In society, such cases creations and enforcements are even more visible and dangerous. Ditto, Campus Crime Series and loopholes.
"Whatever is happening in the office, is happening in the campus house and surrounding. Also, happening in the home (village) and surrounding, also happening in the relatives, friends and surrounding, also happening in the politics of this party or that party or government" -- 2017 या 2018 में, पहली बार नोटिस किया। तभी से ये केस-स्टडीज, किसी न किसी form में जारी हैं।
How is that possible?
कैसे सम्भव है की जो आफिस में चल रहा हो, वैसा ही कुछ कैंपस घर और उसके आसपास? जो वहाँ हो रहा हो, वैसा ही कुछ गांव वाले घर और आसपड़ोस में? वैसा ही कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों के घरों और उनके आसपड़ोस में? क्या ऐसा कुछ अपने आप सम्भव है?
आदमी अलग, जगह अलग, विचार अलग, ज़िंदगियाँ अलग, कई बार तो रहन-सहन इतना अलग, जैसे ज़मीन और आसमान। मगर प्रतीत ऐसा हो, जैसे एक जैसा-सा ही हो रहा हो। वो भी अपने आप?
अपने आप जैसा कुछ नहीं है। हर जगह, जबरदस्ती, कुछ-कुछ वैसा ही करने की कोशिशें हो रही हैं। जितना हो जाए, उतना बढ़िया। बाकी बातों से लपेट दो। कौन हैं ये लोग, जिनकी इतनी पहुँच है, की वो यहाँ भी हैं, और वहाँ भी? वहाँ भी हैं, और वहाँ भी ?
राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी पैठ, समाज के हर हिस्से पे है। Universities, Schools से लेकर, मंदिर-मस्जिद तक। किसान से लेकर बाज़ार, व्यवसायों तक। अस्पताल से लेकर, फौज तक। दुनिया के इस कोने से लेकर, उस कोने तक।
जाने, कौन हैं ये लोग, जो ऐसे-ऐसे parallel cases की घड़ाई कर, दुनिया भर की ज़िन्दिगियाँ बर्बाद करते हैं? दिमाग़ तो दिमाग़ वाले लगाते हैं, मगर वो ये सब करवाते हम सबसे ही हैं। हमारे अपने खिलाफ़, हमारे अपनों के खिलाफ़। इस खेल में सबसे खतरनाक वो लोग हैं, जो आपको दिन-रात 24 घंटे सुन सकते हैं, देख सकते हैं। उससे पता चलता है की आपकी या आपके परिवार की या आसपास की कमजोरियाँ कहाँ-कहाँ हैं, ताकि उनको बढ़ा-चढ़ा कर खुद आपके खिलाफ या आपके अपनों के खिलाफ प्रयोग किया जा सके। आपस में भिड़ाया जा सके। अलग-थलग किया जा सके। मन में एक दुसरे के खिलाफ नफ़रत भरी जा सके। 24 घंटे, सुनने-देखने की क्षमता रखने वाले सिर्फ आपकी कमजोरियाँ ही नहीं जानते, आपकी ताक़त भी जानते हैं। उसे भी धीरे-धीरे खत्म करने की कोशिशें होती हैं। ये हो गया तो समझो उनका खेल पुरा हुआ।
मेरे आसपास, इस सबको मैं, पिछले कई सालों से प्रतिदिन नोटिस कर रही हूँ। इस राजनीतिक तानेबाने की बेहुदगी की हदें, अक्सर मौतों पे ज़्यादा साफ़ साफ़ और अपने क्रूर रूप में दिखती हैं।
अभी दो दिन पहले की बात है, बच्चा आपको बोलता है, मेरी अलमारी की सफाई करवाओ। नयी क्लास की किताबें आएँगी और कुछ जगह भी खाली करनी है। आप लग जाते हैं साथ में। इस दौरान कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिससे लगता है, ये सब बच्चे के पास कहाँ से आ रहा है? और आप बोलते हैं, ये सब आपके लिए नहीं है, केवल वही रखो, जो आपके लिए अच्छा हो। वो मान जाती है।
मगर, उस सबके काफी देर बाद, वो कुछ लेकर आती है, और पूछती है, ये कैसा है?
मैंने कहा, ये अच्छा नहीं है। बहुत ही अजीब-सा है। तुमने बनाया?
उसने कहा, नहीं, मम्मी के किसी student ने।
तभी। क्यूँकि ये रंग तो आपके किये हुए लग ही नहीं रहे।
अच्छा! 1st या 2nd क्लास में बच्चा क्या बनाएगा?
पता नहीं क्यों, पर ये ड्राइंग मुझे बड़ी अटपटी लग रही थी। फिर मैंने कहा, लेकिन ये रंग थोड़े ज़्यादा dark हैं शायद। ये बदले जा सकते हैं, और भी कुछ अच्छा add किया जा सकता है।
उसने मेरी तरफ़ देखा और फिर बोली, पता है ये क्या है? उधर देखो -- एक पेड़ की तरफ़ इशारा किया और बोली, तूफ़ान।
इससे पहले की मैं कुछ आगे बोलती, उसने कहा चलो छोड़ो, drawing करते हैं, दिवार पे। उधर बहार वाले कमरे की दीवारों पे। ये कमरा, उसका खेलने का कमरा भी है।
मगर, वो कमरे से एक कुर्सी निकाल के लायी और बाहर वाले बाथरूम की दिवार पे कुछ बनाना शुरू कर दिया। ज़्यादा देर नहीं लगी समझने में, ये सब कहाँ से आया होगा?
ये कमरा और बाथरूम , 16. 4 . 2 0 1 0 तक दादा जी का था। जैसे दादा जी के आसपास, चीज़ों की घड़ाई और कहानियाँ गुँथी गयी, वैसे ही वक़्त के साथ-साथ, इस कमरे और बाथरूम का भी रंग, रूप, स्वरुप और इसे प्रयोग करने वाले या इससे बेदखल होने वाले।
ऐसा ही हाल घरों का या किसी भी ऑफिस का है। राजनीतिक पार्टियां जो रचती हैं, वो सिर्फ एक जगह नहीं होता, बल्कि जहाँ-जहाँ उनकी पार बसाती है, वहाँ-वहाँ होता जाता है। ये दख़ल, जितना ज़्यादा होता है, वो case उतना ही, वैसा-वैसा सा ही दिखने लगता है। वही parallel cases हैं।
जहाँ-जहाँ पता चले, की यहाँ कुछ गलत हुआ है, और ऐसा ही कुछ कहीं और घड़ने की कोशिश हो रहीं हैं, तो उसे रोकना आसान हो जाता है। इसीलिए इन्हें घड़ने वाले ज़्यादातर, इनके दुष्प्रभावों से बच निकलते हैं, मगर आम-आदमी मारा जाता है।
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