Search This Blog

About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, September 12, 2023

कोई सिरा कहीं से पकड़ो और उधेड़ना शुरू करो (तुकबंदी)

कोई सिरा कहीं से पकड़ो और उधेड़ना शुरू करो। सिर्फ तुकबंदी? या Politics of Science or Science of Politics? चलो किसी भी आसपास के इंसान को पकड़ते हैं और चलते हैं अपनी ही तरह की गुफाओं की खोज पे। 

अरे ओ गुल, सुन 

मैंने कहीं कोई गुलमोहर (plant) की फोटो अपलोड की 

और किसी ने कहीं कुछ गाया  

मगर तब कुछ समझ ना आया। 

अब गुल से गुलशन मत पढ़ जाना 

तेरा रोशनी से क्या लेना-देना है? 

मैंने तो सिर्फ पूछा है 

जवाब हो तो दे देना। 


अच्छा। उस उजला वाली भारती से है, फिर?

वो कोई उजला-भारती केस का भी? 

ICGEB वाले दिल्ली से कोई लेना-देना बताया।

(और उसका headquarter ईटली?) 

और CAS-9, CRISPER से भी। 

वैसे तुने अपना नाम क्यों बदला? 

किसने सलाह दी थी?


कोई ईमेल आ रही थी, कुछ वक़्त पहले बारबार 

LinkedIn पे फलाना-धमकाना का मैसेज आया है 

या फलाना-धमकाना को add करें 

जबकि, 

याद ही नहीं की ये linkedIn आखिर बार खोला कब था?


अब ये Spirulina की भी advertising ही हैं, शायद 

अरे ये तो --

कौन रिसर्च कर रहा था इसपे, और कहाँ और कब?

और आप पड़ जाएँ सोच में 

इस गुलशन का, उस गुलशन से  

और वो आजकल जो गुड़िया पढ़ती है जहाँ tution 

My cute पेलो गर्ल :)

उस गुलशन से क्या लेना-देना?


मतलब कुछ भी? कहीं से भी?

जोड़ो, तोड़ो, मरोड़ो या यूँ कहें 

चलती-फिरती गोटियों की तरह, इधर से उधर रखो 

यही तो सिस्टम automation है और logical सा भी?

अब ये spirulina वालों ने कितना और कैसे-कैसे फेंका हुआ है?

विज्ञान यही है? ज्ञान यही है? 

दुनियाँ का सत्यानाश फिर तो सही ही है? 


राजनीतिक सिस्टम की पैठ हर स्तर पे, हर जगह पे। 

मगर बड़े ही अजीबोगरीब ढंग से। 

सिस्टम, कभी इस पार्टी का पेला हुआ। 

तो कभी उस पार्टी का पेला हुआ। 

या, यहाँ इस पार्टी का पेला हुआ

और, वहाँ उस पार्टी का पेला हुआ। 

 

कभी, इस नाम का कोड यहाँ? 

कभी, उस नाम का कोड वहाँ?

और कभी? 

जाले बुनती-सी कितनी ही मकड़ियाँ, यहाँ-वहाँ। 

इस सुरंग से निकलो, तो ये वहाँ पे मिलती है 

उस सुरँग से निकलो, तो वो, वहाँ पे मिलती है 

यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ, सुरंगे ही सुरंगे।   


कितनी ही तुकबंदियाँ हो सकती हैं ऐसे तो 

मगर बेवजह नहीं, राजनीतिक जाले कोड के   

कहीं से, कोई भी नाम, कोई भी कोड उठाओ 

और सुरंगों के रस्ते 

यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ, 

तुकबंदी से, इन गुफाओं के रस्ते 

चाहे जहाँ और जैसे पहुँच जाओ। 

     

अब MDU Registrar से कोई पुछे की सर, ये 5-7 क्या है? 

मुगली घुट्टी, मीठी-मीठी। कहाँ पढ़ा था ये ? और नौ, दो ग्यारह हो जाना ? बहुत घुमाऊ और पकाऊ रस्ते हैं। किसी राजदरबार में तो नहीं पढ़ा ? भला आम इंसान इस दुनियाँ को पढ़े तो कैसे पढ़े ? और झेले तो कैसे झेले ?     

कोई सिरा कहीं से पकड़ो और उधेड़ना शुरू करो

कोई सिरा (छोर या किनारा), कहीं से पकड़ो और उधेड़ना शुरू करो : 

जाने पहचाने चेहरे? आसपास के इंसान और कुछ सामान, जैसे  

Furniture, Assam Ply, A sign, Lala और भी ऐसा ही बहुत कुछ आसपास। वक़्त, हैप्पी (सिंह)?  वैसे एक हैप्पी हमारे यहाँ भी है और वो भी असम से। तकरीबन उसी वक़्त यहाँ आई हुई। ये जब मैं माइग्रेशन वाली स्टडीज कर रही थी, तब पता चला। अरे ये छोटा-सा गाँव तो migration और immigration hub है। कौन यहाँ से कहाँ-कहाँ गया/गई या आया/आई। छोटी जगहों को, वो भी थोड़ी जानी-पहचानी जगहों को स्टडी करना आसान होता है।     

कहीं Moni तो फिर कहीं Monu   

छाप छोड़ना? अपनी तरह की मोहर लगाना? 

Prof. Pundir to Prof. Jaiwal to Dr. Arun Sharma labs. उस वक़्त वहाँ की कहानियाँ और किस्से। इसके, उसके, उसके और न जाने कितनों ही के।    

नाम में क्या रखा है?

Cooler, Sofa, Study Table और interesting सामान्तर घड़ाई, 16, Type-3 ? मेरी घड़ाई, न की सामान की। सामान का क्या है? इसका, उसका और न जाने किसका और कैसा-कैसा सामान लोगबाग रोकते ही रहते हैं, अजीबोगरीब स्टोरों में, यहाँ-वहाँ। पैसे जैसा-सा हाथ का मैल है। मगर अहम ये है की आप सामने वाले इंसान से पेश कैसे आते हैं? फिर धेला फर्क नहीं पड़ता, की आप प्रधानमंत्री हैं या चौकीदार।   

mdu.ac.in   

yahoo.com to yahoo.co.in मेरा याहू ईमेल id अपने आप कैसे और कब बदला? या किसने बदला ? .com to .in 2007 या 2008 में? या देश बदलने से भी बदल जाता है?  

अजीब लोग हैं। या ये भी automation जैसा कुछ था? AC, MDU?       

कोई सलाह कहीं Alpha 2 और Alpha 3 कोड चैक करो। अच्छा जी प्रॉम्प्टर जी। और बहुत से कोड क्यों नहीं? यही क्यों ? मुझे तो ये currency codes और countries flags भी इंटरेस्टिंग लग रहे हैं। अब भारतीय रूपए को ही लो, शुरू में ही रोड़ा है, मतलब R है। अरे इसको भी बदल कर देख लो। क्या पता भारतीय रुपया भी डॉलर के बराबर हो जाय? या शायद एक रूपए में 85 या 90 अमेरिकी डॉलर हो जायें? एक पोस्ट तो बनती है इन वाले कोड्स पे भी। बच्चों के लिए ही सही। हाँ। उससे पहले थोड़ा बहुत और ज्ञान, एक्सपर्ट लोग दे पाएं तो मेहरबानी होगी।     

अब AC तो MDU के नाम करना बनता है? उसके साथ और क्या-क्या Combination सही रहेगा? सीढ़ी, wiper, कार टायर pots, blue pot 45 etc? भला आप ऐसा कुछ यूनिवर्सिटी को दान करना चाहें, तो क्या टीचिंग ब्रांच को कोई दिक्कत हो सकती है? ये तो कुछ-कुछ ऐसा ही नहीं है, जैसे कोई झाडु-पोचा जैसा, आलतू-फालतु सामान, पुराने घर में ही छोड़ के चल दें? अमीर लोग तो शायद और भी बहुत कुछ छोड़ देते होंगे? पता नहीं, इसलिए; शायद लिखा है। अब बड़े लोगों जैसे, बड़े-बड़े MUSICAL INTRUMENTS अपने पास तो थे नहीं।     

आओ typical संगीतमय या 5-7 वाली घड़ाई करें? कुछ लोग बहुत वक़्त से हैं, इन गुफाओं के हिस्से। एक पोस्ट इसपे भी बनती है। 

ये थोड़ा और आगे बढ़ गए? Kinda Funny Bones :) वैसे कभी-कभी इस प्रोफाइल पे अच्छी खासी information भी होती है, और कई ऐसे ही प्रोफाइल्स की तरह। हाँ, ज्यादातर सिर के ऊपर से जाता है या खामखाँ लगता है। 


एक ऐसा जहाँ, जहाँ पे लोग आपको, जो आप हैं, बस वो नहीं रहने देना चाहते। पता नहीं और क्या-क्या बनाना चाहते हैं? एक पोस्ट इसपे भी बनती है। सारा राजनीतिक खेल घुमता ही, इस अदले-बदले के गोटियों के जुए के इर्द-गिर्द है। यही है शायद, What lies in a name, place or IDs?     

आओ हूबहू ( Ditto) रचें (34 नंबरी केस?) या ?

34 नंबरी केस?

या 1 से 2 

2 से 3 

3 से 4  या 

जुआरियों और शिकारियों के काले कारनामों की बहार?

इन्हें सिर्फ फोटोजीवी और विडियोजीवी जुर्म कह सकते हैं? या Well Planned with enough time and resources, killings? जहाँ दोनों साइड जुर्म में लगी हुई हैं, बजाय की उसे रोकने के? और वो भी इतने सारे, इतने बड़े-बड़े लोगों की जानकारी के बावजूद? इसे बूचड़खाना सिस्टम न कहें तो क्या कहें? वो बूचड़खाना, जहाँ कुर्सियों पर लोगबाग बैठते ही ऐसे-ऐसे धंधे करने के लिए हैं?    

यूनिवर्सिटी, किसने बोला या enforce करने की कोशिश की, Give keys and leave this home? 

कौन चाहता था या कहो Enforce कर रहा था, येन-केन-प्रकारेन, Leave this job?  

3D रचियता कौन हैं? 3D से पहले 1 और 2 भी होगा? क्या कहानी है उनकी? वो भी जुआरियों और शिकारियों की कहानियाँ हैं क्या?

H#30, Type-4, Bathroom कहानी क्या है? किसने रची? और क्यों? सामान्तर घड़ाई? 

3D err 30, टाइप-4 से पहले मुझे 16, टाइप-3 allot था? वहाँ भी कोई जुर्म हुआ था क्या? सामान्तर घड़ाई? 

16, टाइप-3 से पहले 

Sector-14 (54..) और sector 14 कांड। 3 और 4 (14 कांड)।  क्या है ये 14 नंबरी कांड? 3 नंबरी  को क्यों kick out किया गया था? फिर 4 तो get lost होना ही था। ऐसे किसी बन्दे की औकात ही क्या टिक पाने की? हाँ, कोई बूचड़खाना सिस्टम या घटिया राजनीति जरूर टिका के रख सकती है, ऐसे-ऐसे लोगों को भी।     

Sector 14 चलें? 

MBBS admission fraud    

Special call to Delhi University, Chemistry Department and हरियाणा roadways buses strike. सिर्फ coincidences? कितने ही coincidences, हर केस में यहाँ-वहाँ भरे पड़े हैं।    

चार नंबरी कांड की रुपरेखा, 3 नंबरी चालों और घातों में धरी है। सारे पदचिन्ह कोड वाले कोढ़ में। सबसे बड़ी बात, एक ही नाम का बंदा, आपकी ज़िंदगी में कितनी बार, एक के बाद एक, अवतार ले सकता है? और कैसे-कैसे रूप में?   

Doctor 

Bank Account Suggestion and Help, UF, USA. और फिर किसी का लैब में प्रश्न करना, " अरे तुमने Compass Bank में ही अकाउंट क्यों खोला? सब foreigners, खासकर इंडियन तो Bank of America में ही खोलते हैं।" Interesting, Compass Bank Account Number और Card नंबर।

वहाँ पे मेरा रेजिडेंस नंबर 218 

एक के बाद 2 नंबरी 

2 के बाद 3 नंबरी 

3 के बाद 4 

जब सामने वाले को ABCD न पता हो तो क्या होता है? कितनी ही घड़ाई हो सकती है। 

एक केस के बाद ही भुगतने वाले को बताने की बजाय, साथ लेने की बजाय, छुपम-छपाई खेलना, मतलब,  ऐसे-ऐसे जुर्मों को और बढ़ावा देना। और ये आज तक भी छुपम-छुपाई वाले क्या चाहते हैं? ऐसी सीरीज अगली पीढ़ी में भी शुरू हो जाएँ?      

क्या होता है, जब पता होता है या भनक तक लग जाती है? खेल खत्म। 

बस। इसीलिए उस साइको इंजेक्शन के बाद, चिड़िया चैल, हिमाचल से उड़ गई, क्युंकि उसे वो ABCD सिर्फ दिख और समझ नहीं आ रहे थे, बल्की खतरे की घंटी जैसे सिर पे बज रहे थे। जो कह रहे थे जैसे, ज़िंदगी खत्म। भाग यहाँ से बचके, भाग सकती है तो। 

यहाँ भी कहाँ रुके लोगबाग? 

यूनिवर्सिटी छोड़ो अभियान। Omex में किराये पे लेके दो महीने का किराया देने के बावजुद, सामान शिफ्ट न करना और यूनिवर्सिटी कैंपस न छोड़ना। अब बढ़िया वाली कुटाई तो होनी ही थी। क्यों MDU के महान और बहादुर VC, Registrar, Security Chief ? 

इतनी बड़ी-बड़ी हस्तियों की इतनी सारी मेहरबानी के बाद, क्या तो जनरल ब्रांच को बोला जाय और क्या टीचिंग ब्रांच वाले भारद्वाजों को? पैसा ही तो सबकुछ रह गया ना? क्यों धन्ना सेठ या कहना चाहिए सेठो? 

ED क्या है? क्या है, LED Light Crime?  कोई विज्ञापन आ रहा था। आएंगे उसपे भी किसी और पोस्ट में, "On (1), Off. (2), Over (3) , Control Freaks and Elections (4)? 

किसने बोला Omex चलो? JS? YS? IS? ISIS? कैसे-कैसे आतंकवादी हैं, दुनियाँ में? 

JS Dahiya, ENG Cell Head या Contractor of 30, Type-4, टाइप लोगबाग क्या हैं ?  ये जयसुख क्या है? अगर कोई थोड़ा और रौशनी डाल सके?          

सबसे बड़ी बात, कौन धोखे से Chail, HP, स्कूल कांड (सामान्तर केस) रचना चाहता था? अहम, जिन लोगों को साथ लिया हुआ था, क्या उन्हें उस सबकी भनक तक थी? ये दोस्त (?) या दुश्मन लोगबाग, पढ़े-लिखों को अँधेरे में रख, अनपढ़-गँवारों या कहना चाहिए की भोले-भाले लोगों को ही फसाने में क्यों रहते हैं?  "दिखाना है, बताना नहीं", कोई खेल नहीं हैं, बल्की घिनौने कांड हैं राजनीति के। बचो, जहाँ भी बच सकते हो।       

आओ हुबहु रचें? 

चाची 420 नंबरी केस क्या है? कई साल पहले जब कहीं पढ़ा तो समझ ही नहीं आया की क्या बकवास है? किसके बारे और कहाँ के बारे में बात हो रही है?  

12 नंबरी केस क्या है?    

ऐसे ही जैसे, 34 नंबरी। 

ऐसी ही कुछ और सामान्तर घढ़ाईयाँ, आसपास चल रही हैं। बचने की जरूरत है, और बचाने की भी। खासकर उन्हें, जिन्हें अंजाम क्या हो सकते हैं, नहीं पता।    

जैसे राहुल गाँधी Brussels, Belgium में क्या कर रहा था? पूर्वा या पछवा चल रही थी शायद कहीं ? 

Pa  R Vi ta कोड (neighbourhood) का इससे क्या सम्भन्ध हो सकता है? HR 12 K का इससे क्या लेना-देना हो सकता है? ये सब हर कोई नहीं समझ सकता। अड़ोस-पड़ोस में अभी कोई चोरी हुई है क्या?  बोलो खाटुश्याम, जय दादा श्याम? भोले आदमियो, किसी भगवान का खाट से भला क्या लेना देना? शायद जिन्हें कुछ और facts के बारे में मालुम हो, वही बता सकता है। राजनीति, बस यही सब है? साधन और रिसोर्सेज बर्बादी के अलावा, इसमें आम-आदमी का भला कहाँ है? कभी-कभी तो ऐसे लगता है की ये नेता लोग कैसे, कहीं भी, जोकरों की तरह मुँह उठा के चल देते हैं? नेता लोगों के इधर-उधर के, ऐसे-ऐसे विजिट्स पर बात फिर कभी, किसी और पोस्ट में।   

चलती-फिरती गोटियाँ!

पहले वाली महाभारत में विरोधी ज्यादातर आमने-सामने होते थे। हालाँकि कुछ एक छलावे के अपवाद, वहाँ भी सुनने-पढ़ने को मिलते हैं। युद्ध के भी नियम-कायदे होते थे। आज भी होते हैं। उन नियम-कायदों के उलंघन तब भी होते थे। आज भी होते हैं, ज्यादा ही। तब छद्यम जैसे छल, कपट, असली रूप छिपाना, युद्ध कम होते थे। आज युद्ध में आमने-सामने बहुत कम होता है। बैठकर जुए खेलने जैसा कुछ नहीं होता। ऐसा होता है तो आम जुआरियों के यहाँ। वो आखिरी वाले लोगों के यहाँ। उसका बहुत ज्यादा महत्व कुर्सियों को इधर-उधर करने में नहीं होता। हाँ! आपस में भिड़वाने में जरूर होता है। 

गोटियाँ (गोटियाँ मतलब कोड), यहाँ हर जीव और निर्जीव है, खासकर इंसान। और कोड भी अलग-अलग पार्टी में, अलग-अलग तरह से काम करते हैं। मानो गोटी को चलना है, ऐसे की अपना काम भी हो जाए और कहीं नाम भी न आए। पता ही न हो, की करने वाले हैं कौन, और कैसे किया है? आपको, आपके ही किसी अपने के या अपनों के खिलाफ चलना कैसा रहेगा? और आपको बताया या समझाया जा रहा हो, की आप तो भला कर रहे हैं। यही फूट डालो और राज करो है। कहीं भी अगर आपको बोलने की बजाय इशारों या नौटंकियों द्वारा करने को बोला जाए, तो मान के चलो वो आपके हित में नहीं है। गलत लोगों के फंस गए हो और कुछ गलत ही करवा रहे हैं। शायद बहुत कुछ आपसे छिपा रहे हैं। जिसका ज्यादातर वो मतलब होता ही नहीं, जो आपको बताया या समझाया जाता है। 

आप अगर कोई नौटंकी या ड्रामे का हिस्सा भी हो रहे हो, तो भी उसका असर आपकी अपनी ज़िंदगी पे तो सही है ही नहीं। आपके आसपास वालों पे भी सही नहीं होगा। कुछ लोग, एक या दो नौटंकी पे ही समझ और संभल जाते हैं। मगर कुछ उसे अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना लेते हैं। ज्यादातर ऐसा अनजाने में हो रहा होता है। मगर उनका क्या किया जाए, जिन्होंने जानबुझकर ऐसी-ऐसी नौटंकियों को अपनी राजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया हो? मतलब, आपका मानव रोबोट बनना या कहो बनाना शुरू हो चुका है। आपकी mind programming चल रही है। वैसे ही जैसे हमारी आदतें बनती हैं। या वैसे ही जैसे बच्चों या पालतु जानवरों की ट्रेनिंग होती है। वो करने से पहले कम ही सोचते हैं, की क्यों कर रहे हैं? इससे किसका फायदा या नुकसान है? या यूँ कहें की दिमाग कहाँ है? किसी भी चीज को समझने की कोशिश करना और बिना समझे करने में दिमाग का प्रयोग करना या न करने भर का अंतर है। आप गोटी हैं, इधर या उधर की और कोई आपको चला रहा है। आप चल रहे हैं। दिख तो यही रहा है ना की आप कर रहे हैं। कर भी रहे हैं। नहीं?

इसमें किसी भी तरह के हाव-भाव या संकेत हो सकते हैं। किसी खास पोज़ में बैठना या खड़े होना हो सकता है। या कोई कोड शब्द भी हो सकते हैं। ज्यादातर जिनके बारे में बोला जाता है, जैसे किसी चौराहे पे खड़े गुंडों की भाषा। अब आप शायद न तो चौराहे पे खड़े और न ही उस टाइप के बन्दे। फिर भी कर रहे हैं? क्यों? हो सकता है, किसी पार्टी ने आपको ऐसा करने के लिए बोला हो। एक बार, दो बार, कितनी बार? और आपने सोचा उसका असर सामने वाले पे या खुद आपपे क्या होगा? सामने वाला शायद मानव रोबोट कैसे बनते हैं, पर अध्ययन कर रहा हो। या इस लायक ही न समझता हो, की ऐसे किसी जाहिल को तवज्जो तक दी जाए। या शायद आपकी अपनी भलाई में बता रहा हो, की आपको पता है इसका असर खुद आपपे क्या हो रहा है? या आपके अपने आसपास पे क्या हो रहा है? सोचो, कहीं जाने-अनजाने, आप बिना दिमाग का प्रयोग किए, पालतु जानवरों वाली ट्रेनिंग लेने की लाइन में तो नहीं लग चुके हैं? ऐसी ही किसी ट्रेनिंग में जाने-अनजाने अपने बच्चों को भी तो नहीं लगा रहे हैं? मतलब, आप राजनीतिक जुआरी नहीं हैं। फिर भी जुए का हिस्सा बन चुके हैं या कहना चाहिए बनाए जा चुके हैं। आप इस या उस पार्टी की चलाई गोटी भर हैं। गोटी भी कौन से वाली? और लम्बे वक्त तक ऐसी गोटी बने रहने का असर क्या होगा?  

आपके अपने आसपास या घर में ऐसे-ऐसे कितने उदाहरण हैं? अंदाजा है? 

कोशिश कीजिए जानने की, शायद बहुत कुछ समझ आ जाए। जो कुछ हुआ, क्यों हुआ या अब क्या हो रहा है? उसके परिणाम आगे क्या हो सकते हैं?  

आगे की किसी पोस्ट में आते हैं कुछ उदाहरणों पे। यहाँ-वहाँ, देखे-समझे गए उदाहरण। चलती-फिरती गोटियों के। गोटियाँ, इस पार्टी की। गोटियाँ, उस पार्टी की।  

मानव रोबोट बनाने में मनस्थिति का प्रयोग

मानव रोबोट बनाने में मनस्थिति का प्रयोग ( मनस्थिति जैसे डरावे और लालच आदि )

Mind Programming to create human robots and role of Feel Factor like fear or greed or any such thing. 

मानव रोबोट बनाने में डरावों और लालच का प्रयोग और दुरूपयोग बहुत अहम् है। इसमें अहम् ये नहीं होता की हकीकत क्या है, बल्कि दिखाना क्या है। किसी भी बात या विषय को कैसे प्रस्तुत करना है की आप या तो डर जाएँ या लालच में आ जाएँ। यहाँ आपका दिमाग और तंत्रिका-तंत्र अहम् है। मतलब Nervous System. तंत्रिका तंत्र का काम सिर्फ महसुस करके संदेश को दिमाग तक पहुँचाना भर नहीं होता। संदेश और स्थिति के अनुसार फैसले भी लेना होता है। कौन लेता है ये फैसले? दिमाग। दिमाग के अलग-अलग हिस्से, अलग-अलग तरह के फैसले लेने में अहम् भूमिका निभाते हैं। इनमें अलग-अलग इन्द्रियों के मिश्रण के अलग-अलग तरह के प्रभाव होते हैं। ये अलग-अलग मिश्रण कुछ-कुछ ऐसे समझो, जैसे खाना पकाना। किसी को क्या पकाना है, उसके लिए उस पकवान की विधि मालुम होना चाहिए। विधि के बाद उस सामान को इक्कट्टा करना और वैसा वातावरण (यहाँ जैसे तापमान) और वक़्त देना, मतलब कितने वक़्त तक क्या पकाना है और कब-कब डालना है। 

चलते हैं हकीकत और आभासी दुनियाँ पर: 

हकीकत मतलब ,असली जहाँ या हकीकत (Real World)

आभासी संसार, वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual World) या ऐसा ही कुछ। 

और अलग-अलग तकनीकों के तड़के, मतलब दिमाग में तड़क-फड़क पैदा करना या यूँ कहो की विचलित करना। ये सब करने के लिए कितनी ही तरह की तकनीकें हो सकती हैं। पिछले एक साल में गाँव में आने के बाद जो देखा, सुना या महसूस किया, उससे ये समझ और मजबूत हो गयी की ज्यादातर लोग या तो हद से ज्यादा भोले हैं। गाँव के माहौल से आगे उन्हें बाहरी-संसार या तोर-तरीकों की खबर ही नहीं है। वे बेवकूफ बनाए जा रहे हैं, अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा। उस बेवकूफ बनाने में चीज़ों को तोड़-मोड़कर पेश करना अहम् है। उसके साथ कोई न कोई या तो डर जोड़ दो या लालच। और हो गया काम। आओ अब मानव रोबोट घड़ते हैं। आप बताना ऐसा संभव है की नहीं? 

चलो उससे पहले एक सुनी-सुनाई कहानी से शुरू करते है -- कैंसर मरीज और दिवार पे पेड़।   

मैंने भी बहुत पहले सुनी थी तो थोड़ा बहुत ध्यान है। कोई कैंसर मरीज़ था। उसके बैड के पास खिड़की थी। और खिड़की के सामने एक दिवार। उस दिवार पर पेड़ की छाया पड़ती थी। उस कैंसर मरीज़ का जैसे-जैसे कैंसर बढ़ने लगा, वैसे-वैसे पेड़ की छाया भी दिवार पे कम क्षेत्र में  रहने लगी। धीरे-धीरे वो छाया इतनी कम हो गयी की उस दिवार पे दिखने वाली टहनियों के पत्ते तक गिने जा सके। धीरे-धीरे वो पत्ते भी कम दिखने लगे। अब कैंसर मरीज़ को ये यकीन होने लगा की जैसे-जैसे ये छाया खत्म होगी, वैसे-वैसे मैं। जब उसकी देखभाल करने वाले इंसान को ये पता चला तो उसने थोड़ी समझदारी दिखाई। वो मरीज़ को दिखाने के बहाने ले गया और पीछे से उस दिवार पे पेड़ की छाया की पेंटिंग बनवा दी। अब पेड़ की छाया उस पेंटिंग पे पड़ती थी तो पता ही नहीं चलता था की ये असली पेड़ की छाया है या पेंटिंग। 

कैंसर मरीज़ वापस आया तो उसे लगने लगा की पेड़ की छाया धीरे-धीरे घनी हो रही है। क्युंकि अब उस पेंटिंग में भी धीरे-धीरे रोज बदलाव हो रहे थे। और कैंसर-मरीज़ खुद को अच्छा महसूस करने लगा। उसे लगने लगा की अब मैं ठीक हो जाऊँगा। ये तो था आभासी दुनियाँ का अच्छे के लिए प्रयोग। आभासी सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं बल्की वो सब, जो हकीकत न होकर भी होने का आभास करवाए। पेड़ के पत्ते तो झड़ने ही थे, क्युंकि पतझड़ का मौसम था। और कैंसर भी बढ़ना ही था, क्युंकि एक स्टेज के बाद कैंसर जैसी बिमारी कम ही काबु आती है। मगर दुख-दर्द कम किया जा सकता है और जीवन के दिन भी बढाए जा सकते हैं, काफी तरह के उपचारों से। 

दुख या किसी भी बिमारी में ज्यादातर दुख, उस बिमारी या दुख को सोचकर होता है। मतलब, आप दिमाग से महसुस कैसा करते हैं। इंसान का ये महसुस करना ही बहुत जगह अहम होता है। यही ज़िंदगी बना भी देता है और बिगाड़ भी देता है। आपको आपके आसपास का वातावरण कैसा महसुस करवाता है? उस महसुस करवाने में जीव और निर्जीव दोनों की भुमिका अहम् होती है। उस मनस्थिति को बदलकर कुछ हद तक, दुख-दर्द भी दूर किये जा सकते हैं और बिमारियाँ भी। बहुत-सी बिमारियाँ तो हैं ही नकली, मतलब होती ही नहीं, मगर आपको ऐसा अनुभव या आभास करवाया जाता है, की हैं। उसी मनस्थिति को बदलकर, दुख-दर्द बढाए भी जा सकते हैं। मतलब ऐसे-ऐसे तरीक़ों का दुरूपयोग भी किया जा सकता है। 

ये मनस्थिति ही बहुत से रिश्तों के तोड़जोड़ में भी काम आती है, बिमारियाँ पैदा करने में भी और कंपनियों को अपने उत्पाद बेचने में भी। इसी मनस्थिति को इधर-उधर करके राजनीतिक पार्टियाँ, अपनी-अपनी तरह के दाँव चलती हैं। आते हैं ऐसे ही कुछ दाँवों-चालों पे, जो आम-आदमी अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में भुगतता है। और उसे खबर तक नहीं होती की ऐसा हो रहा है या किया जा रहा है -- अगली किसी पोस्ट में। जिनमें किसी भी तरह का डर या लालच अहम् होता है।      

Saturday, September 9, 2023

हूबहू ( Ditto)

हूबहू ( Ditto) कैसे रचती हैं, ये सब पार्टियाँ? कैसे हो सकता है की जो एक जगह कहीं सिर्फ फाइल्स तक की Theory हो, वही, कहीं और हकीकत में उससे ज्यादा कहीं बेहुदा या खुंखार रूप में चल रहा हो?

कर-नाटका 

उन दिनों जो कर्नाटका के Resort राजनीति की खबरें आ रही थी वो यूँ लग रहा था जैसे आसपास ही यूनिवर्सिटी में कहीं कुछ पक रहा था और दूर कहीं किसी राज्य में उसको बढ़ा- चढ़ा कर या तोड़मोड़ कर पेश किया जा रहा था।  सही शब्द क्या होगा उसके लिए? HYPE? PEJORATIVE? Manipulative? Manifestation?    

कहीं किन्हीं गँवार शराब पीने वाले लोगों की भाषा और कहाँ CJI, India, एक ही बात हो सकती है क्या? 

दारु पीळे, पता नहीं कैसे-कैसे नामों से नवाज़ देते हैं, लोगबाग। मुझे लगता था या अभी भी काफी हद तक यही समझ आता है की दारु पीना वो भी इतनी मात्रा में, की बन्दों को होशो-हवाश ही ना रहे की क्या बोल रहे हैं और क्यों? और किसे बोल रहे हैं? जो इंसान कुछ अच्छा नहीं करते, वो कुछ न कुछ बुरा तो करते ही हैं? 

दारू पीळे, भाषा ही बता रही है, की ऐसे स्तर पर क्या-क्या कहा जा सकता है या गाली गलौच इतने free flow में भी हो सकता है जैसे शब्दों की कोई प्रासंगिकता ही ना हो। पहली बार जब मैंने वो उँगलियों और अंगूठों वाली गालियॉं कहीं सुनी तो एक बार तो समझ नहीं आया, की मैं हूँ कहाँ और क्यों? वक़्त के साथ धीरे-धीरे काफी कुछ समझ आया। वो ये की ये तो मानव रोबोट घड़े जा रहे हैं। मगर इतना कुछ संभव कैसे है? शायद मैं जहाँ हूँ, अगर वहाँ न होती और जो कुछ देखा, सुना या समझा, वो सब मेरी जानकारी में ही ना होता, तो मुझे भी समझ नहीं आता की ऐसा संभव कैसे है? उससे भी ज्यादा, इस सबको समझाने में भुमिका रही कुछ गुप्त गुफाओं को दिखाने वालों की।

"दिखाना है, बताना नहीं है" मानव रोबोट घड़ने की प्रकिर्या का अहम हिस्सा है। सबकुछ, उसी के इर्द-गिर्द घुमता है, इस जुए की राजनीति में। और ऐसा तब होता है, जब जुर्म बहुत ज्यादा होता है। उसपे जुर्म को भी गुप्त रखने की कोशिशें होती हैं। नहीं तो, दिखाना है बताना नहीं है, का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। जो बात सीधे सपाट हो सकती है, उसे किसी नाटक मे क्यों घड़ना? नाटक भी ज्यादातर ऐसे, जिनमें सामने वाले को भी कोशिश करनी पड़े समझने की, की आखिर इस सबका मतलब क्या है?    

एक स्तर ऐसा, जहाँ आप सुनकर एक बार तो जैसे सुन्न रह जाएँ की ये कौन से गंदे नाले या किसी कुरड़ पर पहुँच गए? तो दुसरी तरफ, Step in, step out या checked in, checked out वाला coded जहाँ। फर्क क्या है? बात तो एक ही है। नहीं?    

नहीं। यही वो फर्क है जो अन्जान, अनभिज्ञ लोगों को जल्दी मानव-रोबोट बनाने में सफल होता है। ठीक ऐसे, जैसे एक तरफ, सिर्फ फाइल्स में कुछ हो या फिर कोई रैगिंग के नाम पे किसी तरह का धोखा या दुर्व्यवहार। या शायद ऐसी ही कोई Proxies, hypes वाले जुर्म। कहीं किसी फोटो या विडियो तक कोई हादसा हो। तो दूसरी तरफ, कैसी-कैसी सामान्तर घढ़ाईयाँ? मानवाधिकार उलंघन तक, सामन्य-सी बातें जैसे। पता नहीं कैसे-कैसे जुबानी और शारिरीक दुर्वव्यवहार, दुर्घटनायें, बीमारियाँ, रिश्तों के तोड़-मोड़ और मौतें तक। इस सब में सिर्फ मनोविज्ञान काउंसलिंग काम नहीं करती। बल्की इंसानों का खास तरह का अध्ययन। इसे ही कुछ लोग SWOT analysis कहते हैं क्या? कोड भी मस्त हैं --SWOT . वो जितना ज्यादा होगा, उतना ही ज्यादा आसान होगा, उन्हें कंट्रोल करना। 

कुछ खास तरह के तरीके जो इन घढ़ाईयों में प्रयोग होते हैं। दूरी पैदा करना। दूरी पैदा करके किसी खास तरह के circle या surrounding की तरफ धकेलना। किसी भी तरह से कमजोर करना, मानसिक या आर्थिक या हो सकता है किसी भी तरह के दबाव या डरावे। किसी भी तरह की कमी पैदा करना, जिसके बिना आप अपने हिसाब से काम ना कर सकें। दुनियाँ भर में ये पार्टियाँ और MNCs यही तो कर रही हैं। और ज्यादातर लोगों को खबर तक नहीं की ऐसा हर जगह हो रहा है, कहीं कम तो कहीं ज्यादा।     

जिन पर सामान्तर केस घड़े जा रहे हों, उन्हें इनसे बचने के लिए कम से कम, कुछ तो जरूर पता होना चाहिए। जबकि ज्यादातर ऐसे लोगों को उस जानकारी का ABC तक नहीं पता होता। तो वो बचेंगे कैसे? लोगों को अगर खबर हो की कहाँ किस तरह की घढ़ाईयाँ संभव है तो उन्हें रोका भी जा सकता है। मगर, ज्यादातर ऐसी खबर रखने वाले इन्हें गुप्त रखते हैं। क्यों? क्युंकि, वो खुद या तो कहीं न कहीं ऐसी घढ़ाईयों का हिस्सा होते हैं या गुप्त रखना है वाले जुआरियों की सेनाएँ, पार्टियों के हिस्से होते हैं ।    

जानते हैं ऐसे कुछ सामान्तर केसों के बारे में जो वक़्त पे सही जानकारी होने की वजह से बच गए। या जो वक़्त पर जानकारी न होने की वजह से फंस गए। कहीं रिश्ते आए गए हो गए या हो रहे हैं। कहीं जिंदगियां बर्बाद हो गई या हो रही हैं। तो कहीं कितने ही घर। उसपे, ऐसी जगहों पे आपस में जो मारा-मारी या नफ़रत का माहौल बन जाता है, वो अलग। 

Thursday, September 7, 2023

धर्मांधों के राजनीतिक गुच्छे -- कितने काले, कितने उजाले?

चमड़ी का रंग गोरा या काला होने से कोई इंसान गोरा या काला नहीं होता। मगर छलावा कैसा भी हो, काला ही होता है। राजनीति के कुछ ऐसे ही छलावों को जानने की कोशिश है। ऐसे छलावे, जो आम इंसान को परोसता है, कुछ दिखावे, ऐसे, जैसे वो उसके भले में हों। मगर जिनकी हकीकत, सिर्फ दिखावा मात्र हो। या शायद दिखावे के बिलकुल विपरीत।  

क्या कोई पार्टी चाहेगी की कोई लड़की नौकरी छोड़कर घर बैठ जाए और उस पार्टी की खास बस उसे घर तक छोड़ने भी आए? अगर हाँ, तो कौन और कैसी पार्टी और क्यों? अहम है यहाँ क्यों?

मजे ले बेटा, ये तो तेरी पसंदीदा पार्टी होती थी ना, कभी?
हाँ। जब मुझे राजनीति और धर्म का रिस्ता नहीं पता था। 
वही पार्टी, जिसका सुप्रीमो कहे, भगवान को नहीं मानना मतलब, मौत को गले लगाना। कुछ हद तक Logical Sense भी, राजनीतिक कबाड़ के अनुसार। अब इस कबाड़ ने जो-जो घड़ दिया और जैसे-जैसे घड़ दिया, उसको भी तो जायज़ ठहराना है। फिर चाहे वो सब कितना भी नाजायज क्यों ना हो। लगे रहो धन्ना सेठ। 
या फिर कहना चाहिए -- ये आप भी ना, कुछ भी।  
   
ओ हैल्लो। वोट के लिए कुछ भी? धर्मांधों के ये राजनीतिक गुच्छे -- कितने काले, कितने उजाले (लाइट वाले)? मेरा घर स्वीडन है, फ़िनलैंड है या कोई और वहीं-कहीं आसपास, उस खुबसुरत से nordic region में? सुना है Online काफी travel करती हूँ मैं। वैसे इस nordic region से बहुत कुछ है सीखने को। सुना है ये वाले देश, सिर्फ साफ और स्वच्छ ही नहीं हैं बल्की काफी पढ़े लिखे और दुनियाँ के ज्यादातर नास्तिकों के देश भी। मतलब, जहाँ ज्यादातर नास्तिक हों, मान के चलो वहाँ ज्यादातर जनसंख्याँ पढ़ी लिखी और सफाई पसंद है? ये सब और ऐसा कुछ, किसी और पोस्ट में।  
वो पुरवा सुहानी आयी रे, तो सुना था। आजकल कुछ लोगों को पछवा सुहानी लग रही है, लगता है। तब ये कोड वाले जुए की राजनीती भी तो कौन जानता था? अब क्या पुरवा और क्या पछवा, सबकी खिचड़ी, पता ही नहीं कैसे-कैसे पकी हुई है ? आज अगर कोई बच्चों तक को कृष्ण, शिव या हनुमान जैसों के घड़ित छलावे परोस कर चलाना चाहे तो बताना तो बनता है -- बच्चो संभल के। ये दुनियाँ वो नहीं है, जो तुम्हें दिखाई जा रही है। धूर्तों और धर्तों (अंधों) की इस दुनियाँ में, हर कदम पर सामान्तर घढ़ाईयां हैं। और वो घड़ाईयां ज्यादातर आम आदमी की समझ से बहार हैं। 

Sunday, September 3, 2023

Interactive and Immersive World

Presentation matters. 

Interactive and Immersive World

How different parts of something have been combined and presented to you. You have immersed in that and living there like it's real. 

That's real. That's virtual. That's augmented. That's mixed reality. And that is AI enabled machine kinda robotic enforcement at so many levels. How much you know about the reality in that presentation and how much imagination have been enforced on you? That creates a world of its own for different people. As different people understand that presentation differently. 

Real World

Virtual World

Augmented Reality

Mixed Reality and

Artificial Intelligence

And that is your world. This world differs for different people, as their real world experiences, virtual world experiences, augmented and mixed versions, along with artificial enforcements are different. 

How much people know about these differences? How much they are able to cope with different types of enforcements? Or mend those enforcements as per their requirements? That's what make your world, your life.

Kinda sometimes, ignorance is bliss. Sometimes, ignorance is curse. For common people this ignorance is more or less a curse. As information makes the difference, not only in living a better life but also having better opportunities.

Saturday, September 2, 2023

मानव रोबोट कैसे बनते हैं?

सूचनाओं को नियंत्रित करके। कुछ छुपा के, कुछ बता के।   

शरीर को दो हिसों में बाँट दो। एक गर्दन के ऊपर का हिस्सा और दुसरा गर्दन से नीचे। इंसान में और बाकी जानवरों में फर्क, गर्दन के ऊपरी हिस्से में अहम होता है। ये हिस्सा जब तक सही है, आप ज़िन्दा है। ये खत्म, आप खत्म। ये किसी और के अधीन, आप किसी और के अधीन। इस हिस्से को नियंत्रण में लेने के लिए जरूरी है, इसमें जाने वाले संदेशों, जानकारियों को नियंत्रित करना। वो नियंत्रित, तो आप नियंत्रित। मतलब, मानव रोबोट। मानव रोबोट मतलब, अब आप सिर्फ वो करेंगे जो आपसे करवाया जाएगा।    

संसाधन आपके। और फायदा आपको रोबोट बनाने वालों का। उन संसाधनों में जमीन-जायदाद से लेकर, इंसान तक शामिल है। या यूँ कहना चाहिए की सबसे बड़ा संसाधन इंसान ही है। 

अब उन लोगों या पार्टियों के बारे में सोचो जिन्होंने आपको रोज-रोज की नौटंकियों में उलझा रखा है। क्या बता के? और क्या छुपा के? छुपम-छुपाई क्यों? छदम युद्ध? लड़ने वाले को या इन छदम युद्धों (हकीकत में राजनीतिक जुआ) का हिस्सा होने के लिए आपको सब नहीं पता होना चाहिए? नहीं। क्यों? 

किसी भी टीम में कितनी तरह के इंसान हो सकते हैं?

लड़ाका टीम ही लेते हैं। एक ऑफिसर्स लेवल और दुसरे आम सिपाही या फौजी। फैसले कौन लेता है? ज्यादातर प्लान कौन बनाता है? और उनको अंजाम कौन देता है? इसमें कुछ और भी बच गया? ये सब करने के लिए पैसा कहाँ से आएगा? इन फोजों को भर्ती कौन करता है? और भी बहुत कुछ। 

इसे यूँ भी समझ सकते हैं। आपको घर बनाना है। पैसा होना चाहिए। घर बन जाएगा। आपके इलावा कौन-कौन काम करेगा उसपे? कोई डिज़ाइन बनाएगा। कोई कारीगर, तो कोई मजदूर। सब अपने-अपने काम के पैसे लेंगे और आपको घर मिल जाएगा। पैसा न हो तो? आपके अच्छे लिंक हों तो वो भी मिल जाएगा। ऐसा भी हो सकता है की पैसा किसी और का और घर आपका। जैसे पेपर दे कोई और, अंगुठा लगे किसी और का और नौकरी मिले किसी और को। अंगुठा लगाने से नौकरी? ये कैसी नौकरी होंगी और कैसा समाज? कितनी ही तरह के जुगाड़ होते हैं, दुनियाँ में। अब ये तो आपपे है की आपको कैसी कमाई चाहिए और कैसा जुगाङ। नहीं? तो थोड़ा बहुत तो दिमाग से काम लेना पड़ेगा, खासकर अगर जन्मजात गरीब हैं तो।     

अब राजनीतिक पार्टियों पे आते हैं। किसने बनाई कोई पार्टी? किसलिए बनाई? राजनीतिक पार्टी का मतलब सच में सेवा करना है लोगों की? या उनसे अपनी सेवा करवाना? अगर सेवा करना है, फिर तो सबको अपने-अपने काम के अनुसार पैसे और सुविधाएँ मिलेंगी। मगर बिना लोगों का काम किए, लोगों से अपने काम निकलवाने आ जाएँ तो? क्या करना होगा उसके लिए? लोगों को बेवकूफ बनाना। मानव रोबोट बनाना।  

मतलब इंसान के शरीर की तरह दो हिस्से मिलेंगे, ज्यादातर टीमों में। दिमाग वाला और बाकी शरीर वाला। दिमाग वाला टीम का हिस्सा प्लान बनाएगा और बाकियों को (शरीर को) बताएगा की क्या करना है। जिस समाज में, इस प्लान बनाने वाले में और बाकियों में जितना ज्यादा फर्क होगा, उस समाज में उतनी ही ज्यादा चुनोतियाँ और समस्याएँ होंगी। ठीक वैसे ही, जैसे जिस घर में सब के विचारों का ख्याल रखा जाता है, वहाँ शांति ज्यादा रहती है। मगर जहाँ किसी एक या दो की दादागिरी रहती है, वहाँ झगड़े ज्यादा। झगड़े न भी हों, तो फासले तो जरूर ज्यादा होंगे। उसके बाद, कुछ ऐसे घर भी हो सकते हैं क्या, जिनके फैसले लेते ही बाहर वाले हों? संभव है? आप कहेंगे वो घर कैसे? वो घर मानव रोबोट वाले। इन घरों के फैसले राजनीतिक पार्टियाँ लेती हैं। और ऐसे घर बहुत ज्यादा हैं। बस दिखते कुछ-कुछ हैं। और जो कोई मानने से मना कर दे, उनके ईलाज होते हैं। वो सब भी राजनीतिक पार्टियाँ ही करती या करवाती हैं। कैसे? जानते हैं अगली पोस्ट में।   

Friday, September 1, 2023

भारती के घोड़े और 24-नंबरी केस (Checkmate?)

भारती के घोड़े, लाला-वाले तालाब पे दौड़े?

कब की बात है ये?  

घोड़े वाला वो भाई और उसकी बहन की शादी। वो भी किसी स्कूल में। और कुछ युवा ज़िंदगियों की बर्बादी। 24-नंबरी केस, और एक-एक नाम और उनके कारनामों की घड़ाई। जैसे किसी एक पार्टी द्वारा, अपनी तरह के राजनीतिक ड्रामे की घड़ाई। अहम, लोगों को पता तक नहीं चलता, की राजनीतिक सामान्तर घड़ाई चल रही है। बहुतों को तो होने के बाद भी समझ नहीं आता। ऐसे केसों में बहुत-सी घटनाएँ, अपने आप नहीं घटती। बल्की, बहुत तरह के प्रोत्साहन और उकसावे (Stimulants) होते हैं। बहुत तरह के झूठ, छलावे और फेंकम-फेंक भी। मतलब जोड़ो, तोड़ो, मरोड़ो और पेलो। इसी को बोलते हैं, जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं। कहीं के किसी और तरह के कारनामे, कहीं पे किन्हीं और ज़िन्दगियों के साथ खिलवाड़।जैसे, जमीन में हथियार छुपाना, पता है किसे बोलते हैं? या अलमारी पे हथियार छुपाना? और ऐसे-ऐसे शब्द, कहाँ-कहाँ से होते हुए, करने वालों तक पहुँचते हैं, ऐसी-ऐसी, कैसी-कैसी घढ़ाईयों में? और भी, ऐसे ही कितने ही सिर्फ शब्द नहीं, बल्की कमियाँ (loopholes) मिल जाएंगे, खासकर उन्हें, जिन्हें ऐसे केसों का अध्ययन और विश्लेषण आता है। हर केस अलग होता है। मगर राजनीतिक पार्टियाँ उसे अपने अनुसार घड़ने की कोशिश करती हैं, अपनी, अपनी तरह के मिर्च-मसाले के साथ। जहाँ उनके हिसाब से घड़ाई ना हो पाए, वहाँ राजनीतिक हिसाब-किताब से, अलग-अलग तरह की गपशप काम आती है। मेरी नजर में ये पहला केस था, आसपास की किसी जगह का, जिसने मुझे चौकन्ना किया, की कहीं तो कुछ गड़बड़ घोटाला है। उसको कुछ डिफेन्स, पुलिस, सिविल और मीडिया के बन्दों ने, यहाँ-वहाँ जैसे पुख्ता किया हो, अपनी पोस्ट्स से या लेखों से। मीडिया में रूचि तो पहले भी थी, मगर इसके बाद वो कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। 

इसके बाद तो कितने ही और, कितनी ही तरह के, सामान्तर केसों को सुना या पढ़ा, इधर-उधर। मगर, उनकी समझ, 2018 से 2021 तक के कैंपस क्राइम सीरीज को भुगतने और ऑफिसियल डाक्यूमेंट्स को पढ़ने के बाद ही हुई। इसी के साथ-साथ, मैंने आसपास की कुछ बीमारियों और मौतों को भी समझने की कोशिश की। कोरोना काल ने तो जैसे, सबकुछ नहीं तो, बहुत कुछ जरूर उधेड़ के रख दिया। वो भी ऐसे, की ये राजनीतिक खेल (जुआ), सामाजिक स्तर पर न तो इतना आसान है, जितना कैंपस क्राइम सीरीज सामांतार घढ़ाईयाँ। और न ही इन्हें और इनके परिणामों को झेलना। फिर दायरा भी किसी एक यूनिवर्सिटी, शहर, राज्य या देश तक सिमित नहीं है। ये तो एक कोड वाला पहिया-सा है, जो संसार भर में घुमता है। वो भी ऐसे, की जो दुनियाँ के इस कोने में हो रहा है, उसका असर दुनियाँ के पता नहीं और कौन-कौन से कोने में और कैसे-कैसे हो रहा है। आप जो भी करेंगे, उसका असर, किसी न किसी रूप में, कहीं न कहीं तो जरूर हो रहा होगा। तो कम से कम, अपना हिस्सा तो जिम्मेदारी से निभाईये। फिर चाहे वो कितना ही छोटा क्यों न हो। 

ऐसे ही, कुछ और इधर-उधर के checkmate वाले केसों को समझने की कोशिश करते हैं, किसी और पोस्ट में। खासकर, रिश्तों के राजनीतिक जोड़-तोड़ और राजनीतिक बीमारियों के प्रहार। ऐसी सामान्तर घढ़ाईयों से आम-आदमी खुद को बचा सकता है, अगर वक़्त रहते जानकारी मिल जाए तो। अगला केस 34 नंबरी केस या 12 या कोई और तरह की, किसी और पार्टी की सामान्तर घढ़ाईयाँ?