जब आपकी मानसिकता गुलाम होती है तो आपकी अपनी कोई पहचान या कोई स्टैंड नहीं होता। जो होता है, वो जिसकी आप गुलामी कर रहे हैं, उन्हीं का होता है। कौन-सी पार्टी आपके काम की है? कितनी काम की है? आपके अपनों, आसपास के लोगों से भी ज्यादा?
जो कोई पार्टी, आपसे जितना छिपा रही है या पारदर्शी नहीं है, वो आपके काम की नहीं है। जनता का भला करने वालों को छिपाने की क्या जरुरत? ऐसे में तो कोई भी पार्टी जनता की हितेषी नहीं है, शायद। सभी कुछ ना कुछ, नहीं, बल्कि, बहुत कुछ छिपा रही हैं। कोढ़ के अनुसार काम कर रही हैं। सविंधान या देश नाम की कोई चीज़ है ही नहीं। फिर ये सेनाएँ क्या है और किसके लिए लोगबाग लड़ते-मरते हैं? बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए? राजे-महाराजों के लिए?
सबसे बड़ी बात, आप भी अपने या अपनों के लिए काम ना कर, कहीं इन्हीं की गुलामी तो नहीं कर रहे? इसीलिए आज भी छोटी-मोटी गोटियाँ (so-called), कीड़े-मकोड़ों की तरह यहाँ से वहाँ, उठा कर पटक दी जाती हैं। या ख़त्म कर दी जाती हैं। राजे-महाराजों द्वारा? या आपकी राजे-महाराजों की गुलामी की मानसिकता द्वारा? अपने छोटे-मोटे लालच की वज़ह से? या हक़ीक़त से दूर, अँधे-बहरे होने की वजह से? अपनों से दूर और औरों के पास होने की वजह से?
ये सब सामान्तर घड़ाईयोँ से समझ आता है। आसपास के कुछ लोगों ने अपना या अपने किन्हीं आसपास वालों का भला करने के लिए, पता ही नहीं, कैसे-कैसे नुकसान कर डाले। आसपास वालों के तो किए जो किए, अपने भी। क्यूँकि, इन पार्टियों ने उन्हें अँधा और बहरा बनाया हुआ है। जहाँ कहीं से इन्हें सचाई पता लग सकती है, वहीं से भगा देते हैं। या उस इंसान को कहीं दूर पटक देते हैं या दुनियाँ से ही उठा देते हैं। पार्टियों के स्क्रिप्ट्स के अनुसार, सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ने के लिए, ऐसी दूरियों या दीवारों का होना बहुत जरुरी होता है। क्यूँकि, आम इंसान इतना बुरा नहीं होता, जितनी निर्दयी और क्रूर राजनीतिक पार्टियाँ होती हैं। ज्यादातर, कोई खास बेईमान या लालची नहीं होते। मगर, इन पार्टियों के पास उन्हें ऐसा बनाने के तरीके होते हैं। इसलिए आम-आदमी के पास सूचनाएँ सिर्फ वो पहुँचती हैं, जिससे इन पार्टियों का काम आसान हो जाता है। जितना ज्यादा इस सही सूचना को छिपाने या तोड़ने-मरोड़ने वाली दिवारें (shield) को ख़त्म किया जाएगा, उतना-ही इन पार्टियों के बुरे जालों से मुक्ति मिलेगी। और आपकी पहचान, इनके चिपकाए स्टीकरों की गुलाम नहीं रहेगी।
इन्हें हम बीमारियों से या कहना चाहिए की राजनीतिक बीमारियों की हकीकतों से ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं।
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