थोड़ी देर का गुस्सा
लील देता है, कितनी ही अच्छाईयों को
तार-तार कर देता है, कितने ही रिश्तों को
कितने ही सीधे-साधे से रस्तों को
न्यौता देता है, कितनी ही बीमारियों को
बना देता है अमीर, कितने ही अस्पतालों को
और लूट लेता है, आम आदमी का बचा-खुचा भी!
गरीबों के मोहल्लों में तो खासकर, रोज ही मिलता है ये
अलग-अलग खुराक में
फूटता-सा निकलता है, फटता-सा निकालता है
अजीबोगरीब शोर के रूप में
कभी इधर से, तो कभी उधर से!
दुबके से रहते हैं, ज़्यादातर बच्चे और औरतें
चिड़चिड़े से रहते हैं, सब ऐसे माहौल में
अच्छे भले शांत माहौल को, भंग कर निकलता है
भला क्या फलता-फूलता होगा, ऐसे माहौल में?
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