Manifestations and Manipulations हिंदी में कहें तो शायद, "शाम, दाम, दंड, भेद", कुछ-कुछ ऐसा ही है।
क्या कोई किसी को control कर सकता है?
ऐसा, पहले से ही हो रहा है। कर सकता है जैसा, प्रश्न ही नहीं है। हाँ। फर्क, इतना है की किसी को कम तो किसी को ज्यादा। प्रश्न है, तो ये की किस तरह के इंसान, जल्दी काबू में किये जा सकते हैं? और, किस तरह के इंसान, टेढ़ी-खीर साबित हो सकते हैं?
कमजोर आदमी, किसी भी तरह से हो, जल्दी क़ाबु में आएगा। वो कमजोरी भावनात्मक हो सकती है, पैसे की हो सकती है और गुंडागर्दी के माहौल में muscular भी। खासकर जब न्यायतंत्र ख़िसका हुआ हो। इनके परे भी, बहुत तरह की और कमजोरियाँ हो सकती हैं। जो आपको आगे आने वाले case studies से पता चलेंगी।
दूर बैठा, आपकी मानसिक या भौतिक स्थिति जानकार, उनमें आपकी जानकारी के बैगर, बदलाव ला सकता है ?
अगर हाँ, तो किस हद तक? और कैसे?
अगर, आपको मौसम की जानकारी हो, तो क्या-क्या वो कर सकते हैं, जो बिना जानकारी नहीं कर सकते? मौसम विभाग, जो सुचनाएं देता है, वो कैसे प्राप्त करता है? और आप तक कैसे पहुँचाता है?
कब, कहाँ और कितनी बारिश होगी? कहाँ आंधी या तूफ़ान आएगा? कहाँ, कितनी धूंध रहेगी? कितना दिखाई देगा? वातावरण में, कितना जलवाष्प है? सुबह, श्याम या रात का तापमान कितना रहेगा?
इनसे भी परे क्या भूकम्प, आँधी, तूफान या बारिश जैसी प्राकृतिक परिस्तिथियाँ घडी भी जा सकती हैं?
Google Map, Google Earth और ऐसे कितने ही Apps देशों, शहरों, गलियों, खास-खास इमारतों, कहीं-कहीं तो घरों और उनके 3D तक की जानकारी कैसे देती हैं? उन्हें कैसे पता चलता है, कहाँ पानी है, जलाशय हैं? मतलब तालाब, झील, सागर, नदी, झरने आदि। और कहाँ-कहाँ रिहायशील इलाके, मैदान, पहाड़, जंगल या रेगिस्तान। कहाँ छोटी सड़कें, राज्यस्तरीय सड़के, राजमार्ग या अंतर्देशीय? किस और कितने इलाके में कौन-सी फसल उगती है? ऐसी ही और भी ढेर सारी जानकारियाँ, दुनियाँ के इस कोने में बैठा इंसान, दुनिया के दूसरे कोने में कैसे जान सकता है या पहुँचा सकता है?
शायद आप में से बहुत-से, ये सब पहले-से जानते हैं। इसमें नया क्या है?
क्या जलाशयों को भरा या खाली किया जा सकता है? रेगिस्तान को हरा-भरा और हरे-भरे को रेगिस्तान बनाया जा सकता है? मैदान को पहाड़ और पहाड़ को मैदान बनाया जा सकता है? जो फसलें किसी इलाके में उगती हैं, उन्हें खत्म कर, नयी उगाई जा सकती हैं और पुरानी खत्म की जा सकती हैं? धरती का पानी का स्तर कम या ज़्यादा किया जा सकता है? धरती के खारे पानी को मीठे में और मीठे को कड़वे में बदला जा सकता है? अगर हाँ, तो किस हद तक?
अगर आप इन सबके उत्तर जानते हैं तो आपके घरों में या आसपास में जो हो रहा है, उसे समझना मुश्किल नहीं होगा।
क्या आम आदमी को रोबोट्स की तरह रिमोट कंट्रोल किया जा सकता है?
ये भी पहले से ही हो रहा है। फ़र्क, सिर्फ़ इतना है, किस हद तक? और कैसे? जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी (technology) बढ़ रही है, उसमें नए-नए अविष्कार हो रहे हैं, और उनका विस्तार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आमजन को नियंत्रण करना आसान हो रहा है।
अगर ऐसा समाज में हो रहा है, तो कौन हैं वो, जो ये सब कर रहे हैं?
और जिनके साथ हो रहा है, उन्हें इसकी कितनी जानकारी है?
क्या-क्या तरीके हैं, ये सब करने के? और कैसे जान सकते हैं, की आप कहाँ-कहाँ और कितना रिमोट कंट्रोल हो रहे हैं?
सँचार माध्यमों की भुमिका ऐसे में बहुत अहम् है। मगर क्या हो, अगर सन्चार माध्यम भी, आम आदमी के साथ न हों?
राजनीतिक पार्टियों के, आपसी लड़ाई के माध्यम-मात्र हों? कोरोना जैसी, युधि-जंगे, आदमख़ोर की तरह, आम-इंसान को खा जाती हैं। और ज़्यादातर तबके को पता ही नहीं चलता, की हो क्या रहा है? इससे बड़ा विश्वस्तर पर, आमजन को रिमोट कंट्रोल का उदाहरण, भला और क्या हो सकता है?
कोरोना को अगर आँखबंद नज़र अंदाज़ भी कर दें, तो भी, आम आदमी की ज़िंदगी इस तरह के नियंत्रण के माहौल में जो हिचकोले खाती है, उसका अंदाज़ा तक आम-आदमी को नहीं है। उसे लग रहा है, वो सब खुद कर रहा है। मगर हक़ीक़त, इसके काफ़ी हद तक विपरीत है।
कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे एक पार्टी इधर खींचे, दूसरी उधर, तो इधर-उधर के जाली ताने-बाने में फंसे लोगों का क्या होगा? इधर या उधर के जालों से परे, वो अपनी ज़िंदगी, अपने हिसाब से कब जियेंगे?
ये जाली ताने-बाने ही रिमोट कंट्रोल हैं।
किस तरह के इंसान, जल्दी काबू में किये जा सकते हैं?
किस तरह के इंसान, टेढ़ी-खीर साबित हो सकते हैं?
इसके पीछे विज्ञान है या जादू?
कैसे निपटा जा सकता है, ऐसे दुष्प्रभावों से, और ऐसा करने वाले लोगों से?
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