स्टीकर जो बड़े साहब, बड़े लोग (?), राजनीतिक पार्टियाँ या कम्पनियाँ आप पर, हम सब पर, हर वक़्त चिपकाने की कोशिश में रहते हैं। जितने ज्यादा वो उसमें सफल होते जाते हैं, उतना ज्यादा उनका फायदा और हमारा, आपका, आम आदमी का नुक्सान होता जाता है।
अभी पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओँ या दुर्घटनाओँ से समझने की कोशिश करते हैं।
जमीन का एक छोटा-सा टुकड़ा, आधा एकड़, जिसपे स्कूल वालों की निगाह तभी से थी, जबसे वो ज़मीन सब भाइयों (दादा, अलग अलग पड़दादाओं के बच्चे) में बटी थी। बहुत बार माँगने के बावजूद, वो उन्हें नहीं मिली। इसी ज़िद में उन्होंने अपना एक खाली पड़ा खंडहर का टुकड़ा तक नहीं दिया। आज तक वो ना सिर्फ खाली पड़ा है, बल्की आसपड़ोस के सिर दर्द भी है। अब उसके हाल ये हैं की उसे कोई लेने को तैयार भी नहीं। मगर, स्कूल के साथ लगती ज़मीन को जिस किसी बहाने, इन महान स्कूल वालों ने कब्जाया हुआ है, धोखाधड़ी से। मगर पेपरों में so called Legally ।
क्या ये इन्हीं स्कूल वालों ने कब्जाया हुआ है? या ये भी एक सामान्तर घड़ाई है? चलो जानने की कोशिश करते हैं।
मान लो, दो नंबर हैं। एक है 5 और दूसरा 4, ये नंबर कुछ और भी हो सकते हैं।
पाँच को pair बनाना है। मोदी वाला डबल? उसके लिए चार को पाँच के बीच रखना है? ये कोई और नंबर भी हो सकते हैं और जो कहा उसका उल्टा भी। यहाँ हमने चार और पाँच माना है। तो ये हो गया 5 4 5
मान लो 5 को दस साल के लिए, चार ने block कर दिया। दस किसने देखा? अभी तो ब्लॉक करो। आधा किला मतलब चार कनाल। 4 को दो टुकड़ों में काटों। इसका आधा हिस्सा बड़े वालों को दो। स्कूल वालों को। एक भाई के बच गई, उस जगह 2 कनाल। दूसरे की वहाँ की 2 कनाल हड़प ली। वो वहाँ के स्कूल वालों के नाम। दो कनाल से भर जाएगा उनका? अरे Protection के लिए ली है। मगर कैसा Protection? और किसका Protection? यहाँ ये 2 नंबरी का क्या हिसाब-किताब है? ये भी कुछ खास है क्या? इसे 654 या 652 या ऐसा कुछ कर दें तो? बड़ी उलझ-पुलझ खिचड़ी है। नहीं? राजनीती के दाँव-पेंचों में ऐसा ही होता है। मुझे तो यूनिवर्सिटी का 2 नंबरी गार्ड लग रहा है? कुछ काँड हैं, उन्हें दबाने के लिए खास गॉर्ड चाहिएँ? और उन कांडों की सजा को कम करने के लिए वक़्त?
वक़्त, अक्सर बड़े लोगों के लिए एक बहुत ही अच्छा तरीका होता है, अक्सर केसों को उल्ट पलट करने के लिए? वक़्त के साथ ज्यादातर सजा शिकायत करने वाला ही भुगतता है? और महान लोग अक्सर बच निकलते हैं? ऐसा ही?
अच्छा? तो आम-आदमी इस सबमें क्यों फंसे?
फंसे नहीं। उन्हें फँसा लिया जाता है। छोटे-मोटे लालच। छोटे-मोटे डर। इस छोटे से ज़मीन के टुकड़े का, कितनी मौतों या बीमारियों से लेना-देना हो सकता है? या शायद इसके आसपास की ज़मीनों का भी? ज़मीनो के ये नंबर किस तरह के स्टीकर हैं? सिर्फ नंबर या उससे आगे भी कुछ, कोढ़ जैसे? जैसे लोगों के या उन ज़मीनो के खास हिसाब-किताब वाले कोड? राजनीतिक पार्टियों के ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नंबर होते होंगे? उनके नाम पे आम आदमियों के कितने ही झगड़े? कितने ही रिश्तों के हेरफेर? कितनी ही बीमारियाँ या मौतें? छोटे-मोटे लोग, छोटे-मोटे जमीनों के झगड़े? बड़े लोग, बड़े-बड़े ज़मीनो के वाद-विवाद? जैसे राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के या बड़ी-बड़ी कंपनियों के? राज्यों के आपसी झगड़े या देशों के? वहाँ पे भी ऐसे-से ही कोड होते होंगे?
जैसे?
कहीं इस गाँव के स्कूल के आसपास की ज़मीनो की कहानियाँ। तो कहीं किसी यूनिवर्सिटी के किसी डिपार्टमेंट के वाद-विवाद?
कान्ता कहाँ यूनिवर्सिटी में? जिसे किसी घर की चाबी सौंपने को बोला जाए। तो कहीं कान्ता, यहाँ इस ज़मीन के केस में भी कोई? किसी की माँ? किसी स्कूल का कोई अहम किरदार?
ऐसे ही जैसे कहाँ मुम्बई में बैंक में काम करने वाला कोई अजय? और कहीं किसी पार्टी का नेता? या फिर कोई इस जमीन के केस में बिचौलिया? ये सब कहीं मिलता है? या ऐसे ही तुक्के हैं, खाँमखाँ के?
ऐसे ही जैसे कहीं इस ज़मीन का पैसों का हिसाब-किताब? तो कहीं, किसी घर के किराए का?
ठीक ऐसे ही जैसे, कहीं कोई तालाब और आसपास के लोगों के घरों के ज़मीन सम्बंधित वाद-विवाद? और कहीं और? मोदी के प्लाट से अभय के घर तक के ज़मीनो के हिसाब-किताब? इनसे आगे इधर-उधर भी जा सकते हैं। और आगे और पीछे भी। जिसे कहा जाता है, आपके आसपास का सिस्टम।
आप खुद एक सिस्टम हैं। जिस वक़्त आप जहाँ कहीं हैं, उसके आसपास का सिस्टम, उस वक़्त आपकी ज़िंदगी को बनाता या बिगाड़ता है। इसलिए अगर पीढ़ी दर पीढ़ी आप किसी एक जगह हैं तो जहाँ एक तरफ वहाँ का सिस्टम आपको फायदा करता है। तो दूसरी तरफ कुछ गड़बड़ होने पर मार भी आप पर ज्यादा पड़ती है। ना की उन पर जो वहाँ से निकल चुके या नाममात्र हैं।
ठीक ऐसे ही जैसे, कहीं मदीना रेडियो स्टेशन के आसपास के ज़मीनो के हिसाब-किताब तो कहीं ?
ऐसे ही जैसे कहीं बरहे के एक तरफ वाल्मीकियों के घर, साथ वाले गाँव से आए हुए वाल्मीकि और उनके आसपास के ज़मीनो के हिसाब-किताब और कहीं?
ऐसे ही कहीं की भी ज़मीन का केस है। या कोई वहाँ क्यों है? या क्यों और कहाँ छोड़ के चले गए, सिस्टम बताता है? राजनीती बताती है। और आप सोचते हैं, ये सब आप खुद कर रहे हैं?
और ये सिर्फ ज़मीन पर ही लागू नहीं होता। बल्कि, वहाँ के हर जीव-निर्जीव पर। उनकी ज़िंदगी से सम्बंधित हर पहलु पर। आम आदमी की ज़िंदगी में जितने ज्यादा स्टीकर राजनीतिक पार्टियों की जबरदस्ती के हैं। उतने ही वो आपके फायदे के नहीं हैं। शायद इसीलिए, इन स्टीकरों को और आप पर इनके प्रभावों या दुष्प्रभावों को जानना बहुत जरुरी है।
वो स्टीकर बेचने वाले भैया तो अभी तक नहीं आए। तब तक थोड़ा और स्टीकरों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
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