Machines, Robots, Humanoids
Programming and Processing
इन्सान और मशीन के पुर्जों से बनी मशीन को इंसान रुपी रोबोट (humanoids) भी कहते हैं। इस तरह के रोबोट्स में दिमाग़ के साथ-साथ, नसों और अलग-अलग तरह की कोशिकाओं के प्रयोग होते हैं। जिनसे उनकी जानने, सोचने, समझने, महसूस करने की क़ाबिलियत बढ़ाई जा सके।
ये सब कैसे संभव है? इंसान रुपी मशीन को जानकार, समझकर। जितना ज़्यादा वो समझ विकसित होगी, उतनी ही ज़्यादा, ऐसी मशीने बनाने की काबलियत। इंसान ने ज़्यादातर मशीने, प्रकृति से सीख कर ही बनायीं हैं। जैसे, पक्षी कैसे उड़ते हैं? हम क्यों नहीं उड़ सकते हैं? मछलियाँ कैसे तैरती हैं? हम या हमारी मशीने क्यों नहीं तैर सकती? वैसे ही, इंसान कैसे सोच सकता है? महसूस करता है? खतरे में अपना बचाव करता है? पढ़ सकता है? लिख सकता है? जोड़, घटा सकता है? बोल सकता है। विश्लेषण कर सकता है। तो मशीने क्यों नहीं कर सकती?
जीव-विज्ञान के अनुसार, इंसान एक तरह की मशीन ही है। किसी भी मशीन की तरह, उसके रखरखाव की जरूरत होती है। तेल-पानी (खाना-पीना) होता है। किसी मशीन की उम्र उतनी ही बढ़ती जाती है, जितना उसका रख रखाव बढ़ता जाता है। जैसे किसी भी कीमती वस्तु के रख रखाव और संभाल की जरुरत है, साफ़ करने की ज़रूरत होती है, टूटे-फूटे को ठीक करने की ज़रूरत पड़ती है, वैसे ही किसी भी मशीन को नया-सा दिखने के लिए। जैसे एक इंसान बीमार है, तो उसका सही इलाज कराने वाला ज़्यादा चलेगा या ईलाज ना करवाने वाला? या ग़लत ईलाज करवाने वाला? यहाँ, शायद फ़र्क ये भी हो सकता है, की बहुतों को गलत या सही की जानकारी ही न हो। तो कोई आपको चपत भी लगा सकता है। इंसान के लिए इसे जानना, मशीनो से ज़्यादा अहम् है। क्यूँकि, हम उस दुनिया में हैं, जहाँ इंसान रुपी रोबोट्स ही नहीं, बल्कि इंसानो का ही प्रयोग रोबोट्स की तरह हो रहा है और अंजान इंसानों को इसकी ख़बर तक नहीं। कैसे? ये सब आप आने वाली कुछ पोस्ट्स में पढ़ेंगे।
ज्यातार मशीनो और इंसान में एक फर्क होता है। दिमाग का। इसी दिमाग की ऊपज, ये मशीने और सुख-साधन के जुगाड़ हैं। कुछ इंसान द्वारा बनाई मशीनो में भी थोड़ा बहुत दिमाग़ होता है। जैसे कंप्यूटर। जैसे रोबोट्स, स्वचालित मशीने (robots) । ये स्वचालित मशीने, आज की प्रयोगशाला में तेजी से बढ़ते अविष्कारों का विषय हैं । रोबोट्स को ज़्यादा से ज़्यादा सक्षम बनाने के तरीके हैं। उनमें जितना ज़्यादा दिमाग़ और अलग-अलग तरह का मानवीय-कोशिकीय प्रवेश बढ़ता जाएगा, उतना ही उनके इंसान की तरह काम करने के तरीक़े भी।
जो काम कोई भी जीव कर सकता है, वो मशीने क्यों नहीं कर सकती? सोचो, मशीने अगर वो सब करने लगी, तो ये जीव या इंसान क्या करेंगे? एक बड़ा मानव आबादी का हिस्सा मानता है, की हम सबको किसी भगवान ने पैदा किया है। सोचो, अगर इंसान भगवान वाले काम करने लगा, तो इंसान और भगवान में फ़र्क क्या रहेगा? सोचिये, भगवान को किसने बनाया है? शायद किसी इंसान ने ही? अगर हम बच्चे को भगवान के बारे में बताएं ही ना या बचपन से ही भगवान या भगवानों पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर दें, तो क्या होगा? बच्चा क्या सीखेगा? यही की इंसान ही भगवान है? या भगवान जैसी शक्ति पे संदेह है? या भगवान होता ही नहीं? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे बच्चे को आप पैदा कहीं भी करें, मगर वो क्या बनेगा, और क्या सीखेगा, ये उसकी परवरिश करने वालों और उसके आसपास के माहौल पे निर्भर करता है। जैसे किसी भारत में पैदा हुए बच्चे को, अमरीका या इंग्लैंड में कोई गोद ले ले? तो वो कौन सी भाषा, बोलचाल या रहन सहन सीखेगा? वैसे ही, किसी अमेरिका या युरोप में पैदा हुए बच्चे को आप भारत के किसी भारतीय तोर-तरीकों वाले घर में पालें तो? शायद वही जो उसे सिखाया जाएगा। इसे परवरिश का असर (Environmental Conditioning) भी कहा जाता है। मतलब, हमारी जुबाँ, हमारे रहने-सहने के तरीके, सिर्फ़ हमारे बारे में नहीं बताते। वो हम कैसे माहौल में रह रहे हैं, उसके बारे में शायद कहीं ज़्यादा बताते हैं।
आप कितनी स्वचालित मशीने प्रयोग करते हैं? या कितनी ऐसी मशीनो के बारे में जानते हैं?
शायद सेमि-आटोमेटिक या आटोमेटिक वाशिंग, वैक्यूम क्लीनर, Microwave, AC, Green House, Drones, व्हीकल्स आदि? या तो इनमें से कोई न कोई प्रयोग कर रहे होंगे या सुना होगा। कैसे काम करती हैं ये मशीने? इनकी काम को करने की योज़ना (Programming) या काम को करने का तरीक़ा या विधि (Processing) कैसे होती है? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे आपके दिमाग़ संचालित शरीर (मशीन) की।
अगर आपको कपड़े धोने हैं, तो कैसे धुलेंगे? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या बताया जायेगा। फिर दिमाग़ बताएगा, आगे क्या-क्या करना है या चाहिए। वो सब मिल गया और आपने (मस्तिक संचालित, शरीर ने) कर दिया तो हो गया।
अगर आपको सफ़ाई करनी है तो कैसे होगी? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या उसे बताया जायेगा। फिर उस काम को करने के लिए, जो-जो चाहिए, वो लेंगे और सफाई करेंगे।
बस इतनी सी बात, इसमें क्या खास है? तो यही काम आपकी बजाये किसी मशीन को देना है। कैसे बनी होगी वो मशीन? इंसान के शरीर की तरह एक बॉडी चाहिए, एक दिमाग, काम को करने की योज़ना (Programming) और काम को करने का तरीक़ा या प्रकिर्या, काम करने की विधि (Processing).
आपके यहाँ गर्मी बहुत है। तापमान 40-45 पहुँचा हुआ है। क्या करेंगे? AC प्रयोग करेंगे, जो अपने आप, आपके कमरे या घर को वातानुकूलित कर सके। कैसे करता है, वो ये सब?
Green House में ज़्यादा गर्मी या सर्दी के मौसम में भी अलग अलग मौसम की फसलें उगाई जा सकती हैं, ऐसे ही वातानुकूलित जग़ह बनाकर। आपको पानी देने की जरूरत भी नहीं। वो भी अपने आप हो जाएगा। ये भी एक तरह की programming या processing ही है।
ड्रोन्स (Drones), आदमी रहित कार या विमान, ही नहीं, शायद और भी बहुत सारी मशीने, आप अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते होंगे या उनसे रूबरू होते होंगे। वो खेत की मशीने हो सकती हैं, अस्पताल की या शायद आपके ऑफिस की।
ये तो हुआ, आदमी के काम आसान करने वाली मशीने बनाना।
क्या हो, अगर आदमी को रोबोट्स की तरह प्रयोग किया जाए या किया जा रहा हो?
सामाजिक घड़ाई (Social Engineering),
आपके अपने आसपास से ही, आने वाली, आगे की कुछ पोस्ट्स में। कोशिश रहेगी, किसी एक के केस या कुछ के cases को सीधे-सीधे न लिख कर, सिर्फ़ उन पहलुओं के बारे में विचार हो। यहाँ पे मक़सद सिर्फ़ आपको एक ऐसे सिस्टम की जानकारी देना है, जो आपकी जानकारी के बैगर, आपको खुद अपने ख़िलाफ़ और आपके अपनों के ख़िलाफ़ प्रयोग कर रहा है। और किसी भी तरह से, आम आदमी के हक़ में नहीं है। उस सबकी जानकारी, काफी हद तक, उसके दुष्प्रभावों को रोक सकता है।
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