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Thursday, May 2, 2024

आपकी पहचान और इधर-उधर के स्टीकरों का प्रभाव

आपकी पहचान पर इधर-उधर से चिपकाए जाने वाले स्टीकरों से पहले, आपको खुद की पहचान को जानना जरुरी है। किन्हीं भी इधर-उधर के स्टीकरों से ज्यादा अहम वो है। इधर-उधर के स्टीकर ज्यादातर हमेशा के लिए नहीं होते। ज्यादातर बहुत ही अस्थायी होते हैं। ज्यादातर बेअसर होते हैं। क्यूँकि, इंसान की याददास्त का बहुत कम हिस्सा स्थाई  होता है। ज्यादातर अस्थाई होता है। 

इस स्थाई और अस्थाई में फेरबदल करके बहुत कुछ बदला जा सकता है। Mind Wash या Mind Control में यही अहम होता है। जैसे किसी बच्चे या पालतु जानवर की ट्रैनिंग। 

फ़र्क इससे पड़ता है, की आपको आपकी असली पहचान मालूम भी है, की नहीं? आपका दिमाग उसे पहचानने में ही गड़बड़ तो नहीं करने लगा? आपको या आपके अपनों को उस पहचान में, उलटफेर की ट्रेनिंग तो नहीं दी जा रही? क्या हो अगर ये जबरदस्ती स्टीकर चिपकाने वाली या चिपकाने की कोशिश करने वाली पार्टियाँ, आपके खून तक के रिश्तों में बेहुदगी लाने की कोशिश करने लगें? वो खून के रिश्ते करीबी भी हो सकते हैं या थोड़ा दूर के भी। आपको इस या उस राजनीतिक पार्टी ने कुछ करने को बोला है? चाहे छोटी-मोटी नौटँकी ही? या असलियत में कुछ ऐसा, जिसका प्रभाव या कहो दुस्प्रभाव, वक़्त के साथ बहुत बुरा हो सकता है। आप पर भी और आपके आसपास वालों पर भी।

किसी ने आपको कुछ ऐसा बोला क्या, की कोई माँ, बहन, बेटी या बुआ या भाभी या ऐसा कोई और रिस्ता भी हो सकता है, कहीं आसपास हो या आए तो फलाना-धमकाना पानी की पाइप उठाना और पौधों में या ज़मीन में पानी देने लग जाना? या खुरपा या कस्सी लेकर कहीं खोदने लग जाना? या अपने किसी बच्चे या बच्ची को लेकर वहाँ से गुजरना या कुछ खास बोलना? या किसी खास जगह जाकर बैठ जाना या वहाँ ले जाकर उनके साथ खेलना? कभी-कभी तो ऐसे वक़्त भी जब देखने वालों को लगे, अरे ये पागल तो नहीं हो गए? इतनी धूप में? या इतनी ठंड में? या बारिश तो पहले ही आ रही है? या आंधी चल रही है या लू चल रही हैं? या रात का या बहुत सुबह का वक़्त है। ऐसे में तो अपने घर नहीं होना चाहिए? आपको शायद किसी को वो सब दिखाने या चिढ़ाने के लिए बोला हो। वो भी किसको? आपका अपना कोई, माँ, बहन, बेटी, बुआ, भाभी, दादी जैसे रिश्तों को क्या दिखाना या चिढ़ाना चाहते हो? समझ नहीं आ रहा, की आप खुद अपनी और साथ में अपने बच्चे तक की रैली पीट रहे हैं? सामने वाले पे हो सकता है, उसका कुछ असर ही ना हो या उसे समझ तक ना आए। मगर, 

मगर, आपकी और आपके बच्चे की कोई बेहुदा ट्रैनिंग जरुर शुरू हो गई है। जिसके दुर्गामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। ये किसी पार्टी का, किसी तरह का छुपा हुआ स्क्रिप्ट चल रहा है, खुद आपके और आपके अपनों के ख़िलाफ़। आपपे, आपके बच्चों पे या आसपास पे वो कोई स्टीकर चिपकाने की कोशिश कर रहे हैं। आपको और आपके बच्चे को अपनी असली पहचान से दूर करने की कोशिश हो रही है। आपकी असली पहचान क्या है वहाँ? क्या रिस्ता है, आपका या आपके बच्चे का वहाँ पे? उसकी कोई सीमाएँ हैं? कहीं वो ऐसी कोई सीमाएँ तो नहीं लंघवा रहे आपसे? इसका मतलब ये है, की आपकी या आपके बच्चे की आने वाली ज़िंदगी में ऐसे रिश्ते घड़े जा रहे हैं। जिनको आप चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वो शायद उस वक़्त तक आपके आसपास भी ना हों। तो आपके साथ-साथ और कौन शिकार होगा या होंगे? 

अगर अभी तक थोड़ा बहुत भी आपको सामान्तर घड़ाईयोँ वाला ये राजनीति और बड़ी-बड़ी कंपनियों का जुआ समझ आया हो, तो अपने आसपास ही नज़र दौड़ा लो। बहुत-सी, बहुत तरह की घड़ाईयाँ मिलेंगी। ज्यादातर घड़ाईयोँ में बहुत ही आम बोलचाल के जैसे कोड होते हैं। वो आम आदमी के पास कैसे आते हैं? वही कोड बताते हैं की वो सामान्तर घड़ाई या घड़ाईयाँ किस पार्टी ने घड़वाई होगी और किसके खिलाफ? वो किसी हक़ीक़त के आसपास भी हो सकती हैं और उसके बहुत दूर भी। जैसे in-out वाले महान। कोई किसी एक्सीडेंट के बाद बैड रिडन हो और कोई दिखाना चाहें live- in रह रहा है या रह रही है कहीं। अश्वथामा मारा गया जैसे-से किस्से-कहानियाँ। वो तो मर गया या मर गई और उसका सब किसी को दान हो गया या बाँट दिया। या वो सबका खा गया और बताते हुए भी शर्म आए की उसके पास ऐसा खाने को क्या है? ऐसा गाने वालों के खेतों में मजदूरी? या किसी के स्कूल की दिहाड़ी?     

अच्छे खासे पढ़ते-पढ़ते बच्चे कॉलेज तक आते-आते पढ़ाई क्यों छोड़ देते हैं? या 10-12 के बाद ही, अजीबोग़रीब केसों में क्यों उलझ जाते हैं? या ज़िंदगी ही खो देते हैं? या कुछ जेल की हवा खाने के बाद, वापस ज़िंदगी की तरफ क्यों नहीं मुड़ पाते? शायद आप कहेंगे, माहौल? जी हाँ। माहौल। मगर वो मौहाल कौन बना रहा है? आप? आपका आसपास? या शायद शातीर राजनीती? वही पार्टियाँ, जिनके आप भक़्त हैं? वो उसमें आपको शामिल कर रही है? सिर्फ आपको नहीं, बल्कि आपके बच्चों तक को? और आप जाने या अंजाने शामिल हो रहे हैं? 

सिर्फ रैली पीटने तक हो तो भी चल जाए, यहाँ तो ज़िंदगियाँ ही ख़त्म हो रही हैं या दाँव पर लग रही हैं। वो भी पैदाइशी? या बचपन में ही, जब बच्चे को बोलना, चलना तक नहीं आता, तभी? उन्हें दाँव पे रख दिया जाता है। कहीं इस पार्टी द्वारा, तो कहीं उस पार्टी द्वारा? या खुद उसके अपनों द्वारा भी? जाने या अन्जाने में? क्यूँकि, उन्हें लगता है की इतनी छोटी-छोटी बातों या नौटंकियोँ से क्या होता है? 

बड़े लोग (so-called) अपनी पहचान नहीं छोड़ते। उल्टा, अपने स्टीकर हर किसी पे चिपकाने की कोशिश में रहते हैं।  छोटे लोगों (so-called) की कोई पहचान ही नहीं होती? जिस किसी का स्टीकर अपने पे चिपकवा लेते हैं? और अपना सब, उन स्टीकर वालों के हवाले कर देते हैं? इन स्टीकरों को पहचाने कैसे? आपके चारों तरफ फैले पड़े हैं, ये स्टीकर। 

ये रोजमर्रा की छोटी-छोटी या अदृश्य-सी चीजें ही बड़े कारनामें करने या करवाने में कारगार होती हैं। कैसे? इसे माइक्रो मीडिया लैब (Micro + Media + Lab) बेहतर समझा सकती है। जिसे आप अपने रसोईघर, बाथरुम, खेत-खलिहानों, घर के या आसपास के लॉन या बाग़-बगीचों या तालाबों या छोटी-मोटी झीलों (गंदे या साफ़ पानी की) और खुद के या अपने पालतु जानवरों के शरीर और स्वास्थ्य तक से जान सकते हैं।           

वैसे इन छोटी-छोटी सी बातों की, बड़े लोग (?), बड़ी-बड़ी रैलियाँ भी पीटते हैं। क्यूँकि, उनकी औकात है। जैसे, किसी ने कहीं, किसी पाइप से, किसी के यहाँ या अपने यहाँ, पेड़-पौधों या ज़मीन में पानी दिया। वो भी किसी के कहीं घुमने पे या आने पे। और किन्हीं चैनल्स पे DUBAI में बाढ़ आ गई। आप अगर इतने ही ठाली हो, तो कम से कम, झुठे-मुठे विडियो बनाना ही सीख लो। वो सब आपके काम तो आएगा। ये मुफ्त में खुद सिर दर्द लेना और औरों को देने की कोशिश करना, किस काम का? ऐसे लोगों की बहुत से क्षेत्रों में बहुत जरुरत है। फिर चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, राजनीती का, मीडिया का या मनोरंजन का। सिविल हो या डिफ़ेन्स। सबसे बड़ी बात, ये सब करना बहुत मुश्किल भी नहीं है। और बोरिंग भी नहीं है। 

जानते हैं आगे, ऐसी ही कुछ, हुबहु-सी कहानियों के बारे में, जहाँ एक जैसी-सी टेक्नोलॉजी का ईधर भी प्रयोग होता है, और उधर भी। जिनका सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी।            

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