ वो टुकड़े गिरे, वहीँ घड़ दिए मंदिर? New age, Nuclear Wars and Temples? और मंदिरों के नाम भी हर जगह अलग-अलग? नाम भी कैसे-कैसे? वो भी बदलते रहते हैं शायद, समय और राजनीती के हिसाब-किताब से? अब ये कहानियाँ घड़ने वाले या किताबें लिखने वाले लोग महान हैं? शातिर हैं? ज्यादा या कम पढ़े-लिखे हैं? या आम आदमी हैं? ये आप जानने की कोशिश करें और पता चले तो मुझे भी बताएं। किस किताब में क्या लिखा है? या किस मंदिर की कैसी या क्या श्रद्धा या रीती-रिवाज़ हैं? और उनका ज्ञान-विज्ञान, उस वक़्त की या राजनीती की जरुरतों से क्या लेना-देना हो सकता है या है? क्यूँकि, मैं खुद भी जानने की कोशिश में हूँ, भगवानों के नाम पे बाजार को या राजनीती को।
भोला खड़ा बाजार में
देख रहा रंग कैसे-कैसे?
रण (युद्ध) कैसे-कैसे?
या रच रहा, रण कैसे-कैसे?
एक तरफ, आज भी
सर्प-मणि को मानने वाले
Kinda Money-Honey?
या? सच के भोले?
(अनभिग-अज्ञान, आम-आदमी?)
तो दूसरी तरफ,
सर्प-मणि के पीछे
कैसी-कैसी तरंगों के खेलों वाले, शातीर दिमाग?
रेडियो तरंगे, टीवी, सॅटॅलाइट, wi-fi, bluetooth, internet, infrared, fibre-optics etc. और भी पता नहीं कैसी-कैसी टेक्नोलॉजी का बाना पहने चालें, घातें और छल-कपट।
क्या है ये?
शिव? या शिव-बाजार?
या इंसानी-सी जरुरतें और उन जरुरतों और वक़्त के हिसाब से हिसाब-किताब?
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