About Me

Just another human being. Trying to understand molecules of life. Lilbit curious, lilbit adventurous, lilbit rebel, nature lover. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct. Sometimes feel like to read and travel. Profession revolves around academics, science communication, media culture and education technology. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, March 12, 2023

Semiautomation and Highly Enforced!

Semiautomation and "Highly Enforced, either by hook or crook" -- parallel cases creations in society.

गावँ में अपनी एक छोटी-सी, पढ़ने-लिखने की जगह बनाने की वजह, किन्हीं कारणोंवस या जिज्ञासावस, लगता है, ग़लत निर्णय नहीं था। अब उसमें परिस्थितिवस, कुछ और भी आ जुड़ा है। गाँव का रस्ता मेरे लिए, बहुत से प्रश्नों के उत्तर जानने की जिज्ञास्यावश भी था और एक तरह की मजबुरी भी। मजबुरी, जहाँ आप सुरक्षित महसूस कर सकें, अपनों के बीच महसूस कर सकें -- अजीबोग़रीब फाइल्स के इकट्ठा करने के बावज़ूद। इस गुजरे वक़्त में तक़रीबन फाइल्स को मैं निपटा चुकी हूँ। इसलिए मुझे अब उनकी सुरक्षा कैसे हो, वो ख़तरा नहीं है। 

कहते हैं, आपकी खुशियाँ या आपकी समस्याएँ, ज़्यादातर जहाँ आप रहते हैं, वहाँ की देन होती है। अगर आपको लगता है, की ज़िन्दगी में कुछ सही नहीं जा रहा, तो अपनी जगह बदल लीजिए। शायद कुछ सही हो जाए। मगर, यहाँ वो जगह बदलने का मतलब, कुछ किलोमीटर इधर या उधर से नहीं है। क्यूँकि राजनीती का प्रभाव ज्यादा कोई खास नहीं बदलाता। उल्टा, ज्यादातर ज़िंदगी एक वातारण में रहने के आदि होने के बाद, उससे बाहर सामजस्य बनाने में, शायद थोड़ा वक़्त भी लगता है। हाँ! उटपटाँग फाइल्स से मुक्ति मिल गयी। काफी हद तक cases से भी, शायद। लिखाई-पढ़ाई का अगला जो क़दम है, उसका रास्ता भी यहीं से गुजरता है। दूर बैठकर वो सब जानना-समझना मुमकिन ही नहीं था। 

इस थोड़े से वक़्त में कई उतार-चढ़ाव देखे।  कुछ भले के लिए, तो कुछ, ज़िंदगी को, एक घर को, जैसे पटरी से ही उतार गए। हर इंसान का अपना एक महत्व होता है। किसी की ज़िंदगी में थोड़ा कम, तो किसी की ज़िंदगी में ज़्यादा। मौतें, पहले भी कई देखी। मगर ऐसे माहौल में, मैं ज्यादा कभी रुकी नहीं। कोशिश रहती थी, जल्दी से जल्दी ऐसे माहौल से निकल लेना। दिमाग को ठिकाने रखने के लिए। जितना जल्दी हो सके, वापस ऑफिस ज्वाइन कर लेना।  जितना हो सके, खुद को वयस्त रखना। मगर, अबकी बार जिम्मेदारी अलग तरह की थी। इस वक़्त के दौरान जो देखा और महसूस किया, यूँ लगता है, कई सारी case-studies एक साथ लिखी जा सकती हैं --समाज के तानेबाने की घड़ाई की। राजनीती के रंगों की बुनाई की। जिसे जानकार लोगों ने automation बोला।  मगर मेरे अनुभवों ने, semiautomation।  

उस semiautomation में छिपा हुआ अब, बहुत कुछ नहीं है।  बल्कि, कई जगह तो, जद्दोजहद के बाद, बड़ी मुश्किल से बचाया हुआ है। कितना बचेगा, कितना और बिखरेगा, ये तो वक़्त के गर्भ में है। मगर, राजनीती का जो निर्दयी और भद्धा पक्ष, इस दौरान उजाग़र हुआ है, उसे आमजन के लिए जानना बहुत जरूरी है। ये भी जानना जरूरी है की पढ़ा-लिखा मगर शातिर-वर्ग, उसमें कौन सी और कैसी भूमिका निभा रहा है? किसके लिए काम कर रहा है? समाज के लिए? या राजनीतिक पार्टियों के लिए? 

No comments:

Post a Comment